बिहार की राजधानी पटना समेत पूरा देश लॉकडाउन की जकड़न से मुक्त होने का प्रयास कर रहा है। इससे मुक्ति का प्रयास शुरू भी हो गया है। लॉकडाउन के चौथे चरण में प्रशासन सामान्य जनजीवन को बहाल करने की कोशिश कर रहा है। इस दिशा में पटना के जिलाधिकारी कुमार रवि ने दुकानों और प्रतिष्ठानों को खोलने का आदेश दिया है। इसके तहत एक-एक दिन छोड़कर दुकानों और प्रतिष्ठानों को खोलने का आदेश देते हुए उन्हें श्रेणीवार बंटवारा भी कर दिया है। यह सामान्य रूप से जिला अधिकारी कार्यालय का आदेश है। दुकानों और प्रतिष्ठानों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है।
लेकिन इस बंटवारे में भी सवर्ण जातियों ने आरक्षण की जड़ तलाश ली है। इसकी आड़ में जिलाधिकारी पर जातिवादी हमले शुरू हो गये हैं। जिलाधिकारी कार्यालय के आदेशानुसार, सैलून यानी नाई की दुकान मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को खोली जाएगी। आदेश के आलोक में सैलून खुलने भी लगे हैं। सैलून के दिन को लेकर कुछ सवर्ण पत्रकारों ने इसका धार्मिक और मान्यता का पक्ष उठाकर डीएम हमला कर दिया है। मान्यता के अनुसार, हिंदू समाज में लोग मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को बाल या दाढ़ी बनवाने से परहेज करते हैं। खासकर दाढ़ी को लेकर इस तरह की बंदिश ज्यादा प्रचलित है।
इसी आलोक में पटना कुछ पत्रकारों ने अपने फेसबुक पर अभियान चलाया है और जिलाधिकारी को निशाने पर लिया है। उनकी जाति को टारगेट कर कमेंट कर रहे हैं। जिलाधिकारी कुर्मी जाति के हैं और आरक्षण की भाषा में ओबीसी श्रेणी से आते हैं। हालांकि सवर्ण पत्रकारों के आक्षेपों को जबाव भी दिया जाने लगा है।
एक व्यक्ति ने डीएम के आदेश पर दिन के आधार पर सवाल उठाया है तो कई ने जाति और आरक्षण को बीच में लाकर खड़ा दिया है। सवर्णों की मानसिकता आज भी जाति के दायरे से बाहर निकलने को तैयार नहीं है और आरक्षण को लेकर उनके अंदर कुंठा भरा हुआ है। वे आज भी खुद को सर्वगुण संपन्न होने के भ्रम से बाहर नहीं निकल रहे हैं, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीबी की आड़ में सवर्णों को आरक्षण देकर उन्हें आरक्षित श्रेणी में डाल दिया है।
डीएम के आदेश पर उत्पन्न विवाद के बाद उनके पक्ष में अर्जक संघ के सांस्कृतिक समिति के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र पथिक कहते हैं कि जिलाधिकारी का निर्णय क्रांतिकारी है। यह मानवतावादी दृष्टिकोण है। इस निर्णय से पोंगापंथी मान्यताओं को ठेस पहुंचेगी और प्रगतिशील विचारों का प्रचार-प्रसार होगा। वे कहते हैं कि अर्जक संघ जिलाधिकारी के आदेश का स्वागत करता है। ब्राह्मणवादी व्यवस्था में दैनिक कार्यों को दिन से भी जोड़ दिया गया है, ताकि कामगारों के लिए काम के अवसर सीमित किये जा सकें।
प्रशासनिक स्तर पर निर्णयों को अधिकारी की जाति या धर्म के आधार पर आलोचना करना उचित नहीं कहा जा सकता है। इससे इतना स्पष्ट होता है कि समाज में जाति की जड़ काफी गहरी है और इससे मुक्ति का प्रयास होता भी नहीं दिख रहा है। बल्कि कभी-कभी जाति उन्मूलन की कोशिश में जाति की जड़ता को ही प्रश्रय मिलता है। इससे समाज, व्यवस्था और प्रशासन सबको सचेत रहने की जरूरत है।
(संपादन : नवल)