31 जुलाई, 1970 को जगदेव प्रसाद द्वारा अमेरिकी अर्थशास्त्री डॉ. एफ. टॉमसन को दिया गया साक्षात्कार
[अमेरिका के टेक्सास विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व अर्थशास्त्री डॉ. एफ. टॉमसन जानुनी छह-सात महीनों से भारत की भूमि-समस्या का अध्ययन करने के लिए विभिन्न राज्यों का दौरा कर रहे थे। इसी दौरे के सिलसिले में प्रोफेसर टॉमसन बिहार में आए हुए थे और विभिन्न राजनीतिक दलों के चोटी के नेताओं से भूमि-समस्या और इससे संबंधित मामलों पर पूछताछ कर रहे थे। उन्होंने 31 जुलाई, 1970 को शोषित समाज दल के नेता जगदेव प्रसाद से साक्षात्कार किया। दोनों के बीच लगभग ढाई घंटे तक लंबी बातचीत साक्षात्कार के रूप में हुई। प्रस्तुत है यह साक्षात्कार, जिसे जगदेव प्रसाद वांग्मय, सम्यक प्रकाशन, नई दिल्ली, 2011 में संकलित है। यहां इसे हम इस पुस्तक के सह संकलक व सह संपादक राजेन्द्र प्रसाद सिंह की अनुमति से प्रकाशित कर रहे हैं]
जगदेव प्रसाद : [प्रो. टॉमसन का स्वागत करते हुए] आपने साक्षात्कार के लिए मुझको क्यों चुना?
प्रो. टॉमसन : मैं आपको बहुत दिनों से जानता हूं। मेरी इच्छा थी कि बिहार आने पर आपसे मिलूं और शोषित जनता के एक रहनुमा होने के कारण आपके विचारों से लाभान्वित हो सकूं। मैंने सुना है कि आप अर्थशास्त्र के बहुत अच्छे जानकार हैं। आपके विचार हिंदुस्तान के अन्य दलों के नेताओं से बिल्कुल भिन्न और मौलिक हैं। आप ही बताइए कि मैं आपसे कुछ बुनियादी सवालों के उत्तर लिए बिना कैसे रह सकता था?
जगदेव प्रसाद : मैं आपकी धारणा से सोलहों आना सहमत हूं कि हमारे दल के विचार हिंदुस्तान के सभी राजनीतिक दलों के विचारों से बिल्कुल भिन्न और मौलिक हैं। शोषित दल की मौलिकता में मौलिक क्रांतिकारिता है। मेरे बारे में और बातें जो आपने कही हैं, वे आपकी उदारता के परिचायक हैं।
प्रो. टॉमसन : वह कौन सी एक समस्या है, जिसका समाधान होने पर हिंदुस्तान में आर्थिक क्रांति सफल हो सकती है और आर्थिक क्षेत्र में हिंदुस्तान आत्मनिर्भर हो सकता है?
जगदेव प्रसाद : राजनीति और नौकरशाही पर से 10 प्रतिशत शोषक वर्ग के एकाधिकार और प्रभुत्व का खात्मा।

प्रो. टॉमसन : आप शोषक किसको कहते हैं?
जगदेव प्रसाद : हिंदुस्तान की तमाम ऊंची जातियां शोषक हैं, जो सिर्फ दस प्रतिशत हैं।
प्रो. टॉमसन : हिंदुस्तान की ऊंची जाति के लोगों को आप शोषक क्यों कहते हैं?
जगदेव प्रसाद : क्योंकि, सिर्फ दस प्रतिशत होते हुए भी सरकारी, गैर-सरकारी और अर्द्ध-सरकारी नौकरियों में नब्बे सैकड़ा जगहों पर अपना एकाधिकार जमाए बैठे हैं। नब्बे प्रतिशत भूमि और उत्पादन के अन्य संसाधनों पर भी इन्हीं का आधिपत्य है। सामाजिक प्रतिष्ठा भी इन्हीं को उपलब्ध है। दलित, आदिवासी, मुसलमान और पिछड़ी जातियों को इन्होंने गुलाम और अर्द्ध-गुलाम जैसी स्थिति में रहने को मजबूर कर दिया है। दूसरे शब्दों में, सारा हिंदुस्तान (अब मद्रास को छोड़कर) दस प्रतिशत ऊंची जाति के साम्राज्यवादियों का एक विशाल उपनिवेश है। राजनीति में भी दस प्रतिशत ऊंची जाति का कब्जा है। दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों, संसोपा-प्रसोपा [संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी] का नेतृत्व ऊंची जाति के साम्राज्यवादियों के हाथों में ही है। आज के जनतांत्रिक हिंदुस्तान में ऊंची जाति वाले राजनीति के माध्यम से नौकरशाही की मदद के जरिए अपना काला साम्राज्य एक तरह से सारे देश पर कायम किए हुए हैं।
प्रो. टॉमसन : आप ऊंची जाति के लोगों को साम्राज्यवादी कहते हैं? मगर कम्युनिस्ट पार्टियों और संसोपा का नेतृत्व भी हिंदुस्तानी साम्राज्यवादियों के हाथों में है। हिंदुस्तानी जार और कुलांक कम्युनिस्ट पार्टी का सर्वेसर्वा हैं। ये लोग सर्वहारा की बोली बोलते हैं, मगर नेतृत्व सर्वहारा के हाथ में नहीं जाने देते। आपका विश्वास है कि ऊंची जाति वाले क्रांतिकारी नहीं हो सकते हैं?
