बीते 17-18 जून, 2019 को भारतीय संसद की मर्यादा उस समय तार-तार हो गयी जब शपथग्रहण के दौरान संसद में धार्मिक नारे गूंजे। खासकर सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यगणों के द्वारा विपक्षी सदस्यों का अपमान करने के लिए नारे लगाए गए। जवाब में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और मुसलमान सांसदों ने भी धार्मिक नारे लगाए। धर्मनिरपेक्ष भारतीय लोकतंत्र के लिहाज से यह एक शर्मनाक मंजर था। संसद में दिखे इस उन्माद का असर पूरे देश में देखने को मिल रहा है। 17 जून 2019 को ही झारखंड में पसमांदा समाज से आने वाले तबरेज अंसारी नामक नौजवान को सात घंटे तक पोल से बांधकर मारा-पीटा गया और उसे जयश्री राम कहने को मजबूर किया गया। बाद में उसकी मौत इलाज के दौरान हो गई। इसी तरह की घटनाएं पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में सामने आयी हैं।
हालांकि जबरदस्त जनादेश के परिप्रेक्ष्य में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो महत्वपूर्ण बातें कहीं। पहली यह कि हमें पक्ष या विपक्ष के साथ न जाकर, निष्पक्ष रहना चाहिए और दूसरी यह कि प्रजातंत्र के सुचारू संचालन में विपक्ष की महती भूमिका होती है और उसकी राय को गंभीरता से लिया जायेगा। सवाल यह है कि क्या सत्ताधारी दल, अपने नेता की कथनी को करनी में बदलेगा। संसद में नवनिर्वाचित सांसदों के शपथ ग्रहण के दौरान जो कुछ हुआ उससे ऐसा नहीं लगता कि भाजपा सदस्य अपने नेता को गंभीरता से ले रहे हैं।
अपनी विजय से अति-उत्साहित सत्ताधारी दल के सदस्यों ने विपक्षी नेताओं के साथ जमकर टोका-टाकी की और उनका मखौल बनाया। यह बहुसंख्यकवाद का खुला प्रदर्शन था। भाजपा सदस्यों ने ऐसे नारे लगाए, जिनकी विपक्ष के कई सदस्य अलग ढंग से व्याख्या करते हैं। उनके निशाने पर मुख्य तौर पर मुस्लिम सांसद और तृणमूल कांग्रेस के सदस्य थे। जब मुस्लिम सदस्य शपथ ले रहे थे उस समय सदन ‘जय श्रीराम‘, ‘वंदे मातरम्‘, ‘मंदिर वहीं बनाएंगे‘ और ‘भारत माता की जय‘ जैसे नारों से गूंज रहा था। जवाब में एआईएमआईएम के असाउद्दीन औवैसी ने ‘जय भीम जय मीम‘ ‘नारा ए तकबीर अल्ला हू अकबर‘ और ‘जयहिंद‘ के नारे लगाए। एक अन्य मुस्लिम सांसद शफीकुर रहमान बर्क ने ‘अल्ला हू अकबर‘ और ‘हिन्दुस्तान की जय‘ का नारा बुलंद किया। उन्होंने यह भी कहा कि वंदे मातरम् का नारा लगाना इस्लाम के खिलाफ है क्योंकि इस्लाम अपने अनुयायियों को अल्लाह के सिवाय किसी की इबादत करने की इजाजत नहीं देता। उन्होंने यह भी कहा कि वंदे मातरम् में मातृभूमि को एक हिन्दू देवी के रूप में दिखाया गया है। एक अन्य मुस्लिम सांसद ने ‘अल्ला हू अकबर‘ और ‘जय संविधान‘ का नारा बुलंद किया। फिल्म तारिका हेमा मालिनी ने शपथ लेने के बाद ‘राधे-राधे‘ कहा। चुनाव में बुरी तरह से परास्त वामपंथी सदस्यों ने धर्मनिरपेक्षता की रक्षा की बात कही।
तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने ‘जय श्रीराम‘ का जवाब ‘जय मां काली‘, ‘जय भारत‘ और ‘जय बांग्ला‘ से दिया। लगाए गए नारों से संबंधित सांसदों की राजनीति की झलक मिलती है। सत्ताधारी दल के सदस्यों द्वारा नारेबाजी का उद्देश्य विपक्षी सदस्यों को धमकाना था। सत्ताधारी दल के वरिष्ठ नेताओें ने अपने सदस्यों को विपक्षी सांसदों की रैगिंग लेने से नहीं रोका। भाजपा सदस्यों ने तीन नारे लगाए परंतु उनका सबसे प्रमुख नारा था ‘जय श्रीराम‘। इस नारे को संसद में गूंजते देखकर ऐसा लग रहा था मानो संसद, प्रजातंत्र का मंदिर न होकर कोई हिन्दू मंदिर हो। प्रधानमंत्री ने प्रजातंत्र में विपक्ष की भूमिका के बारे में जो कुछ कहा था उसके तारतम्य में विपक्षी सांसदों के साथ गरिमापूर्ण व्यवहार किया जाना था। परन्तु भाजपा सांसदों ने जिस तरह ‘जय श्रीराम‘ के नारे लगाए उससे ऐसा लगता था मानो वे भगवान राम को अपनी विजय के लिए धन्यवाद देना चाह रहे हों।
