पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव 2021 को लेकर राजनीति चरम पर है। भाजपा एक तरफ हिंदुत्व की राजनीति कर रही है तो दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) भी पीछे नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि बंगाल में दलित-बहुजनों के सवाल कब महत्वपूर्ण होंगे? इस वक्त जब पूरे राज्य में ‘मोदी बनाम ममता’ के बीच चुनावी घमासान और तेज होता जा रहा है, ऐसे में दलित राजनीति का आखिर यहाँ क्या अस्तित्व है? और क्या कारण है कि दलित राजनीति बंगाल में आजादी के बाद से अब तक हाशिए पर रही?