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प्रवासी बहुजन मजदूरों को भूखा रख किस जुर्म की सजा दे रही हैं सरकारें?

प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्य लौटने पर क्वारेंटाइन केंद्रों में रखा जा रहा है। लेकिन जैसे-तैसे जान बचाकर घर पहुंचे मजदूर तमाम परेशानियां झेल रहे हैं। झारखंड से विशद कुमार, उत्तरप्रदेश से सुशील मानव और छत्तीसगढ़ से तामेश्वर सिन्हा की खबर

झारखंड से विशद कुमार, उत्तर प्रदेश से सुशील मानव व छत्तीसगढ़ से तामेश्वर सिन्हा की खबर

प्रवासी मजदूर यदि पैदल ही हजारों मील की दूरी तय करने का साहस न दिखाते तो मुमकिन था कि सरकारें उन्हें उनके घर ले जाने की दिशा में कोई पहल ही न करतीं।  लेकिन उनकी परेशानियों का अंत अब भी नहीं हुआ है। अधिकांश राज्यों में बाहर से आए प्रवासी मजदूरों को क्वारेंटाइन केंद्रों में रखा गया है। इनमें बहुसंख्यक दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के हैं। इन केंद्रों में तमाम तरह की समस्याएं हैं। झारखंड के विभिन्न जिलों में चल रहे क्वारेंटाइन सेंटरों की स्थिति यह है कि कहीं-कहीं इनमें अच्छी सुविधा मिल रही है तो कहीं खाने-पीने की भी परेशानी है। घर से दूर कोरोना संदिग्ध एक कमरे में बंद होकर रह गए हैं। इस स्थिति में इन्हें मानसिक तनाव भी हो रहा है। 

झारखंड सरकार के मुताबिक फिलहाल कुल 51,718 लोग क्वारेंटाइन में हैं और उन्हें सूबे के दो हजार स्कूलाें में रखा गया है। सरकार का दावा है कि इन केंद्रों में हर तरह की सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है। जबकि जमीनी हकीकत एकदम उलट है। इन केंद्रों में नहाने, खाने एंव पीने का पानी के अलावा बिजली, साफ-सफाई और शौचालय की सुविधा भी इतनी खराब हैं कि प्रवासी मजदूर केंद्रों में ही विरोध प्रदर्शन करने को मजबूर हो रहे हैं। 

चाईबासा में भागने को मजबूर हुए मजदूर

झारखंड के चाईबासा जिला स्थित टाटा काॅलेज परिसर के कोल्हान यूनिवर्सिटी मल्टीपरपज भवन स्थित क्वारेंटाइन सेंटर में लगभग 100 प्रवासी मजदूर रह रहे हैं। कोरोना जांच नहीं होने व भोजन नहीं मिलने के कारण 17 मई को 24 मजदूर सेंटर से भागकर घर जा रहे थे। जब रास्ते में पुलिस ने उनसे पूछा तो बताया कि क्वारेंटाइन सेंटर में ना तो कोरोना जांच हो रही है और ना ही भरपेट भोजन मिल रहा है। वहीं लोहरदगा जिले के कुडू प्रखंड अंतर्गत आईटीआई सेंटर में बने क्वारेंटाइन सेंटर में अभावों से नाराज़ मजदूरों ने पिछले दिनों काफी हंगामा मचाया। केंद्र में न तो बिजली की समुचित सुविधा थी और न ही मजदूरों को सोने के लिए चटाई या दरी की व्यवस्था की गई। 

गढ़वा में सरकार खाना देने में भी असमर्थ, हजारीबाग में खुले में शौच को मजबूर 

गढ़वा जिला मुख्यालय समेत प्रखंड व पंचायतों में कुल 220 लोगों को 50 क्वारेंटाइन केंद्रों में रखा गया है। हरिहरपुर, खरौंधी प्रखंड के राजी तथा भवनाथपुर प्रखंड मुख्यालय में संचालित सेंटरों में हाल के दिनों तक अव्यवस्था की स्थिति थी। मामला प्रकाश में आने के बाद उपायुक्त हर्ष मंगला ने खुद केंद्र का निरीक्षण कर अव्यवस्था को दूर करने का निर्देश दिया था। बावजूद इसके हरिहरपुर व राजी में रह रहे लोगों का खाना उनके घर से आ रहा है। 

जबकि रांची से सटे हजारीबाग के कटकमसांडी प्रखंड के पबरा पंचायत भवन में बने क्वारेंटाइन केंद्र में कुल 11 प्रवासी मजदूरों को क्वारेंटाइन किया गया है। 11 प्रवासियों में एक महिला व दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। इन मजदूरों को कोई सरकारी सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं। मजदूरों को शौच के लिए बाहर जाना पड़ रहा है। साथ ही खाना उनके परिजनों द्वारा घर से बनाकर भेजा जा रहा है। पंचायत भवन में गंदगी का अंबार है। 

