इसी वर्ष फरवरी महीने में फारवर्ड प्रेस द्वारा पेरियार के भाषण व मूल लेखों का चयनित संकलन प्रकाशित किया गया था। इस संकलन में उनकी बहुचर्चित कृति “सच्ची रामायण” भी शामिल है। “ई.वी. रामासामी पेरियार : दर्शन-चिंतन और सच्ची रामायण” शीर्षक से प्रकाशित यह किताब पाठकों को समाज, जाति, ब्राह्मणवादी धार्मिक ग्रंथों और पितृसत्तात्मकता के बारे में पेरियार के क्रन्तिकारी विचारों से परिचित कराती है।
पेरियार ललई सिंह यादव की सच्ची रामायण के प्रकरण में उच्चतम न्यायालय में ऐतिहासिक जीत (इस क्रन्तिकारी निर्णय को पुस्तक में परिशिष्ट के रूप में प्रकाशित किया गया है) के 50 साल बाद हिंदी पट्टी में एक बार फिर पेरियार के चिंतन से रू-ब-रू होने की प्यास जाग उठी है। हर दृष्टि से देश की कमर तोड़ देने वाले लॉकडाउन के बाद भी, फरवरी से लेकर सितम्बर 2020 तक इस किताब को पाठकों ने हाथों-हाथ लिया और प्रथम संस्करण की सभी प्रतियां बिक गईं। यह संयोग ही है कि पेरियार की पुण्यतिथि, 17 सितम्बर, को हम इस पुस्तक का प्रथम पुनर्मुद्रण जारी कर रहे हैं।
फारवर्ड प्रेस की इस किताब की भूमिका वी. गीता ने लिखी है। एस.वी. राजदुरई के साथ मिलकर, वी. गीता ने पेरियार के सामाजिक और वैचारिक योगदानों पर गहन शोध और लेखन किया है और वी.गीता की भूमिका, पेरियार के विचारों की उनकी गहरी और व्यापक समझ को रेखांकित करती है। फारवर्ड प्रेस ने पेरियार के भाषणों और लेखन और उच्चतम न्यायालय के निर्णय का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करवाया।पुस्तक में अनुभवी लेखक और आलोचक ओमप्रकाश कश्यप और कंवल भारती, शोधार्थी और शिक्षाविद देविना अक्षयवर और पत्रकार अशोक झा के अत्यंत पठनीय अनुवाद शामिल हैं.
अपनी भूमिका में वी. गीता लिखती हैं, “पेरियार द्वारा धर्म की आलोचना, विशेषरूप से हिंदू-धर्म की आलोचना; उनके नास्तिक होने तक सीमित कर दी जाती है। जबकि, इसके व्यापक संदर्भ हैं। पेरियार का निष्कर्ष था कि धर्म जन्म पर आधारित सामाजिक विभाजन को न्यायोचित ठहराता है; साथ ही वह जाति-आधारित भेदभाव को सांस्थानिक वैधता प्रदान करता है। इस मामले में सभी शास्त्र, इतिहास, पुराणादि पूर्णतः स्पष्ट हैं। उनका कहना था कि इन ग्रंथों को महज शूद्रों और पंचमों के जीवन को नियंत्रित करने के लिए नहीं रचा गया था, अपितु उनकी रचना शूद्रों और पंचमों को उनकी तुच्छता का बोध कराने और उसे स्वीकारने के लिए की गई थी।
“दूसरे, उन्होंने पाया था कि हिंदू-धर्म सिवाय ब्राह्मण के किसी और को पढ़ने-लिखने की अनुमति नहीं देता। बाकी लोग किसी शिल्पकला को सीख सकते हैं अथवा अपने व्यापार में पारंगत हो सकते हैं; परंतु वे शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकते थे। यही कारण है कि उन्हें ईश्वर अथवा धार्मिक कार्य-कलाप को लेकर सवाल करने की अनुमति नहीं थी। वस्तुतः उन्हें मुक्त चिंतन और आसपास की दुनिया को जानने-समझने के अधिकार से ही वंचित कर दिया गया था।
