बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) द्वारा राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति अंतिम चरण में है। वर्षांत तक नियुक्ति प्रक्रिया के सम्पन्न हो जाने की संभावना है । इस बीच विभिन्न स्रोतों से जो जानकारी हासिल हुई है, उससे स्पष्ट है कि आयोग द्वारा नियुक्ति में आरक्षित वर्गों के संवैधानिक अधिकारों की अनदेखी की गई है। सामान्य वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए आरक्षण के प्रावधानों को मनमाने ढंग से लागू किया गया है। इतना ही नहीं, इंटरव्यू में अंक प्रदान करते समय जाति-वर्ण का ध्यान रखा गया है। इस मामले में अब राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने बीपीएससी को नोटिस भेजा है और दस दिनों के अंदर जवाब मांगा है।
उल्लेखनीय है कि बीपीएससी द्वारा राज्य के दस विश्वविद्यालयों में 3364 असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती के लिए 2014-15 में विषयवार अलग-अलग आवेदन आमंत्रित किया गया था। इसमें सामान्य वर्ग के 1720, अनुसूचित जाति के 542, अनुसूचित जनजाति के 22, अत्यंत पिछड़ा वर्ग के 590, पिछड़ा वर्ग के 403 एवं पिछड़ा वर्ग महिला के 87 पद आरक्षित था। विषयवार अलग-अलग विज्ञापन के अनुसार साक्षात्कार की तिथि समय-समय पर निर्धारित की गई। साक्षात्कार के बाद कई विषयों के परिणाम घोषित हुए और नियुक्तियां भी हुईं। कुछ विषयों के असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्तियां प्रक्रियाधीन हैं।
ध्यातव्य है कि असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती के लिए राज्य सरकार ने 2014 में एक परिनियम बनाया था, जिसकी अधिसूचना राजभवन द्वारा 14 सितंबर,2014 को जारी की गई थी। अधिसूचना में उल्लेख किया गया था कि “असिस्टेंट प्रोफेसरों के चयन हेतु 85 अंक एकेडमिक तथा 15 अंक इंटरव्यू में प्रदर्शन के आधार पर देय होगा। चयन प्रक्रिया पारदर्शी तरीके से सम्पन्न होगी। बीपीएससी द्वारा शैक्षणिक एवं साक्षात्कार में प्रदर्शन के आधार पर मेधासूची तैयार की जाएगी। प्रत्येक विषय की एक प्रतीक्षा सूची भी होगी। मेरिट लिस्ट के आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसरों का चयन किया जाएगा। चयन मेंं राज्य सरकार की वर्तमान आरक्षण नीति का दृढ़तापूर्वक अनुपालन किया जाएगा। अगर आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी अनारक्षित वर्ग के लिए चुना जाता है तो उसकी नियुक्ति अनारक्षित कोटि में होगी।”
किन्तु अब तक जिन विषयों के असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति हुई है उसमें नियमों का आयोग द्वारा अक्षरशः पालन नहीं किया गया है। अधिसूचना में पारदर्शिता की बात कही गई थी, पर न तो अभ्यर्थियों के एकेडमिक अंकों को सार्वजनिक किया गया, न ही मेधासूची जारी की गई। मेधासूची के लिए अभ्यर्थियों को सूचना के अधिकार का सहारा लेना पड़ा।
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दिनांक 14 मई 2019 को सूचना के अधिकार से प्राप्त संयुक्त मेधा सूची के अनुसार जो तथ्य सामने आए हैं, वे बताते हैं कि साक्षात्कार में आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव किया गया है। सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों की तुलना में उन्हें कम अंक प्रदान किए गए हैं। कई अभ्यर्थियों का कहना है कि ऐसा इसलिए किया गया था है ताकि आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी सामान्य वर्ग की सूची में स्थान बनाने में कामयाब न हो सकें। आरक्षित वर्ग के वैसे अभ्यर्थी जो बेहतर अंकों के आधार पर सामान्य वर्ग की मेधा सूची में स्थान बनाने में सफल हो गए, उन्हें उनके आरक्षित वर्ग में समायोजित कर दिया गया, जबकि नियम में स्पष्ट किया गया था कि उनकी नियुक्ति अनारक्षित कोटि में ही होगी।
बीपीएससी द्वारा उपलब्ध करायी गयी सूचना से भी अभ्यर्थियों के आरोपों की पुष्टि होती है। (देखें सारणी)
सामान्य वर्ग
क्रम | अभ्यर्थी का नाम | इंटरव्यू में मिले अंक |
