कोरोना को लेकर पूरे देश में दहशत है। यह इसके बावजूद कि केंद्र व राज्य सरकारें अपने स्तर पर बड़े-बड़े दावे कर रही हैं। ऐसे ही दावे बिहार में भी किए जा रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि 12 करोड़ की आबादी वाले इस राज्य में केवल दो जांच केंद्र हैं, जहां कोरोना की जांच की जा रही है।
दरअसल, बिहार सरकार के लिए ऐसे दावे कोई नए दावे नहीं हैं। पिछले एक दशक से बिहार में प्रति वर्ष इंसेफलाइटिस से मासूम बच्चों की मौत होती है। परंतु,आजतक बिहार सरकार ने इसके लिए पर्याप्त इंतजाम नहीं किया है। रही बात कोरोना की तो बिहार में कोरोना से सिर्फ एक मौत की औपचारिक घोषणा हुई है। कोरोना पॉजिटीव के अब तक राज्य में 4 मामले मिले हैं, जिसमें से एक मौत हुई है।
सरकारी दावों से इतर राज्य के कई हिस्सों से कोरोना का लक्षण लिए लोगों की मौत की खबरें लगातार आ रही है, लेकिन सरकार इन सभी मामलों को कोरोना निगेटिव बता रही है। मसलन 24 मार्च को ही पटना एम्स के आइसोलेशन वार्ड में भर्ती तीन मरीजों की मौत हो गई थी। एम्स प्रशासन के मुताबिक ये तीनों मरीज कोरोना निगेटिव थे।
बदहाल और लाचार बिहार
मानव सूचकांकों मे सबसे नीचे, बिहार राज्य में कोरोना जांच के लिए सिर्फ दो केन्द्र है। पहले सिर्फ इंडियन कांउसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च से संबद्ध, राजेन्द्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (आरएमआऱआईएमएस) में जांच हो रही थी। लेकिन 24 मार्च से आईजीआईएमएस पटना में भी जांच शुरू हो गई है.
आरएमआऱआईएमएस के निदेशक प्रदीप दास के मुताबिक, “वॉयरोलॉजी में हमारे पास जो इंफ्रास्ट्रक्चर है वो वर्ल्ड स्टैंडर्ड का है. फिलहाल हम 200 लोगों की जांच रोजाना कर रहे है लेकिन ये संख्या जरूरत पड़ने पर बढ़ाई भी जा सकती है क्योंकि हमारे पास चार मशीन है।”
सूबे के दो सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों का हाल, एक में मशीन तो दूसरे में टेस्टिंग किट नहीं
बताते चलें कि हाल ही में पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) और दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल (डीएमसीएच) की वॉयरोलॉजी रिसर्च और डायगनोस्टिक लैबोरेट्री को आईसीएमआर ने कोरोना जांच की अनुमति दी है. लेकिन बदकिस्मती से इन दोनों ही अस्पतालों के पास पर्याप्त सुविधा नहीं है। पीएमसीएच के पास जांच के लिए आवश्यक मशीन (आरटी-पीसीआर) नहीं है तो डीएमसीएच के पास मशीन तो है लेकिन टेस्टिंग किट उपलब्ध नहीं है।
आलम यह है कि कुछ दिन पहले कोरोना की जांच के लिए उमड़ी भीड़ को देखकर डीएमसीएच के डाक्टरों ने काम काज ही ठप्प कर दिया था। वहीं राज्य सरकार ने पटना के जिस नालंदा मेडिकल कॉलेज को आइसोलेशन वार्ड में तब्दील किया है, वहां भी चिकित्सकों को पर्सनल प्रोटेरक्शन किट उपलब्ध नहीं होने के कारण 83 जूनियर चिकित्सकों ने क्वारेन्टाइन में भेजने की मांग 23 मार्च को की थी।
कहने की आवश्यकता नहीं है कि कोरोना से लड़ने के लिए जांच किट, पर्सनल प्रोटेक्शन इक्वीपमेंट की अनुपलब्धता है और अगर स्थिति बदतर हुई तो वेंटीलेटर की कमी से भी राज्य को जूझना पड़ेगा।
सिर्फ लॉक डाउन से नहीं होगा ‘गो कोरोना गो’
इंडियन डाक्टर फॉर पीस एंड डेवलेपमेंट के राष्ट्रीय सचिव डॉ. शकील के मुताबिक, “ लॉक डाउन का बहुत असर नहीं होगा क्योंकि सरकार कोरोना से निपटने के लिए पूरी प्रक्रिया को नहीं अपना रही है जिसमें सबसे पहले आइसोलेट यानी अकेले रहना, फिर जांच, उसके बाद उपचार और उसके बाद ट्रेस (नए मरीज हों तो उनकी पहचान) करना होगा। जबकि सरकार ने सिर्फ लॉक डाउन किया है।”
(संपादन : नवल)