बिहार की सामाजिक और राजनीतिक जमीन पर जातियों का संघर्ष निरंतर जारी रहेगा। इन संघर्षों ने कई बार बदलावों की नयी राह निकाला है तो कई बार सामाजिक जड़ता को ध्वस्त करने का मुख्य कारक बना है। बदलावों की यह लड़ाई कई बार प्रतीकों के माध्यम से शुरू होती है और मानवीय संघर्ष में तब्दील हो जाती है। इन्हीं प्रतीकों में एक है रेशमा और चौहरमल की प्रेमकथा।
यह प्रेमकथा पटना जिले के मोकामा टाल इलाका से जुड़ी है। प्रचलित कथा के अनुसार, रेशमा भूमिहार जाति की थी, जबकि चौहरमल पासवान जाति के युवा पहलवान थे। इसे दो जातियों का प्रतीक भी मान सकते हैं। इन दोनों जातियों के बीच सामाजिक असमानता थी और आपस में प्रेम का सवाल ही नहीं उठता था। लेकिन रेशमा चौहरमल से प्रेम करने लगी। बाद में इस प्रेम प्रसंग को लेकर पासवान और भूमिहारों के बीच जातीय संघर्ष भी हुआ।
रेशमा और चौहरमल को लेकर कई अन्य मान्यताएं भी प्रचलित हैं। लेकिन इन सबके केंद्र में भूमिहार और पासवान की लडा़ई में पासवान की जीत हुई। बाद में चौहरमल पासवान जाति की अस्मिता और वीरता के प्रतीक बन गये। चौहरमल के मूल गांव चाराडीह में हर वर्ष मेला भी लगता है।
इसके ठीक विपरीत भूमिहार जाति के लोग चौहरमल को अपनी प्रतिष्ठा के खिलाफ ‘प्रतीक पुरुष’ मानते हैं। चौहरमल की प्रतिमा उनके लिए असहज लगती है। इसी असहजता का प्रतिफल है शेखपुरा जिले के बरबीघा प्रखंड मुख्यालय के पास अवस्थित गांव नारायणपुर। इस गांव में चौहरमल की आदमकद प्रतिमा स्थापित है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस प्रतिमा के दोनों हाथों को भूमिहार जाति के असामाजिक तत्वों ने क्षतिग्रस्त कर दिया। इसके बाद आसपास के गांव में तनाव उत्पन्न हो गया। पासवान जाति के सामाजिक कार्यकर्ता और भीम आर्मी के प्रदेश संयोजक अमर आजाद ने क्षतिग्रस्त तस्वीर के साथ एक पोस्ट फेसबुक पर अपलोड किया। इस घटना के भयावहता के बारे में भी लिखा। फेसबुक के माध्यम से प्रतिमा क्षतिग्रस्त करने की सूचना डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय तक पहुंची। उन्होंने तत्काल शेखपुरा के एसपी को मामले को देखने का निर्देश दिया। एसपी ने प्रतिमा को मरम्मत करवाया और मामला शांत कराया। इसके बावजूद इलाके में तनाव व्याप्त है।
स्थानीय स्तर पर बताया जा रहा है कि इलाके में भूमिहार और पासवान जाति के बीच सामाजिक सम्मान को लेकर मनमुटाव शुरू हुआ था। भूमिहारों द्वारा पासवानों के खिलाफ अपशब्द कहे जाने के बाद टकराव बढ़ गया था और मामला मारपीट तक पहुंच गया था। दोनों ओर से थाने में प्राथमिकी दर्ज करवायी गयी थी। इसी बीच 12 मई की रात को असामाजिक तत्वों ने चौहरमल की प्रतिमा को क्षतिग्रस्त कर दिया।
सवाल सिर्फ प्रतिमा को क्षतिग्रस्त करने का नहीं है। मामला प्रतिमा की आड़ में एक जाति विशेष की सामाजिक और राजनीतिक सत्ता को चुनौती देने का है। समाज में अप्रासंगिक होती सामंती शक्तियां अब नये रूप में सामने आ रही हैं। अपने अहंकार को तुष्ट करने के नये-नये माध्यम अपना रही हैं। प्रतिमा को तोड़ना उसी का परिणाम है।
भीम आर्मी के राज्य संयोजक अमर आजाद कहते हैं कि सामंती शक्तियों द्वारा चौहरमल की प्रतिमा को क्षतिग्रस्त कर समाज में सद्भाव बिगाड़ने का प्रयास किया गया है। इस मामले की निष्पक्ष जांच की जाय और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाय। प्रशासन ने क्षतिग्रस्त प्रतिमा को ठीक करवाकर सराहनीय काम किया है। उन्होंने यह भी कहा कि दलितों के साथ अमर्यादित व्यावहार और अपमानजनक शब्दों को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सामंती ताकतों को भी बदलते सामाजिक यथार्थ को स्वीकारना चाहिए और दूसरे की प्रतिष्ठान का सम्मान करना चाहिए।
बहरहाल, सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन और आरक्षण के कारण सदियों से वंचित समाज में आ रही जागृति शोषक वर्ग को पसंद नहीं आ रही है। यही कारण है कि हाल के वर्षों में बिहार में डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा को ध्वस्त करने की खबरें भी चर्चा में आती रही हैं। इस बीच चौहरमल की प्रतिमा को क्षतिग्रस्त करना उसी मानसिकता का विस्तार है। यह वंचित जातियों में आ रही सामाजिक चेतना को कुंद करने की चेष्टा भी है। इससे उपेक्षित, शोषित और वंचित जातियों को सतर्क रहने की जरूरत है।
(संपादन : नवल)