“तीसरे, हिंदू आस्था ब्राह्मण के योगदान, उसके कार्यक्षेत्र को अपरिमित मान लेती है; न केवल पुजारी के रूप में उसकी क्षमता को, अपितु धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति के रूप में भी, जैसा कि उसने अपने लिए चुना हुआ है; मान्य ठहरा देती है। जैसे कि ब्राह्मणों के उस दावे पर भी जब वे मौलिक चिंतक और समाज के मार्गदर्शक होने का दावा करते हैं, सहज विश्वास कर लिया जाता है। यह राष्ट्रवाद के लिए ब्राह्मण के समर्थन को रेखांकित करता है अथवा नौकरशाह या शिक्षाविद् के रूप में जो भी ब्राह्मण स्त्री-पुरुष अपने लिए चुनना चाहें, उसे उनका विशेषाधिकार घोषित कर देता है।”
इस प्रकार, यह भूमिका पुस्तक की प्रस्तावना करती है। पहले खंड का पहला अध्याय ‘भविष्य की दुनिया’, पेरियार द्वारा 1930 के दशक के अंत में एक विवाह समारोह में दिया गया अध्यक्षीय भाषण है। यह विवाह, आत्मसम्मान आन्दोलन के सिद्धांतों पर आधारित था। यह भाषण, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर आधारित भविष्य का खांका खींचता है। पेरियार कहते हैं, “एक समय ऐसा आएगा, जब किसी भी मनुष्य को जीने के लिए कठोर परिश्रम नहीं करना पड़ेगा। ऐसा कोई काम नहीं होगा जिसे ओछा माना जाए या जिसके कारण व्यक्ति को हेय दृष्टि से देखा जाए। आज सरकार के पास असीमित अधिकार हैं। किंतु, भविष्य में ऐसी कोई सरकार नहीं होगी, जिसके पास अंतहीन अधिकार हों। दास-प्रथा का नामो-निशान नहीं बचेगा। जीवनयापन हेतु कोई दूसरों पर आश्रित नहीं रहेगा। महिलाएं आत्मनिर्भर होंगी। उन्हें विशेष संरक्षण, सुरक्षा और सहयोग की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।
“आने वाली दुनिया में मनुष्य को सुख-पूर्वक जीवन-यापन करने के लिए एक अथवा दो घंटे का समय पर्याप्त होगा। उससे वह वैसा ही वैभवशाली जीवन जी सकेगा, जैसा संत-महात्मा, जमींदार, शोषण करने वाले धर्मगुरु और तत्त्वज्ञानी जीते आए हैं। सामान्य सुख-सुविधाओं तथा समस्त आनंदोपभोग के लिए मात्र दो घंटे का श्रम पर्याप्त होगा।”
यह भाषण सचमुच भविष्यदृष्टा था। उन्होंने कहा था – “संप्रेषण प्रणाली बिना तार की होगी। सबके लिए उपलब्ध होगी और लोग उसे अपनी जेब में उठाए फिरेंगे। रेडियो प्रत्येक के हैट में लगा हो सकता है। छवियां संप्रेषित करने वाले उपकरण व्यापक रूप से प्रचलन में होंगे। दूर-संवाद अत्यंत सरल हो जाएगा और लोग ऐसे बातचीत कर सकेंगे, मानो आमने-सामने बैठे हों। आदमी किसी से भी कहीं भी और कभी-भी तुरंत संवाद कर सकेगा। शिक्षा का तेजी से और दूर-दूर तक प्रसार करना संभव होगा। एक सप्ताह तक की जरूरत का स्वास्थ्यकर भोजन संभवतः एक कैप्सूल में समा जाएगा, जो सभी को सहज उपलब्ध होंगे।”
आज 80 वर्ष बाद, जिस तकनीकी प्रगति की भविष्यवाणी पेरियार ने की थी, उसने ही फारवर्ड प्रेस के लिए यह संभव बनाया है कि हम पेरियार के मुक्तिकामी विचारों को केवल कुछ ही महीनों में हिंदी पट्टी के कोने-कोने में पहुंचा सके हैं। वह भी तब जब इसमें से अधिकांश अवधि में देश में लॉकडाउन था। हम यह आशा करते हैं कि पेरियार के विचार देश के मानस में गहरे तक अपनी पैठ बनायेंगे ताकि भारत सच्चे अर्थों में एक आधुनिक और स्वतंत्र राष्ट्र बन सके।