गिरिडीह में दलित होना पड़ रहा महंगा 

उधर गिरिडीह जिला के बगोदर प्रखंड के तुकतुको गांव के हरिजन टोला की निमा टोंगरी में क्वारेंटाइन सेंटर के अभाव में प्रवासी मजदूरों ने गांव से बाहर प्लास्टिक तिरपाल और बांस से घेरकर क्वारंटीन सेंटर बना लिया है और उसी में रह रहे हैं। ये लोग कोरोना के साथ-साथ सांप और वज्रपात से भी डरे हुए हैं। वे मानते हैं कि सरकार द्वारा कोई इंतजाम नहीं किये जाने की एक वजह उनका दलित होना भी है।  

झारखंड में जेल में तब्दील एक क्वारेंटाइन सेंटर

वहीं धनबाद के डिगवाडीह स्थित कौशल विकास केन्द्र में पिछले 8 मई को वेल्लौर से आए लोगों को रखा गया था, बाद में महाराष्ट्र से आए लोगों को भी यहीं रख दिया गया। वेल्लौर से आए लोगों का अभी तक कोरोना जांच रिपोर्ट नहीं आयी है, ऐसे में महाराष्ट्र से आये लोगों को भी यहीं रख दिया गया है। जिसका विरोध पहले से रह रहे लोगों ने किया है। कारण यह है कि अभी तक इनकी जांच रिपोर्ट नहीं आयी है, जिससे इन लोगों में संक्रमण का डर मन में समा गया है। साथ ही रात में बिजली कटने के बाद मोमबत्ती की भी सुविधा नहीं है।

उत्तर प्रदेश में सरकार नहीं, खुद के भरोसे प्रवासी मजदूर

झारखंड के गिरिडीह के बिड़नी प्रखंड के क्वारेंटाइन सेंटर में चापाकल का हाल –  लोहे के हैंडिल के बजाय बांस के जरिए पानी निकालता एक प्रवासी मजदूर

गोरखपुर जिले के चौरीचौरा तहसील ब्रह्मपुर ब्लॉक गांव राघवपट्टी में 15 लोग महाराष्ट्र और बेंगलुरु से लौटे हैं। राघवपट्टी के प्रधान मंटू यादव हैं। ग्राम पंचायत स्तर पर प्राथमिक विद्यालय को ही क्वारंटाइन सेंटर में तब्दील किया गया है। यहां चारपाई लाइट की व्यवस्था की गई है। खाने के लिए पत्तल, गिलास वगैरह लाकर रख दिया गया है। लेकिन खाने के लिए ये तय किया गया है कि खाने की व्यवस्था ग्राम पंचायत नहीं करेगी। बल्कि जिन-जिनके घर के लोग हैं वो लोग अपने घर से खाना बनाकर लाएंगे और दूर से पत्तल में निकालकर देंगे। क्वारंटीन किए गए लोग खाकर अपना पत्तल एक जगह रख देते हैं। 

इलाहाबाद के फूलपुर तहसील के ग्रामसभा पाली में कई प्रवासी मजदूर दिल्ली, सूरत, भिवंडी और गुड़गांव से लौटकर आए हैं। पाली गांव के ग्राम प्रधान अमरनाथ हैं जो दलित वर्ग से आते हैं। यहां भी एक स्कूल को ग्राम पंचायत स्तर पर क्वारंटाइन सेंटर में तब्दील किया गया है। लेकिन यहां क्वारंटाइन सेंटर में कोई नहीं है। अधिकतर लोग अपने घरों में क्वारेंटाइन हैं। जैसे राजेश चंद्र दिल्ली की एक फैक्ट्री में काम करते थे। वो चार दिन पहले ही गांव लौटे हैं लेकिन प्राथमिक स्कूल में बने क्वारेंटाइन सेंटर में रहने के बजाय वो अपने खेत में पंपिंग सेट की छांव के लिए बने मड़हा में रह रहे हैं। निकित मुंबई में गन्ना पेरने का काम करते थे वो भी सात दिन पहले लौटे हैं और अपने गोरुवारि (सरिया जहां पालूत मवेशी बांधे जाते) में होम क्वारेंटाइन होकर रह रहे हैं। इसी तरह राजेश अपने पुराने घर (कच्चे घर) में रह रहे हैं।     

छत्तीसगढ़ में पंचायतों पर दारोमदार

वहीं आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में हालात तुलनात्मक रूप से अच्छे हैं। इसकी वजह यह कि यहां क्वारेंटाइन केंद्रों का संचालन स्थानीय पंचायतों के जिम्मे है। कांकेर जिले के कांकेर प्रखंड में सरपंच पांचू नायक बताते हैं कि राज्य सरकार के निर्देश पर गांवों में क्वारेंटाइन केंद्र बनाए गए हैं जहां वापस लौटे मजदूरों को रखा जा रहा है। उनके रहने-सहने से लेकर भोजन आदि का प्रबंध करने के लिए चौदहवें वित्त आयोग की अनुशंसा के तहत पंचायतों को राशि उपलब्ध करायी जा रही है। इसके तहत आवश्यक वस्तुओं की खरीद पहले करनी पड़ती है और फिर राशि का भुगतान आपूर्तिकर्ता के बैंक खाते में सीधे कराया जाता है। पांचू नायक के मुताबिक राज्य सरकार के चिकित्सक नियमित रूप से प्रवासी मजदूरों के स्वास्थ्य की जांच करते हैं। फिलहाल उनके यहां कोई समस्या नहीं है। 

(संपादन : नवल/अमरीश)

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एफपी डेस्‍क

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