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यह पुस्तक उन आस्थाओं को उजागर करती है जिनका प्रतिपादन ब्राह्मणवादी धर्मशास्त्र करते हैं। इस पुस्तक का उद्देश्य सामान्य हिंदुओं को यह अहसास दिलाना है कि ब्राह्मणों ने उन्हें किस तरह के दलदल में फँसा दिया है ताकि वे तार्किक चिंतन की ओर प्रवृत्त हो सकें। … इस पुस्तक को पढ़ने से यह पता चलेगा कि ब्राह्मणों ने अपने आराध्यों और ग्रंथों में किस प्रकार परिवर्तन किए। एक समय वे वैदिक देवताओं के पूजक थे। फिर, एक दौर ऐसा आया जब उन्होंने वैदिक देवताओं को दरकिनार कर दिया और अ-वैदिक देवताओं की पूजा करने लगे। कोई उनसे पूछे कि आज इंद्र कहां हैं, वरुण कहां हैं, ब्रह्मा कहां हैं और मित्र कहां हैं। ये सभी वे देवता हैं जिनका वेदों में उल्लेख है। वे सभी अदृश्य हो गए हैं, क्यों? इसलिए क्योंकि इंद्र, वरुण और ब्रह्मा की पूजा अब फायदे का धंधा नहीं रह गया है।
(पुस्तक में डॉ. आंबेडकर द्वारा लिखित प्रस्तावना से उद्धृत)
क्या कारण है कि अधिकांश हिंदू देवियां और देवता शस्त्रधारी होते हैं? क्या कारण है कि धर्म की स्थापना के लिए वे किसी की हत्या करने में तनिक भी संकोच नहीं करते? क्या उनका व्यवहार वैसा ही नहीं है जैसा कि किसी क्षेत्र पर कब्जा करने वाली सेना का होता है? क्या कारण है कि हिंदू धर्म बौद्धिक और शारीरिक हिंसा का अनुमोदन करता है? इन प्रश्नों के उत्तर के लिए आंबेडकर हिंदू धार्मिक ग्रंथों का इस दृष्टि से परीक्षण करना चाहते थे कि उनमें कितनी नैतिकता निहित है – चाहे वे वैदिक मंत्र हों जो जादू-टोनों के बारे में हैं या उत्तर वैदिक पौराणिक कथाएं या वे देव जो आदतन और बिना किसी संकोच के नैतिकता की कोई परवाह नहीं करते थे।
(प्रो. कांचा इलैया द्वारा लिखित भूमिका से उद्धृत)
इन पहेलियों में डॉ. आंबेडकर ने भारत के सभी बहुजनों को संबोधित किया है, जिसमें वे करोड़ों लोग शामिल हैं, जो सदियों से हिंदू धर्मग्रंथों द्वारा न्यायसंगत ठहराए गए अमानवीय व्यवहार और अधीनता के शिकार रहे हैं और आज भी हैं। इस पुस्तक में वे ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म ग्रंथों की असलियत को पाठकों के समक्ष तथ्यों एवं तर्कों के साथ उजागर करते हैं और उन कारणों की जड़ तक जाते हैं, जिनके चलते बहुजनों की स्वतंत्रता को कैद में रखा गया था और आज भी रखा जा रहा है तथा उनकी प्रगति को हर तरह से बाधित किया जा रहा है।
(प्रकाशकीय से उद्धृत)
यह तय है कि बहुसंख्यक बहुजन समाज (पिछड़ा वर्ग, दलित और आदिवासी) यदि हिंदू धर्म के घेरे से बाहर नहीं आते हैं और हिंदू धर्म की वैचारिकी और मूल्यों की गिरफ्त में पड़े रहते हैं, तो हिंदू राज की परियोजना को न तो वैचारिक तौर पर पराजित किया जा सकता है और ना ही उसे अंतिम तौर पर निर्णायक राजनीतिक शिकस्त दी जा सकती है। ऐसा करने के लिए अनिवार्य है कि हिंदू धर्म और उसके दर्शन की असलियत से बहुजनों और उन प्रगतिशील व्यक्तियों को अवगत कराया जाए, जो न्याय, समता, स्वतंत्रता, लोकतंत्र और बंधुता आधारित प्रबुद्ध भारत के निर्माण में विश्वास रखते हैं। डॉ. आंबेडकर ने ‘हिंदू धर्म की पहेलियां’ किताब हिंदू धर्म की असलियत को बहुजनों के समक्ष उजागर करने के लिए ही लिखी थी।
(संपादकीय से उद्धृत)
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