छत्रपति शिवाजी महाराज (19 फरवरी, 1630 – 3 अप्रैल, 1680) पर विशेष
यह सर्वविदित है कि भारतीय द्विज समाज अपने वर्चस्ववाद को कायम रखने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाता है। इसका उदाहरण है दलित-बहुजन नायकों को हिंदुत्व के खांचे में फिट करने की साजिश। ऐसे ही एक नायक रहे हैं छत्रपति शिवाजी महाराज। उन्हें भारतीय द्विज हिंदू राजा के रूप में प्रस्तुत करते हैं। जबकि शिवसेना के पूर्व प्रमुख बाल ठाकरे के पिता प्रबोधनकार ठाकरे कहते थे कि शिवाजी महाराज के सामने तैंतीस करोड देवताओं की पलटन हथियार छोड़कर भाग खड़ी हो जाती थी। उनके कहने का आशय स्पष्ट था कि शिवाजी महाराज जिन्हें शिवराय के नाम से जाना जाता है, वे असल में ऐसे समाज की कल्पना करते थे जिसमें छोटा-बड़ा, जाति-भेद का कोई स्थान नहीं था। वे हिंदू-मुसलमान के बीच कोई भेद नहीं करते थे।
छत्रपति शिवाजी महाराज जाति विरोधी और द्विज मान्यताओं के विरोधी थे। लेकिन द्विजों ने हमेशा उन्हें दूसरे रूप में प्रस्तुत किया है। परंतु फुले-शाहू-आंबेडकर विचारधारा के साहित्यकार डॉ. यशवंत मनोहर ने शिवाजी महाराज को दलित-बहुजन नायक के रूप में विस्तार से बताया है। उन्होंने अपनी लंबी कविता “शिवराय” के एक अंश में इसका बखूबी चित्रण किया है–
शिवराय!
आप इंसान बना रहे थे
हिंदुओं और मुसलमानों को
और आदमी बना रहे थे
आप कर रहे थे प्रयोग
निर्मल पानी का…
दरअसल, शिवाजी महाराज के चरित्र को विकृत करने की अनेक कोशिशें की गई हैं। मराठी भाषा और महाराष्ट्र प्रांत के बाहर शिवाजी अभी भी एक कट्टर हिंदू शासक के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं जो मुसलमानों को दुश्मन समझते थे। जबकि शिवाजी महाराज एक धर्म निरपेक्ष राजा थे, जिनकी सेना में हिंदू भी थे और बड़ी संख्या में मुसलमान भी। यहां तक कि उनके अनेक अंगरक्षक भी कई मुसलमान योद्धा थे।
अपनी कविता के एक अंश में डॉ. यशवंत मनोहर ने लिखा है–
शिवराय!
आप के बनाए किले से
आती नहीं किसी जाति या
धर्म की आवाज।
पेड़ जैसे हैं फलदायी
ममता के फूल
और लोगों के हाथों पर
भेदविहीन रख देते हैं…
शिवाजी महाराज जाति के अलावा वर्ग-भेद के खिलाफ थे। अपनी कविता “वर्ग युद्ध” में डॉ. यशवंत मनोहर ने कहा है–
शिवराय!
किसी भी जाति या धर्म की
स्त्री की इज्जत लूटनेवाले
जानवरों को
नागफनी के कांटाें से सजा दी आपने।
सज्जनों का खून पीने वाले दरिंदों को
गाड़ दिया आपने।
जाति और धर्म का
हर भेद मिटाया आपने
सीधे और टेढ़े,
दुर्जन और सज्जन,
सभ्य और असभ्य,
ऐसे मूलभूत वर्ग युद्ध
शुरु किये आपने!
कवि डॉ. यशवंत मनोहर मानते हैं कि शिवराय और भीमराव ही दो ऐसे महानायक रहे जिन्होंने वंचित समाज की समस्याओं को जाना-समझा और एक समतामूलक समाज की स्थापना में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। मसलन वे लिखते हैं–
शिवराय!
दिमाग में संविधान का प्रमाणपत्र
लेकर मैं खड़ा हूं
इक्कीसवी सदी के सर के उपर
और मैं मानता हूं कि
आपने नहीं किया कोई भेद।
आपने नहीं किया कोई भेद।
फिर इसी कविता के एक हिस्से में डॉ. यशवंत मनोहर ने कहा है –
शिवराय!
जुल्म हिन्दू हुक्मरां करें
या करें मुसलमान
सब होते हैं एक जैसे।
जुल्म करनेवाले सरदारों एवं
वतनदारों की जाति और धर्म
अलग-अलग नही होते।
जातियों के गुलामों ने
स्वराज्य, स्वतंत्रता जैसे शब्दों को
किया है बरबाद।
इसलिए चिर गुलामी की बेड़ियों पर
आपके प्रहारों को
हम करते हैं नमन।
(लेख में शामिल कवितांश मराठी कवि डॉ. यशवंत मनोहर की कविता संग्रह ‘शिवराय आणि भीमराय’ से साभार लिए गए हैं। यह संग्रह पद्मगंधा प्रकाशन, पुणे से शीघ्र प्रकाश्य है। लेख में शामिल अंशों का अनुवाद आलेख के लेखक भरत यादव ने किया है)
(संपादन : नवल)
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