फणीश्वरनाथ रेणु (4 मार्च, 1921 – 11 अप्रैल, 1977) की सौवीं जयंती पर विशेष
प्रायः दूरदर्शी और अनुभवी रचनाकार, समकालीन यथार्थ और भूत का आकलन कर, संभावित भविष्य को अपने कथा साहित्य में चित्रित करते हैं। यह गुण, बहुमुखी प्रतिभा के धनी, ग्रामीण जीवन के चितेरे कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु में भी था । उन्होंने समकालीन भारतीय ग्रामीण जीवन के संक्रमण काल का गहन अध्ययन किया था। उन्होंने आज़ादी से पूर्व 1942 की क्रांति का समय देखा था और आज़ादी के बाद हुए राजनीतिक परिवर्तन के शुरुआती दौर में एक क्रांतिकारी, चिंतक और लेखक के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करायी थी। रेणु संपूर्ण उत्तर भारत, नेपाल, पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के इलाकों में हुए राजनीतिक, सामाजिक परिवर्तन को न सिर्फ महसूस करते हैं, वरन कहीं-कहीं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में अपनी उपस्थिति भी दर्ज़ कराते हैं।