---|---|---|
1 | हरि त्रिपाठी | 12 |
2 | अशिता शुक्ला | 12 |
3 | मार्तंड प्रगल्भ | 13 |
4 | निशा | 11 |
5 | शुभमश्री | 12 |
6 | अनूप कुमार सिंह | 14 |
7 | कंचन | 12 |
8 | आशुतोष | 14 |
9 | छाया चौबे | 13 |
10 | नेहा मिश्रा | 10 |
अनुसूचित जाति वर्ग
क्रम | अभ्यर्थी का नाम | इंटरव्यू में मिले अंक |
---|---|---|
1 | शिप्रा प्रभा | 8 |
2 | प्यारे मांझी | 8 |
3 | कृष्ण कुमार | 11 |
4 | हरेंद्र प्रसाद | 4 |
5 | साधना रावत | 8 |
6 | अर्चना कुमारी | 11 |
7 | प्रियंका कुमारी | 7 |
8 | राकेश रंजन | 5 |
9 | योगेंद्र कुमार | 14 |
10 | उमाशंकर पासवान | 7 |
अनुसूचित जनजाति वर्ग
क्रम | अभ्यर्थी का नाम | इंटरव्यू में मिले अंक |
---|---|---|
1 | संतोष गोंड | 6 |
2 | मुन्ना साह | 3 |
पिछड़ा वर्ग
क्रम | अभ्यर्थी का नाम | इंटरव्यू में मिले अंक |
---|---|---|
1 | रंजीत यादव | 7 |
2 | अनिल कुमार | 10 |
3 | राकेश रंजन | 8 |
4 | विद्या भूषण | 13 |
5 | कुमार धनंजय | 14 |
6 | संदीप यादव | 12 |
7 | सुशांत कुमार | 9 |
8 | अभिषेक कुंदर | 14 |
9 | नम्रता कुमारी | 7 |
10 | सिमरन भारती | 7 |
अत्यंत पिछड़ा वर्ग
क्रम | अभ्यर्थी का नाम | इंटरव्यू में मिले अंक |
---|---|---|
1 | संदीप कुमार | 10 |
2 | स्नेहा सुधा | 14 |
3 | राकेश रंजन | 14 |
4 | उदय कुमार | 8 |
5 | संगीता कुमार | 5 |
6 | श्रीधर करूणानिधि | 7 |
7 | कौशल कुमार | 13 |
8 | दिनेश पाल | 8 |
9 | भारती कुमार | 11 |
10 | राधे श्याम | 6 |
इस संबंध में सूचना का अधिकार कानून के तहत मांगी गयी सूचना में बीपीएससी ने स्पष्ट किया है कि उम्मीदवारों द्वारा दिए गए अधिमान क्रम के आधार पर वांछित विश्वविद्यालयों के लिए उनकी सुयोग्यता तथा आरक्षण कोटिवार रिक्त पदों की उपलब्धता के आधार पर उम्मीदवारों को उनकी श्रेणी में समायोजित किया गया है। यहाँ प्रश्न उठता है कि जब अभ्यर्थियों ने एक ही पद के लिए अधिमान क्रम में 8-10 विश्वविद्यालयों का विकल्प दिया था। तो सामान्य वर्ग में रिक्त पद उपलब्ध होने के बावजूद उनका चयन सामान्य के बजाए आरक्षित श्रेणी के पद पर क्यों किया गया? एक तर्क है कि अभ्यर्थियों की इच्छा/पसंद का ख्याल रखते हुए बेहतर विकल्प का ध्यान रखा गया। यहाँ गौरतलब है कि अभ्यर्थियों के च्वॉइस का ख्याल रखा गया, पर आरक्षित वर्ग के प्रभावित अभ्यर्थियों की मेरिट का ध्यान नहीं रखा गया, जो मेधा सूची के अनुसार आरक्षित श्रेणी में चयन के हकदार थे।
ध्यातव्य है कि इसी तरह के एक मामले में पटना हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के पक्ष में न्याय-निर्णय दिया था। मामला मेडिकल कॉलेज में दाखिले से संबंधित था। न्यायादेश में न्यायालय ने स्पष्ट कहा था कि “यदि जेनरल मेरिट में आनेवाला आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी काउंसलिंग के दौरान आरक्षित वर्ग के लिए निर्धारित सीट का चयन करता है तो उसे वह सीट उपलब्ध कराया जा सकता है, परन्तु उसके द्वारा छोड़े गए जेनरल सीट पर आरक्षित वर्ग के प्रभावित अभ्यर्थी का समायोजन सुनिश्चित करना होगा।”
स्पष्ट है कि असिस्टेंट प्रोफेसरों के चयन में माननीय कोर्ट के फैसले का भी ध्यान नहीं रखा गया। इस संबंध में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग, दिल्ली द्वारा बीते 31 अक्टूबर 2019 को एक नोटिस बीपीएससी के सचिव को भेजी गयी है। इसमें कहा गया है कि प्राप्त शिकायत के मद्देनजर वह जवाब दस दिनों के अंदर आयोग को उपलब्ध करायें।
बहरहाल, वर्षांत तक असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती हेतु लगभग 8000 रिक्तयां निकलने की संभावना है। अब ये नियुक्तियां बीपीएससी के माध्यम से न होकर नवगठित विश्वविद्यालय सेवा आयोग द्वारा होंगी। यदि इन नियुक्तियों में भी बीपीएससी की आरक्षण नीति अपनायी जाएगी, तो पिछड़े वर्ग के सैकड़ों अभ्यर्थियों को नुकसान होना तय है।
(संपादन : नवल)
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