बिहार विधान सभा में सत्ता समीकरण बिगड़ने के बाद विधान सभा का चाल, चेहरा और चरित्र बदलने लगा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथ से सबकुछ फिसलने लगा है। सत्ता में अब बड़ी साझेदार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपने एजेंडे को लागू करने में जुट गयी है। उसने जनता दल यूनाईटेड (जदयू) के आधार और आचार पर भाजपा ने हमला शुरू कर दिया है और जदयू के पास बिलबिलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। अब हालत यह हो गई है कि भाजपा का असर विधान सभा की धर्म निरपेक्ष छवि तार-तार की जा रही है। इस कड़ी में बीते 16 फरवरी, 2021 को पहली बार बिहार विधान सभा के पुस्तकालय में सरस्वती की पूजा की गई तथा शंख फूंका गया।
इसके अलावा बिहार विधान सभा की डायरी को भगवा रंग में रंगा गया है। साथ ही बजट सत्र के दौरान विधान मंडल के दोनों सदनों यानी विधान सभा और विधान परिषद दोनों को भगवा रंग के बल्बों से सजाया गया है। जबकि पूर्व में नीले रंग के बल्बों से सजाने की परिपाटी थी।
दरअसल, भाजपा ने अपने भगवा एजेंडे को लागू करने के लिए सबसे पहले विधान सभा अध्यक्ष पद पर कब्जा जमाया। पिछले 15 वर्षों से अध्यक्ष पद पर नीतीश कुमार के वफादार बैठते रहे थे और वे नीतीश कुमार के एजेंडे के मुताबिक काम कर रहे थे। इन दौरान नीतीश कुमार को कई बार विधान सभा में विधायकों की संख्या के आधार पर किरकिरी का सामना करना पड़ा, लेकिन अध्यक्ष पूरी वफादारी से नीतीश के एजेंडे को पूरा करने में लगे रहे। जबकि विधान सभा अध्यक्ष की भूमिका तटस्थ रहनी चाहिए लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है।
उल्लेखनीय है कि विधान सभा में कुल सदस्यों की संख्या 243 है। 75 विधायकों के साथ राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सबसे बड़ी पार्टी है। भाजपा के 74 और जदयू के 44 विधायक हैं। इसके अलावा कांग्रेस के 19, वामपंथी के 16, एमआइएमआइएम के 5, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के 4-4 और एक निर्दलीय विधायक हैं। साथ ही लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के भी एक सदस्य हैं। इस प्रकार 4 दलों के एनडीए में सबसे अधिक 74 विधायक भाजपा के हैं। इसी आधार पर भाजपा ने स्पीकर के पद पर अपना दावा जताया था और नीतीश कुमार इसके लिए तैयार हो गए थे।
बिहार की राजनीति में यह पहली बार हुआ है कि अध्यक्ष एक दल के और मुख्यमंत्री दूसरी पार्टी के हैं। मुख्यमंत्री ने सत्ता का सहयोगी बदला तो अध्यक्ष की कुर्सी भी खतरे में पड़ जायेगी। फिलहाल अध्यक्ष और मुख्यमंत्री दोनों अलग-अलग विचारधारा के हैं। इनके बीच समानता सिर्फ कुर्सी पर बने रहने की है।
विधान सभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा भूमिहार जाति के हैं जो कि भाजपा का बड़ा आधार है। अब विजय सिन्हा कुर्सी संभालते ही भगवा एजेंडे को लागू करने में जुट गए हैं।
बताते चलें कि विधान सभा हर वर्ष एक डायरी प्रकाशित करती है। इस बार डायरी का रंग भगवा कर दिया गया है। बात अगर सिर्फ डायरी की होती तो बड़ा मुद्दा नहीं था।
इसी क्रम में पहली बार विधान सभा के पुस्तकालय में सरस्वती पूजा का आयोजन किया गया। पूजन समारोह अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा के साथ बड़ी संख्या में पुस्तकालय के अधिकारी और कर्मचारी भी शामिल थे। इसका आयोजन आस्था के प्रतीक के रूप में नहीं, बल्कि भगवा एजेंडे के विस्तार के रूप में देखा जारहा है। विधान सभा के सूत्रों ने बताया कि पुस्तकालय में पहली बार पूजा का आयोजन किया गया है। इस संबंध में विधान सभा की पुस्तकालय समिति के सभापति और माले विधायक सुदामा प्रसाद ने कोई भी प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया।
(संपादन : नवल/अनिल)
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