राम मंदिर आंदोलन के बाद से ‘जय श्रीराम‘ का नारा धार्मिक-आध्यात्मिक नारा नहीं रह गया है। वह एक राजनैतिक नारा बन गया है। भारत में भी सभी लोग भगवान राम को उस रूप में नहीं देखते जिस रूप में भाजपा के सदस्य उन्हें देखते हैं। संत कबीर के लिए भगवान राम एक ऐसे व्यक्तित्व थे जो जातिगत संकीर्णता से ऊपर थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दृष्टि में राम एक समावेशी भगवान थे। गांधी, राम और अल्लाह को एक ही दर्जा देते थे। बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर और पेरियार रामासामी नायकर, राम को एक अलग ही दृष्टि से देखते थे। आंबेडकर की पुस्तक ‘रिडिल्स ऑफ़ हिंदुइज्म’ में शूद्र समुदाय के शंबूक और बालि की राम द्वारा हत्या की आलोचना की गई है। अपनी गर्भवती पत्नी को वनवास पर भेजने के लिए भी आंबेडकर राम को कटघरे में खड़ा करते हैं। पेरियार की ‘सच्ची रामायण‘ में भी राम को श्रद्धा का पात्र नहीं माना गया है।
देश में ऐसे मुसलमानों की कमी नहीं है जिन्हें ‘वंदे मातरम्‘ या ‘भारत माता की जय‘ कहने में कोई परेशानी नहीं है। हमारा संविधान भी वंदे मातरम् को राष्ट्रगीत का दर्जा देता है, राष्ट्रगान का नहीं। हमारा राष्ट्रगान ‘जन गण मन‘ है।
जहां भगवान राम उत्तर भारत में लोकप्रिय हैं, वहीं बंगाल की सबसे महत्वपूर्ण आराध्य काली मां हैं। बंगाल में भाजपा का रथ ‘जय श्रीराम‘ के नारे के सहारे आगे बढ़ रहा है तो टीएमसी अपनी जमीन बचाने के लिए ‘जय मां काली‘ का नारा बुलंद कर रही है। बंगालियों और गैर-बंगालियों के बीच खाई खोदकर वह श्रेत्रीय भावनाओें को उभारने की कोशिश भी कर रही है। यह दिलचस्प है कि बंगाल में दो हिन्दू भगवान, अलग-अलग पार्टियों के प्रतीक बन गए हैं। मां काली तृणमूल कांग्रेस को बचाने में कितनी सफल हो पाती हैं, यह तो समय ही बताएगा। हमारे स्वाधीनता संग्राम के दौरान ‘इंकलाब जिंदाबाद‘ (भगत सिंह) और ‘जय हिंद‘ (सुभाष चन्द बोस) मुख्य नारे थे। इस तथ्य पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए की सत्ताधारी दल ने ‘जय हिंद‘ के नारे से सख्त परहेज किया।
धार्मिक नारों को लेकर इस तरह का हंगामा संसद में पहली बार देखा गया। धार्मिक नारों के महत्व से कोई इंकार नहीं कर सकता परंतु संसद उन्हें लगाने के लिए उपयुक्त स्थान नहीं है। संसद, लोगों की समस्याओं पर चर्चा करने का मंच है। यह देखना होगा कि क्या आगे भी सत्ताधारी दल के सदस्य इसी तरह की नारेबाजी कर विपक्षी और मुस्लिम सांसदों की आवाज को दबाने का प्रयत्न करते हैं या नहीं। अगर यह जारी रहा तो यह प्रजातंत्र के लिए अशुभ होगा। संसद को कृषि संकट और बेरोजगारी पर चर्चा करनी चाहिए। जिस देश में आक्सीजन की सप्लाई बाधित होने या दिमागी बुखार से सैकड़ों बच्चों की मौत हो जाती हो, उस देश की संसद में धार्मिक नारे लगाने की प्रतिस्पर्धा घोर शर्मनाक है।
(अनुवाद : अमरीश हरदेनिया, संपादन : नवल)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें
मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया