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चुनावी गहमागहमी के बीच छटपटाता पटना का एक दलित बहुल गांव

बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो गई है। घुमक्कड़ पत्रकार प्रणय प्रियंवद जायजा ले रहे हैं पटना के एक दलित बहुल गांव का। यह वही गाँव है जहां 2016 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक वृद्ध दलित के हाथों झंडोत्तोलन कराया था

आंखों देखी

यह बिहार के पटना जिले का एक गांव है। नाम है चिलबिल्ली। जिला मुख्यालय से करीब 18 किलोमीटर दूर। राज्य सचिवालय, विधानसभा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित उनके कबीना सहयोगियों के आवास से यहाँ की दूरी मुश्किल से 12 किलोमीटर है। प्रशासनिक दृष्टिकोण से यह फुलवारी प्रखंड का हिस्सा है। यहां अनेक जातियों के लोग रहते हैं। आबादी के हिसाब से सबसे ज्यादा कुर्मी और दूसरे स्थान पर रविदास समुदाय के लोग हैं। 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2016 में इस गांव में आए थे। वे हर साल 15 अगस्त को पटना के निकट के किसी महादलित (अब तो सभी दलित जातियों को महादलित श्रेणी में शामिल कर दिया गया है) गांव में जाते हैं और वहां के सबसे बुजुर्ग दलित रहवासी बृजनंदन रविदास से झंडोत्तोलन कराते हैं। पटना के डीएम सहित कई अफसरों के साथ वे जन-गण-मन गाते हैं। इस अवसर पर वे कई वायदे भी करते हैं। इन चार सालों में उनमें से कितने वायदे पूरे हुए, यह जानने हम उस गांव में पहुंचे।

खुले में शौच करने की मजबूरी

पटना में अनीसाबाद से फुलवारी की तरफ बढ़ने पर बलम्मीचक से दक्षिण की तरफ एक सड़क जाती है। इस मोड़ से लगभग सात किमी दूर चिलबिल्ली जाने वाली सड़क है। हमें लगा था कि यह सड़क अब तक चकाचक हो चुकी होगी। लेकिन हमें यह देख कर अचरज हुआ कि चिलबिल्ली जाने वाली मुख्य सड़क पर नुकीले पत्थर दिख रहे हैं और पैदल क्या बाइक सवार भी सड़क के बिल्कुल किनारे से होकर चलने को मजबूर हैं। सड़क पर कई जगह गड्ढे हैं। इस पर साइकिल से चलना और भी कठिन है। पैदल चलने वालों के लिए भी किनारे से चलना मुश्किल है क्योंकि गांव के बच्चे और कई बड़े भी सुबह और शाम यहीं खुले में शौच करते हैं। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यहां आकर देखना चाहिए कि खुले में शौच न करने की उनकी अपील का कितना असर यहां है। आखिर क्या वजह है कि लोग आपकी बात नहीं मानते हैं? 

मैंने इसी मुद्दे से बात शुरू करने की कोशिश की। मेरे सामने एक नवनिर्मित सामुदायिक भवन है। स्थानीय ग्रामीण बता रहे हैं कि इसके गेट पर ताला लगा रहता है। इसके कैंपस में एक चापाकल है। लोग दीवार फांदकर अंदर जाते हैं और पानी भरते हैं या स्नान आदि करते हैं। वार्ड सदस्य रमेश कुमार बताते हैं कि दो वर्ष पहले यह सामुदायिक भवन बनकर तैयार हुआ था। इसकी दीवार पर  विधायक श्याम रजक के नाम का बोर्ड भी  लगा हुआ है परंतु इसका उद्घाटन होना बाकी है, इसलिए ताला लगा है। 

थोड़ी ही दूर एक नींव जैसा कुछ दिख रहा है। रमेश बता रहे हैं कि यहां एक आंगनबाड़ी केन्द्र बनना था। लेकिन नींव भर क्यों? रमेश बताते हैं कि इसका निर्माण दो साल पहले शुरु हुआ पर काम अधूरा पड़ा है, कारण यह कि ठेकेदार को रुपए नहीं मिले। कहा गया है कि काम करने के बाद रुपए मिलेंगे। 

स्वास्थ्य उपकेंद्र है, लेकिन डाक्टर नदारद

गांव में जन-स्वास्थ्य का हाल कैसा है यह जानने की कोशिश कर रहा हूं। यहां एक प्राथमिक उपस्वास्थ्य केन्द्र पहले से है। उसी के ठीक सामने आयुष्मान भारत के अंतर्गत अतिरिक्त स्वास्थ्य केन्द्र बनाया गया है। लोग बताते हैं कि एक एएनएम सप्ताह दो सप्ताह में एक बार आती है और टीका लगती है बच्चों को। यहां इलाज के लिए डाक्टर की अस्थायी व्यवस्था भी नहीं है। आयुष्मान भारत की राशि से बने अतिरिक्त स्वास्थ्य केन्द्र की पेटिंग आकर्षक है परन्तु इलाज का कोई बेहतर इंतजाम नहीं है, यह जानते ही यह  बदरंग सा दिखने लगता है। गांव के लोग बताते हैं कि फुलवारी के स्वास्थ्य प्रभारी को शिकायत करने पर भी प्रतिदिन नहीं खुलता। साल भर से इस हेल्थ सेंटर यही हाल है।

स्वास्थ्य उपकेंद्र में ताश खेलते युवा

एक मध्य विद्यालय यहां है। गांव के नाथू रविदास कहते हैं कि तब मुख्यमंत्री ने कहा था कि यहां 10+2 स्तर का स्कूल बनाया जाएगा। वे कहते हैं कि मुख्यमंत्री को अपना वादा याद करना चाहिए। यहां के बच्चे-बच्चियों को सात किलोमीटर दूर पढ़ने जाना पड़ता है। वे बताते हैं कि 2016 में मुख्यमंत्री को दिखाने के लिए उस समय सड़क रिपेयर कर दी गई थी। जाते ही कुछ दिनों बाद बुरा हाल हो गया

महिलाओं का अपना बैंक

मैं देख रहा हूं कि चिलबिल्ली की एक गली में जमीन पर बैठकर कुछ महिलाएं मीटिंग कर रही हैं। एक छोटा का बक्सा रखा हुआ है बीच में। इसमें रुपए रखे हुए हैं कुछ। सामने पासबुक जैसा कुछ रखा हुआ है, जिस पर लिखा है – सामुदायिक आधारित बचत समूह सीबीएसजी। मुझे देख कई महिलाएं उठकर जाने लगती हैं। मैं उनसे अपील करता हूं कि आप लोग उठिए नहीं। मैं आप सबों से बात करना चाहता हूं। महिलाएं माथे पर घूंघट रख लेती हैं। इनका पूरा चेहरा नहीं दिख रहा है। एक महिला सभी महिलाओं से रुपए जमा करवाती हैं। ग्रुप में 30 महिलाएं हैं। हर सप्ताह 100 रुपए जमा करती हैं। साल में पांच हजार रुपए जब हो जाता है तो इस रुपए से कोई महिला कुछ भी छोटा सा कारोबार करती है। बीच में जरुरत पड़े तो कोई महिला पांच हजार ले सकती हैं। हां उसे समय पर वापस भी करना पड़ता है। किसी  घर के दो कार्ड हों तो 10 हजार भी ले सकती हैं। यह एक तरह का लोन है। एक सौ रुपए पर दो रुपए ब्याज लगता है। महिला बताती है कि कोरोना के समय पेटी बंद था। तीन-चार महीने से बंद थी, अभी खुली है। कोरोना में पेटी खाली ही हो गई है। लेकिन फिर भी जिसकी जितनी औकात है, रुपए जमा कर रही हैं। एक महिला बताती हैं कि पेटी में हमारा पैसा है, जब चाहे निकाल लेते हैं नहीं तो सूदखोर से पैसे लेने पड़ते हैं। इस बैंक में कोई मैनेजर नहीं हैं। हम सभी इस पेटी की मालिक हैं। साल भर के बाद यह बचत राशि हम सब आपस में बांट लेते हैं। साल भर बाद फिर से जमा करना शुरु करते हैं। 

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एक महिला देवमुनि देवी 5 सौ रुपए लेकर जमा करने आई हैं। वह कहती हैं दो महीना पर जमा करने आई हैं। कहती हैं पेट काटकर पैसे जमा करते हैं, वक्त-बेवक्त मदद मिल जाती है। एक महिला बताती है कि टीकाकरण महीना में एक दिन यहां के अस्पताल में होता है। कोई महिला गर्भवती होती है तो जांच के लिए सात किलोमीटर दूर फुलवारी जाना पड़ता है। हम चाहते हैं कि यहां हर दिन डाक्टर बैठे। टैम्पू वाला को बुलाना पड़ता है, पांच सौ – हजार रुपए लगते हैं तब चेकअप के लिए जाती हैं। 20-20 के तीन चार नोट और दो सौ के नोट देवमुनि देवी लेकर आई हैं। काफी मुड़े हुए हैं ये सारे नोट। सब को सीधा कर रही हैं। लेट से जमा कर रही हैं रुपए इसलिए सौ रुपए पर दो रुपए फाइन भी लग रहा है। दस रुपए फाइऩ लग गया। इन्हें बैंक में जमा क्यों नहीं करते। इस पेटी में जमा रहता है तो रात में भी निकाल लेते हैं। यह हम सब का अपना बैंक है। कौन बैंक का चक्कर लगाए। 

दलित चाहते हैं कागजी नहीं जमीनी विकास

गांव में पीपल के पेड़ के नीचे कुछ लोग जुटे हुए हैं हमसे बात करने। अपनी बात कहने। गांव के लोग काफी वोकल हैं, अपनी बात रखना जानते हैं। आपका क्या नाम है? मेरा नाम चंदेश्वर रविदास है। क्या चंद्रेश्वर? नहीं, चंदेश्वर रविदास कहिए। अच्छा चंदेश्वर रविदास। वे बता रहे हैं कि 15 अगस्त 2016 को इस आदर्श गांव चिलबिल्ली में बृजनंदन रविदास से झंडोत्तोलन कराया गया। मुख्यमंत्री के सामने प्रस्ताव रखा गया कि यहां मुख्य सड़क बनायी जाए, 10+2 स्कूल बनाया जाए, आंगनबाड़ी व सामुदायिक भवन बनाया जाए और गली व नाली बनायी जाए। ये चार प्रस्ताव थे। वे बताते हैं चिलबिल्ली के दलित टोले में ज्यादातर रविदास, मुसहर, पास, पासवान भी हैं। यानी चार जाति के लोग हैं। 

नींव के बाद ठप्प है आंगनबाड़ी केंद्र का निर्माण

चंदेश्वर रविदास कहते हैं कि यहां रात्रि पाठशाला का इंतजाम भी किया जाए। हेल्थ सेंटर में हर दिन डाक्टर भेजा जाए। जब निर्माण कार्य हुआ था तब डाक्टर आते थे। जर्जर सड़क का पुनर्निमाण कराया जाए। जितेन्द्र कुमार रविदास कहते हैं कि सरकार सड़क को जल्द से जल्द पक्की करवाएं। स्कूल है पर लइकन (बच्चों) की पढ़ाई पर ठीक से ध्यान नहीं है। मास्टर को कहते हैं जब ठीक से पढ़ाएं तो वे कहते हैं कि हमारे पास कई तरह के काम सरकार दे देती है हम क्या करें।  जितेन्द्र कहते हैं कि ऐसी पढ़ाई होगी तो मैट्रिक अच्छे नंबर से बच्चे केैसे पास करेंगे? आप ही बताइए। रही शौचालय की बात तो कई लोगों ने बनवा भी लिया है, परंतु कइयों के बैंक खाते में राशि नहीं आई। 

