बीते जनवरी, 2020 को दिल्ली के आंबेडकर इंटरनेशनल सभागार में ‘मूकनायक’ के प्रकाशन की सौवीं वर्षगांठ का जश्न मनाया गया। संविधान निर्माता डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पाक्षिक मराठी अखबार ‘मूकनायक’ का पहला अंक 31 जनवरी, 1920 को प्रकाशित हुआ था। इसकी सौंवी वर्षगांठ के अवसर पर इस समारोह का आयोजन नई दिल्ली से प्रकाशित पत्रिका दलित दस्तक के द्वारा किया गया। इस समारोह में देश भर के दलित पत्रकार व बुद्धिजीवी शामिल हुए।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वरिष्ठ दलित लेखक व पत्रकार मोहनदास नैमिशराय ने इस बात पर बल दिया कि आज भी मीडिया में दलितों की हिस्सेदारी नगण्य है और इसे देखते हुए एक स्वतंत्र मीडिया की शुरूआत होनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि यह दलित समाज का दुर्भाग्य है कि आजतक इस समुदाय के किसी भी राजनेता ने इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की है।
वहीं अपने संबोधन में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व दलित दस्तक के संस्थापकों में से एक प्रो. विवेक कुमार ने कहा कि डॉ. आंबेडकर के लेखन व उनके विचारों को हमें आज लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि आंबेडकर को किस रूप में याद किया जाय, यह तय करने की जिम्मेदारी हम दूसरों पर नहीं छोड़ सकते हैं। उन्होंने बताया कि दलित दस्तक में एक लेख में बाबासाहब को राष्ट्र निर्माता कहा था। इसका व्यापक असर हुआ। उन्होंने कहा कि सही मायनों में डॉ. आंबेडकर विश्व विभूति थे।
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प्रो. विवेक कुमार ने कहा कि आज दलितों के सांस्कृतिक और बौद्धिक पूंजी के निर्माण की आवश्यकता है। इसके लिए जरूरी है कि दलितों से जुड़े कम से कम पचास नायक-नायिकओं, खाद्य पदार्थों, पर्व-त्यौहारों, पर्यटन स्थलों आदि पर लेख लिखे जायें। उन्होंने कहा कि आज वह समय आ गया है जब दलित समाज एकजुट हो जाय तो वह तथाकथित मुख्य धारा की मीडिया के समानांतर खड़ा हो सकता है।
कार्यक्रम को ‘द वायर’ की वरीय संपादक आरफा खानम शेरवानी ने भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि आज भी देश में वही हालात हैं जो मूकनायक के प्रकाशन के समय थीं। आज भी मीडिया में आवाजों को दबाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आज हालत यह हो गई है कि बाबासाहब के संविधान को बदला जा रहा है। उन्होंने सीएए और एनआरसी को लेकर चल रहे आंदोलनों का जिक्र करते हुए कहा कि आज कथित तौर पर मुख्य धरा की मीडिया इस व्यापक जन आंदोलन के विरोध में खड़ा है। उन्होंने यह भी कहा कि आज जिसे वैकल्पिक मीडिया कहा जाता है वही असल में मुख्यधारा की मीडिया है। यदि ऐसा नहीं होता तो सीएए और एनआरसी को लेकर आंदोलन होता ही नहीं। इसकी वजह यह कि लगभग सभी मुख्य धारा की मीडिया संस्थानों ने इस कानून को सही ठहराया। आरफा ने यह भी कहा कि अब वैकल्पिक मीडिया को ही मुख्य धारा की मीडिया मान लिया जाना चाहिए। दूसरे प्रकार की मीडिया को गोदी मीडिया या फिर सरकारी मीडिया की संज्ञा दी जा सकती है।
अपने संबोधन में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने इस बात पर जोर दिया कि आज भी आंबेडकर को केंद्र में रखकर बहुत-कुछ लिखने और प्रकाशित किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने आरएसएस पर आरोप लगया कि कैसे वे लोग आंबेडकर को गलत तरीके से उद्धृत कर भ्रम फैला रहे हैं। उर्मिलेश ने धारा 370 का उल्लेख करते हुए कहा कि इस मामले में आंबेडकर को गलत तरीके से उद्धृत किया गया है। उन्होंने कभी नहीं कहा कि जम्मू-कश्मीर को मिलने वाला विशेष राज्य का दर्जा गलत है। उन्होंने कहा कि आज भी डॉ. आंबेडकर का वह त्यागपत्र प्रासंगिक है जो उन्होंने 1954 में केंद्रीय मंत्रिपरिषद से इस्तीफा देने के समय जारी किया था। इसमें उन्होंने जो कारण बताए हैं, उनमें से एक विदेश नीति भी है। वे चाहते थे कि अन्य मुल्कों से संबंध तो अच्छे हो हाीं, पड़ोसी देशों के साथ भी रिश्ते मधुर होने चाहिए। इस क्रम में उन्होंने लद्दाख और जम्मू को भारत में शामिल करने की बात कही थी। वहीं कश्मीर के मामले में उन्होंने कहा था कि जनमत संग्रह के जरिए वहां के लोगों की राय लेनी चाहिए कि वे भारत के साथ रहना चाहते हैं या फिर पाकिस्तान के।
कार्यक्रम में अध्यक्षीय संबोधन शांति स्वरूप बौद्ध ने दिया। उन्होंने मूकनायक के प्रकाशन की सौवीं वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए आयोजक पत्रिका दलित दस्तक को विशेष तौर पर बधाई दी। साथ ही उन्होंने कहा कि उत्पीड़ितों और शोषितों के विरोध के स्वर को अब कोई दबा नहीं सकता। इसके केंद्र में बाबासाहब के नीति और सिद्धांत हैं।
इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल, दलित चिंतक व लेखक प्रो. श्यौराज सिंह बेचैन, बुद्धशरण हंस, चंद्रभान प्रसाद, कौशल पंवार, सुमित चौहान,अवधेश कुमार, दलित दस्तक के संपादक अशोक दास सहित अनेक गणमान्य लोगों ने अपने विचार रखे। इस मौके पर पत्रिका की ओर से बहुजन टुडे नामक मोबाइल एप भी लांच किया गया। मंच का संचालन पूजा राय और मुकेश गौतम ने किया।
(संपादन : नवल)