टाइम दुनिया की सबसे प्रभावशाली पत्रिकाओं में से एक है। इस पत्रिका ने अपने ताजे अंक (20 मई, 2019) के मुखपृष्ठ पर मोदी के पोर्ट्रेट को प्रकाशित करते हुए उन्हें ‘इंडियास डिवाइडर इन चीफ’ यानी ‘भारत को बांटने वालों का मुखिया’ बताया है। पत्रिका ने यह प्रश्न भी पूछा है कि क्या दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातंत्र, मोदी राज के और पांच वर्षों में बच सकेगा? इसके साथ ही पत्रिका में एक और लेख भी प्रकाशित हुआ है, जिसका शीर्षक है – ‘मोदी द रिफॉर्मर’ (सुधारवादी मोदी)। इसमें कहा गया है कि मोदी के रहते ही देश आर्थिक सुधारों की अपेक्षा कर सकता है। मुख्य लेख का शीर्षक ‘इंडियास डिवाइडर इन चीफ’ निश्चय ही मोदी-राज की मुख्य उपलब्धि का अत्यंत सारभर्गित वर्णन करता है। इस लेख में राहुल गांधी की भी कई मुद्दों पर आलोचना की गई है। परन्तु, इसके बावजूद भी यह दिलचस्प है कि राहुल गांधी ने इस लेख को री-ट्वीट किया है, जबकि मोदी भक्त इसके लेखक आतिश तासीर पर टूट पड़े हैं।
भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा का कहना है कि तासीर पाकिस्तानी हैं और उनसे इसके अलावा और क्या अपेक्षा की जा सकती थी। यह बयान भाजपा की पाकिस्तान को भारत का शत्रु इन चीफ निरुपित करने की नीति के अनुरूप है। भाजपा की साइबर टीम ने तासीर के विकीपीडिया पेज पर हल्ला बोल दिया और उसमें यह जोड़ दिया कि वे ‘कांग्रेस के पीआर मैनेजर हैं।’ यह परिवर्तन तासीर के विकीपीडिया पेज के ‘करियर’ वाले खंड में किया गया है। जबकि, सच यह है कि तासीर अमेरिकी नागरिक हैं। उनकी मां भारत की जानी-मानी स्तंभ लेखक तवलीन सिंह हैं। उनके पिता पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के पूर्व गवर्नर सलमान तासीर हैं; जिन पर आसिया बीबी नामक ईसाई महिला का समर्थन करने के लिए ईशनिंदा कानून के अंतर्गत मुकदमा दायर किया गया था और जिन्हें उनके ही अंगरक्षक ने गोलियों से भून दिया था।
पात्रा ने यह भी दावा किया कि टाइम ने पहले भी मोदी-विरोधी लेख प्रकाशित किए थे। जबकि, सच यह है कि इसके पहले टाइम ने जो लेख प्रकाशित किए थे, उनका मूल भाव यह था कि मोदी भारत के लिए एक आशा की किरण बनकर उभरे हैं। उदाहरण के लिए पत्रिका में वर्ष 2015 में प्रकाशित एक लेख का शीर्षक था ‘व्हाई मोदी मैटर्स’ मतलब ‘मोदी क्यों महत्वपूर्ण हैं’, बल्कि ताज़ा अंक के दूसरे महत्वपूर्ण लेख (जिसे पत्रकारिता की भाषा में सेकेंड लीड कहा जाता है) में मोदी को एक ऐसे नेता के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो देश में आर्थिक सुधार लाने में सबसे अधिक सक्षम हैं। इस प्रख्यात पत्रिका ने मोदी को ‘डिवाइडर इन चीफ’ क्यों बताया और क्यों यह प्रश्न उठाया कि अगर मोदी फिर से प्रधानमंत्री बने, तो देश में प्रजातंत्र का बचना संदेहास्पद हो जाएगा?