स्थानीय वार्ड पार्षद रमेश कुमार

शौचालय की राशि क्यों नहीं मिली? क्या आपने कभी कोई शिकायत की? जवाब वार्ड सदस्य रमेश जी ने दिया। हम क्या बताएं सर। बीडीओ साहब के पास जाते हैं तो वहां दिखा दिया जाता है कंप्यूटर पर कि शौचालय की राशि दे दी गई है, परंतु यहां कई लोगों के खाते में राशि आती ही नहीं है। लिखकर भी लोगों ने दिया पर कुछ नहीं हुआ। सुखनंदन चौधरी बताते हैं कि पासबुक का नंबर ले गया, सिलेट में नाम लिखा कर मेरा फोटो लिया पर आज तक शौचालय का एक पैसा नहीं मिला।

एक महिला सामने आती हैं। पूछने पर कहती हैं 22 साल पहले इस गांव में विवाह के बाद आयीं। अभी इनकी उम्र वैसे तो 40 वर्ष के आसपास की है परंतु अधेड़ावस्था को पार कर वृद्धावस्था के दरवाजे पर खड़ी दिखती हैं।  इस सवाल पर कि 22 साल में चिलबिल्ली कितना बदला वह कहती हैं कि हमको नहीं लगता है कि कुछ भी बदला है। यह गांव नहीं बदलेगा। घूसखोरी है तो कहां से बदलेगा। सरकार कहती है कि शौचालय बनवा लीजिए तब पैसा देंगे। पहले पैसा कहां से लाएंगे। खाना खाएंगे कि शौचालय बनाएंगे। हम तो अब किसी को वोट भी नहीं देंगे। खुल कर कह रहे हैं हम कि वोट नहीं देंगे, नहीं देंगे। वह जब यह कह रही है तो कैसे लोकतंत्र हार रहा है यह महसूस कीजिए। शौचालय नहीं है तो हम सड़क किनारे जाते हैं। शौचालय भी ऐसा बना रहा है कि साल भर ठीक से नहीं चलता है। ऐसा बनवाए की चार बरस चले। पैसा दे सरकार तो हम बनवाएंगे शौचालय।

शिलालेख लगाने के बाद भूल गए स्थानीय विधायक व नीतीश मंत्रिमंडल में मंत्री श्याम रजक

गांव के एक बुजुर्ग आगे आते हैं और बताते हैं कि 1997 में गांव में कुछ काम हुआ था। 130 घर इंदिरा आवास से बने। बीच में अशोक बाबू नाम के एक कार्यपालक अभियंता बने थे, उनसे संपर्क करने पर रोड का कालीकरण हुआ था। यहां इस बात को समझिए कि कोई पदधिकारी थोड़ा भी काम कर देता है तो लोग उसका नाम याद रखते हैं। वे आगे बताते हैं कि 2016 में जब मुख्यमंत्री आए तब केवल उनको दिखाने के लिए, भरमाने के लिए सड़क बनाया गया। मुख्यमंत्री के जाने के दो महीने के बाद ही सड़क पहले जैसी खराब हो जाती है।

बहरहाल, चिलबिल्ली में जल मीनार बन रहा है। इससे पूरे गांव में पेयजल की आपूर्ति होगी। ईंट उतारा जा रहा है। ईंट के रंग को देखकर ही लग रहा है कि ईंटें घटिया क्वालिटी की हैं। ईटें उतार रहे मजदूर ने पूछने पर बताया कि ईंट तीन तरह का होता है। एक नंबर, डेढ नंबर और दो नंबर। हमको कहा गया डेढ नंबर का पहुंचा दो, हम ले आएं। ईंट की क्वालिटी ऐसी है कि मजदूर काफी सावधानी से उसे उतार रहा है। कुछ इंच की दूरी से ईंट गिराने पर वह टूट जा रहा है। यह तो दो नंबर भी नहीं तीन नंबर का है। वार्ड मेंबर बताते हैं कि यह काम लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के द्वारा कराया जा रहा है। 

खैर, मैं लौट रहा हूं। मेरे सामने ईंटों की क्वालिटी निरूपित करने वाली संख्याएं हैं। मौजूदा सरकार और उसकी कार्यप्रणाली को किस संख्या से निरूपित किया जा सकता है। एक नंबर की सरकार, डेढ़ नंबर की सरकार या फिर दो नंबर या तीन नंबर की सरकार?

(संपादन : नवल/अमरीश)

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लेखक के बारे में

प्रणय

लेखक बिहार के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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