अगर आप यह समझना चाहते हैं कि आरक्षण की व्यवस्था – और प्रतिनिधित्व और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों – को कार्यान्वयन के स्तर पर किस तरह दरकिनार किया जा सकता है तो जेएनयू की भर्ती प्रक्रिया आपके लिए एक बहुत शानदार केस स्टडी हो सकती है। जेएनयू अध्यापक संघ (जेएनयूटीए) ने हाल में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय (जो पहले मानव संसाधन मंत्रालय हुआ करता था) को दूसरी बार पत्र लिखकर इस मुद्दे की गंभीरता की ओर आला हुक्मरानों का ध्यान खींचने की कोशिश की है। संघ के पहले पत्र का मंत्रालय ने जवाब देना भी जरूरी नहीं समझा है।