पिछले पांच साल में ऐसी कई चीजें हुई हैं, जिनसे लगता है कि देश में प्रजातंत्र खतरे में हैं। सरकार मोदी की मुट्ठी में है। शक्तियों का किस कदर केंद्रीयकरण हो चुका है, इसका प्रमाण मोदी का यह दावा है कि उन्होंने जानकारों की राय को दरकिनार करते हुए बालाकोट में हवाई हमले करने का आदेश दिया। उनका स्वयं का कहना है कि संबंधित सैन्य अधिकारी और विशेषज्ञ चाहते थे कि बारिश और बादलों के चलते हमले को स्थगित कर दिया जाए। परन्तु, मोदी ने अपनी पैनी बुद्धि का उपयोग करते हुए यह आदेश दिया कि हमला उसी समय किया जाए। क्योंकि, बादलों के कारण पाकिस्तानी राडार भारतीय विमानों को पकड़ नहीं पाएंगे।
यह सर्वज्ञात है कि सभी महत्वपूर्ण निर्णय मोदी स्वयं लेते हैं। नोटबंदी के निर्णय के बारे में वित्त मंत्रालय और केबिनेट को कुछ भी पता नहीं था। स्वायत्त संस्थाओं को मोदी कुचल रहे हैं और उन पर अपना नियंत्रण कायम कर रहे हैं। प्रजातान्त्रिक संस्थाओं को भी योजनाबद्ध तरीके से कमजोर किया जा रहा है।
इसके साथ ही वे विभिन्न धार्मिक समुदायों को भी विभाजित कर रहे हैं। वे खून के प्यासे कथित गौरक्षकों पर कोई रोक नहीं लगा रहे हैं। उन्हें अपने उन मंत्रियों से कोई परेशानी नहीं है, जो धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ जहर उगलते हैं; जो लिंचिंग के आरोपियों के शवों को तिरंगे में लपेटते हैं और जो जमानत पर रिहा लिंचिंग के दोषियों का अभिनन्दन करते हैं। जाहिर है कि इससे हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे को लागू करने के लिए बेकरार अपराधियों को प्रोत्साहन मिलता है। उन्होंने मुसलमानों के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग करने वाले योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया और आतंकी हमले के प्रकरण में आरोपी प्रज्ञा ठाकुर, जो कि स्वास्थ्य कारणों से जमानत पर रिहा हैं; को अपनी पार्टी का उम्मीदवार बनाया। मोदी धर्मनिरपेक्ष, प्रजातांत्रिक भारत पर हिंदुत्व को थोपना चाहते हैं।
भारतीय संविधान देश की एकता का प्रतीक है। परन्तु, मोदी के केबिनेट सहयोगी अनंत कुमार उसे बदल डालना चाहते हैं। मोदी सरकार में भाजपा का पितृ संगठन आरएसएस दिन दूनी, रात चौगुनी प्रगति कर रहा है। विश्वविद्यालयों और अन्य सरकारी संस्थाओं में भगवा विचारधारा वालों को भर्ती किया जा रहा है। कई स्तंभकारों का मानना है कि भारत का मीडिया भी मोदी की उतनी आलोचना नहीं कर रहा है, जितनी कि उसे करनी चाहिए। यह कुछ हद तक सही भी है। मीडिया का एक हिस्सा और कुछ लेखक-पत्रकार मोदी और शाह के खिलाफ मुद्दे उठा रहे हैं। परन्तु, मीडिया का एक बड़ा हिस्सा भाजपा सरकार के दबाव में दण्डवत हो गया है। यह दबाव किस तरह का है, उसकी एक बानगी भाजपा के उभरते हुए सितारे तेजस्वी सूर्या का यह कथन है कि ‘अगर आप मोदी के साथ नहीं हैं, तो आप भारत-विरोधी शक्तियों को मजबूत कर रहे हैं।’ सरकार की आलोचना को राष्ट्रद्रोह का पर्यायवाची बना दिया गया है।
डिवाइडर इन चीफ की उपाधि मोदी के व्यक्तित्व और उनकी विचारधारा से एकदम मेल खाती है। यह पहली बार है, जब देश पर कोई हिंदू राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री लोकसभा में पूर्ण बहुमत के साथ राज कर रहा है। इसके पहले भी देश में भाजपा सरकारें थीं। परन्तु, चूंकि वे अपने अस्तित्व के लिए अन्य पार्टियों पर निर्भर थीं; इसलिए वे खुलकर हिंदुत्ववादी एजेंडा लागू नहीं कर सकीं। टाइम ने देश में व्याप्त वर्तमान माहौल को ‘जहरीला धार्मिक राष्ट्रवाद’ बताया है।
गांधी, जिन्हें हिंदू राष्ट्रवादी हत्यारे ने मौत के घाट उतार दिया था ‘इंडियास यूनिफायर इन चीफ’ अर्थात ‘भारत को एक करने वालों के मुखिया’ थे। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वर्तमान प्रधानमंत्री ने अपने राजनीतिक एजेंडे को लागू करने के लिए वह भूमिका निभाई, जो राष्ट्रपिता की भूमिका के ठीक विपरीत है। टाइम का लेख हमें याद दिलाता है कि किस तरह देश को धार्मिक आधार पर बांटा जा रहा है और प्रजातंत्र को कमजोर किया जा रहा है।
(अंग्रेजी से हिंदी रूपांतरण – अमरीश हरदेनिया)
(कॉपी संपादन : प्रेम बरेलवी)
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