जगदेव प्रसाद : मेरा अटूट विश्वास है कि ऊंची जाति वाले आर्थिक सुधार के कुछ हद तक पक्षपाती परिस्थिति के दबाव के कारण होते नजर आते हैं, लेकिन वे सामाजिक, आर्थिक क्रांति के कट्टर विरोधी हैं। ऊंची जाति वाले राजनीति और शासन की बागडोर शोषितों के हाथ में जान देने के उतने ही कट्टर विरोधी हैं, जितना अमरीका कम्युनिज्म का विरोधी है।
यह भी पढ़ें : मुझे सवर्णों की राजनीतिक हलवाही नहीं करनी है : जगदेव प्रसाद
प्रो. टॉमसन : क्या आप जमीन के बंटवारे के पक्ष में हैं?
जगदेव प्रसाद : हम शोषित दल हैं। इस नाम में ही जमीन और दौलत का बंटवारा निहित है क्योंकि जमीन छीनी जाएगी ऊंची जाति वालों की और बांटी जाएगी शोषितों के बीच। इसी तरह दौलत के मालिक हैं ऊंची जाति वाले। मारवाड़ी भी ऊंची जाति और उनकी राजनीति के शागिर्द हैं। इसलिए ऊंची जाति की दौलत को शोषितों में बांटना जरूरी है।
प्रो. टॉमसन : शोषित समाज में सेठ पूंजीपति नहीं हैं?
जगदेव प्रसाद : हैं। उनकी जमीन और दौलत को भी गरीब शोषितों में बांटना होगा। शोषित समाज के सेठ और पूंजीपतियों की जमीन और दौलत को छीनने में सरकार को कोई दिक्कत नहीं होगी। लेकिन ऊंची जाति के लोगों को जमीन और दौलत को बांटने में भयंकर दिक्कत होगी, क्योंकि पुलिस, मजिस्ट्रेसी [न्यायपालिका], न्याय विभाग और राजनीति पर ऊंची जात का कब्जा है।
प्रो. टॉमसन : अगर आपको हिंदुस्तान का प्रधानमंत्री बना दिया जाए तो सामाजिक-आर्थिक क्रांति के लिए कौन-सा कार्यक्रम सबसे पहले कार्यान्वित करेंगे?
जगदेव प्रसाद : सरकारी, गैर-सरकारी और अर्द्ध-सरकारी नौकरियों में नब्बे सैकड़ा शोषितों के लिए नब्बे सैकड़ा जगहें सुरक्षित कर दूंगा। उससे नौकरशाही पर हमारा कब्जा हो जाएगा, जिसके जरिए सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में इंकलाब, बड़े-बड़े काम आसानी के साथ कर सकेंगे। और दूसरे जिन राजनीतिक दलों के नेतृत्व में दस प्रतिशत से ज्यादा ऊंची जाति के लोग रहेंगे, उन राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगा देंगे।
प्रो. टॉमसन : इस कार्यक्रम को अमल में लाने के लिए भारतीय संविधान में मौलिक परिवर्तन करना पड़ेगा?
जगदेव प्रसाद : जब संसद में हमारा बहुमत होगा तो संविधान में क्रांतिकारी संशोधन करके 90 प्रतिशत सैकड़ा शोषितों की तरक्की के लायक संविधान बना देंगे।
प्रो. टॉमसन : तो क्या आप नब्बे प्रतिशत कर तानाशाही कायम करना चाहते हैं?
