गत 6 दिसंबर, 2019 को तेलंगाना पुलिस ने साइबराबाद में उन चार युवाओं की हत्या एनकाउंटर में कर दी, जिनके उपर पशु चिकित्सक प्रियंका रेड्डी की बलात्कार के बाद जिंदा जलाकर हत्या करने का आरोप था। अब इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे ने न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद एनकाउंटर मामले की जांच तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग करेगी, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के ही सेवानिवृत्त न्यायाधीश वी. एस. सिरपुरकर करेंगे। मुख्य न्यायाधीश ने यह आदेश भी दिया है कि आयोग अपनी रिपोर्ट 6 महीने के अंदर दे।
दरअसल, मुख्य न्यायाधीश ने उपरोक्त न्यायादेश सुप्रीम कोर्ट के वकील जी, एस. मणि द्वारा दाखिल याचिका की सुनवाई करते हुए 12 दिसंबर 2019 को दी। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में एनकाउंटर की निष्पक्ष एजेंसी से जांच कराने की मांग की थी। अपनी याचिका में उन्होंने साइबराबाद पुलिस कमिश्नर वी.सी. सज्जनार और एनकाउंटर में शामिल पुलिसकर्मियों पर एफआईआर दर्ज कराने की मांग भी की थी।
गौर तलब है कि वी.सी. सज्जनार तमिल ब्राह्मण हैं और उनके उपर पूर्व में भी एनकाउंटर को लेकर सवाल उठते रहे हैं।
ध्यातव्य है कि गत 27 नवंबर, 2019 को 25 वर्षीया प्रियंका रेड्डी की जली हुई लाश साइबराबाद के एक सुनसान इलाके में मिली थी। इस घटना ने पूरे देश में लोगों को झकझोर कर रख दिया। पुलिस ने आनन-फानन में घटना के एक दिन बाद ही चार आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। जिनका नाम- शिवा, चेन्नकेशवुलु, नवीन और आरिफ था।
सोशल मीडिया पर उठे सवाल – क्यों बलात्कार के द्विज आरोपियों का एनकाउंटर नहीं करती है पुलिस?
आरोपियों को गिरफ्तार करने के करीब एक सप्ताह बाद 6 दिसंबर को उनका एनकाउंटर कर दिया गया। इसके तुरंत बाद साइबराबाद पुलिस पर सवाल उठा कि उसने फर्जी तरीके से एनकाउंटर किया। साथ ही यह सवाल भी सोशल मीडिया पर खूब जोर-शोर से उठा कि चारों आरोपियों का एनकाउंटर इसलिए किया गया क्योंकि वे गरीब और दलित-बहुजन समुदायों से थे। इस बीच यह सवाल भी खूब वायरल हुआ कि उन्नाव में बलात्कार पीड़िता को जला देने के मामले में मुख्य आरोपी त्रिवेदी बंधुओं शिवम त्रिवेदी, शुभम त्रिवेदी व अन्य आरोपियों उमेश बाजपाई, हरिशंकर त्रिवेदी और राम किशोर त्रिवेदी (सभी ब्राह्मण) का एनकाउंटर क्यों नहीं किया जा रहा है?
इसके अलावा सोशल मीडिया पर नित्यानंद, चिन्मयानंद, आसाराम बापू, और उत्तर प्रदेश में भाजपा के बाहुबली राजपूत विधायक कुलदीप सेंगर काे लेकर भी सवाल उठाया गया कि इन सभी का एनकाउंटर इसलिए नहीं किया गया क्योंकि ये न तो दलित-बहुजन हैं और न ही गरीब परिवार के।
डीएनटी समुदाय के थे एनकाउंटर के शिकार नवयुवक
बहरहाल, साइबराबाद में मारे गए चारों आरोपी किस जाति के थे, इस संबंध में नेशनल कैंपेन फॉर द डीएनटी ह्यूमैन राइट्स (एनसीडीएनटीएचआर) के संयोजक एम. सुब्बाराव का कहना है कि मृतकों में तीन शिवा, चेन्नकेशवुलु और नवीन बोया समुदाय के थे, जो घुमंतू जनजाति समुदाय के थे। वहीं आरिफ (मुस्लिम) के बारे में उनका कहना है कि वह भी डीएनटी समुदाय का ही था जो इस्लाम धर्मावलम्बी होते हैं।
तेलंगाना पुलिस द्वारा एनकाउंटर में मारे गए युवक का नाम | जाति |
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शिवा | घुमंतू जनजाति |
चेन्नकेशवुलु | घुमंतू जनजाति |
नवीन | घुमंतू जनजाति |
आरिफ | घुमंतू जनजाति (मुस्लिम) |
स्रोत : एम. सुब्बाराव, संयोजक, एनसीडीएनटीएचआर
एम. सुब्बाराव के मुताबिक घुमंतू जातियों व जनजातियों के लोगों में रेप की संस्कृति ही नहीं है। इन परिवारों में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार होते हैं। इसकी वजह यह कि सभी मिलकर अर्थोपार्जन करते हैं। उन्होंने पुलिस के एनकाउंटर पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि अभी तक जो बातें सामने आ रही हैं, वह यह बताने के लिए काफी है कि पुलिस ने फर्जी तरीके से एनकाउंटर किया है। उन्होंने यह भी कहा कि एनसीडीएनटीएचआर की तरफ से एक फैक्ट फाइंडिंग टीम मौका-ए-वारदात पर जाकर तथ्यों की जांच करेगी।
मी लार्ड ने भी उठाए थे एनकाउंटर पर सवाल
तेलंगाना पुलिस के एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर. एस. लोढ़ा ने गत 10 दिसंबर को विश्व मानवाधिकार दिवस के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करने के दौरान दुख जताया। उनका कहना था कि इस तरह के एनकाउंटर से समाज में अराजकता बढ़ेगी। वहीं उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने भी कहा कि उन्नाव दुष्कर्म पीड़िता को जला देना और हैदराबाद सामूहिक दुष्कर्म-हत्या मामले में चार आरोपियों के शव, भारत के दो पहलुओं की सटीक तस्वीर पेश करता है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट के न्यायादेश के बाद इसकी उम्मीद बंधी है कि आयोग तथ्यों की जमीनी स्तर पर जांच करेगा। सनद रहे कि मारे गए युवक अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए अपराधी नहीं बल्कि महज आरोपी थे। वे न्यायालय के आदेश पर 14 दिनों की पुलिस हिरासत में थे। सवाल उठता है कि कल जब न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट में अगर एनकाउंटर फर्जी साबित हुआ तो क्या पुलिस अधिकारियों को वही सजा मिलेगी जो आम नागरिकों को मिलती है?
(संपादन : गोल्डी/सिद्धार्थ)
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