जगदेव प्रसाद : नब्बे प्रतिशत शोषित जनता की इच्छा से काम करना हरगिज तानाशाही नहीं। वास्तव में आज दस प्रतिशत ऊंची जात की तानाशाही है, जिसको हम नब्बे प्रतिशत शोषित जनता के जनतंत्र में बदलने का हौसला रखते हैं। नब्बे प्रतिशत शोषित महसूस करते हैं कि उनके ऊपर दस प्रतिशत ऊंची जात की क्रूर तानाशाही कायम है। इस तानाशाही को खत्म करना और नब्बे प्रतिशत जनता के हाथ में देश की जिम्मेदारी को सौंपना असली जनतंत्र का तकाजा है। नब्बे प्रतिशत शोषित जनता की घुटन, छटपटाहट, परेशानी, आक्रोश की सही जानकारी विदेशों को नहीं है, हिंदुस्तान की असलियत की जानकारी विदेशों को नहीं है। हिंदुस्तान की असलियत की जानकारी दूसरे मुल्कों को दिलाना एक महान राष्ट्रीय कर्तव्य है, जिसको हमारे दल के अलावा कोई नहीं कर सकता है।
प्रो. टॉमसन : आपका यह कथन और दावा सोलहों आना सही है। हम लोगों को आज तक किसी ने ये बातें नहीं बताईं। किताबों में भी ऐसी बातें कहीं लिखी नहीं मिलतीं। समाचार-पत्रों में भी हिंदुस्तान की इस असलियत को भी नहीं पढ़ा।
जगदेव प्रसाद : आप ‘शोषित साप्ताहिक’ को नियमित पढ़िए और अमेरिका में अपने दूसरे दोस्तों को भी पढ़वाइए। ‘शोषित साप्ताहिक’ खुद एक जांच संस्थान या अनुसंधान विश्वविद्यालय का काम करेगा। सामाजिक क्रांति की यह पत्रिका समाज विज्ञान की एक सुसंपन्न प्रयोगशाला प्रमाणित होगी। समन्वयवाद से शोषक को फायदा है और संघर्ष से शोषित को।
प्रो. टॉमसन : आपका विश्वास शोषित जनता का ऊंची जाति से विलगाव की नीति चलाने में है। मगर विलगाव की नीति से तो वैमनस्य और संघर्ष बढ़ेंगे?
जगदेव प्रसाद : शोषक से शोषितों की मुक्ति के लिए दोनों के बीच वैमनस्य और संघर्ष का बढ़ना निहायत जरूरी है। मेलजोल का बुरा नतीजा शोषितों को भुगतना पड़ रहा है। समन्वय की नीति से शोषक को फायदा है और संघर्ष की नीति से शोषित वर्ग को फायदा है। दस प्रतिशत शोषक के खिलाफ नब्बे प्रतिशत शोषित की मोर्चाबंदी शोषण मुक्त हिंदुस्तान के लिए निहायत जरूरी है।
प्रो. टॉमसन : क्या यह सही है कि ऊंची जाति के लोग हरिजनों को गांव के पूरब, पश्चिम और उत्तर में नहीं बसने देते?
जगदेव प्रसाद : यह बात बिल्कुल सही है। आप इसी से अंदाज लगा सकते हैं कि ऊंची जाति वाले कितने असभ्य, जंगली और बर्बर हैं।
प्रो. टॉमसन : ऊंची जाति वाले खुद हल नहीं चलाते?
जगदेव प्रसाद : ऊंची जाति के कुछेक गरीब मजबूरन अब हल चलाने लगे हैं, लेकिन इसको अपवाद ही समझिए। ऊंची जाति के हल जोतने की बात तो दूर ही रही, उनकी औरतें खेतों में काम करने के ख्याल से घर से बाहर नहीं निकलतीं।
प्रो. टॉमसन : जनसंघ और कम्युनिस्ट पार्टी में क्या अंतर है? क्या यह बात सही है कि जनसंघ के नेताओं से कम्युनिस्ट पार्टी के नेता ज्यादा अमीर हैं?
जगदेव प्रसाद : यह बात सही है कि जनसंघ के नेताओं से कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सैकड़ों-हजारों गुना ज्यादा अमीर हैं। जनसंघ और कम्युनिस्ट पार्टी में फर्क यह है कि जनसंघ के नेता कम अमीर होते हुए भी अमीरों की हिमायत करते हैं और कम्युनिस्ट पार्टी के नेता अमीर होते हुए भी गरीबों की हिमायत करते हैं। इसलिए कम्युनिस्ट पार्टी का यह रूप बड़ा ही मायावी और गरीबों के लिए खतरनाक है।
(संपादन : इमानुद्दीन/नवल)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें
मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया