अमरीका के न्यू जर्सी राज्य में एक हिंदू मंदिर के निर्माण में बंधुआ मजदूरों के इस्तेमाल का मामला सामने आया है। इनमें से अधिकांश दलित हैं।
करोड़ों डॉलर की लागत के इस मंदिर का निर्माण हिंदू प्रवासियों की एक संस्था कर रही है। संघीय सरकार के अधिकारियों ने न्यू जर्सी के रोब्बिंसविल इलाके में स्थित इस मंदिर पर छापा मार कर मजदूरों को आजाद करा दिया है और अब उनकी ओर से न्यू जर्सी के जिला अदालत में जायज़ मजदूरी का भुगतान किये जाने की मांग करते हुए मुक़दमा दायर किया गया है।
न्यूयार्क टाइम्स के 11 मई, 2021 के अंक में प्रकाशित समाचार के अनुसार, एफबीआई, होमलैंड सिक्यूरिटी और डिपार्टमेंट ऑफ़ लॉ के अधिकारियों की एक संयुक्त टीम ने मंगलवार की सुबह मंदिर पर छापा मारा। अख़बार ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि यह छापा मंदिर का निर्माण कर रही समिति द्वारा श्रम और आव्रजन कानूनों के उल्लंघन की सूचनाओं के आधार पर मारा गया था। अधिकारियों ने करीब 90 मजदूरों को आज़ाद करवाया। मंदिर के निर्माण के काम पर रोक लगा दी गई है।
न्यू जर्सी में भारतीय मूल के करीब चार लाख लोग रहते हैं। बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) नामक एक हिंदू संस्था इस भव्य मंदिर का निर्माण करवा रही है। समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस (एपी) के अनुसार, प्रिन्सटन के नज़दीक स्थित यह मंदिर लगभग 162 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। भारत और इटली से आयात किये गए कीमती संगमरमर का निर्माण में भरपूर उपयोग हुआ है। मंदिर का उद्घाटन 2014 में हो चुका है, परंतु निर्माण का काम अब भी जारी है।
बीएपीएस स्वयं को “आस्था, एकता और निस्वार्थ सेवा के हिंदू आदर्शों पर चलने वाली आध्यात्मिक संस्था” बताती है, जो “समाज के बेहतरी की दिशा में काम करने के लिए समर्पित है।” इसी संस्था ने गुजरात और दिल्ली में विशाल अक्षरधाम मंदिरों का निर्माण कराया है। दिल्ली में मंदिर निर्माण के लिए आवंटित जमीन को लेकर विवाद भी रहा था। इसी संस्था ने विदेश के ऑकलैंड, अटलांटा, शिकागो, ह्यूस्टन, लंदन, लॉस एंजेलिस, नैरोबी, सिडनी और टोरंटो में मंदिर का निर्माण करवाया है।
इस प्रकार बीएपीएस ने दुनिया भर में हिंदू मंदिर बनवाए हैं, जो संगमरमर के शिखरों, आकर्षक फव्वारों, बारीक पच्चीकारी और चहलकदमी करते मोरों के लिए जाने जाते हैं। इस मंदिर को संस्था अमरीका का सबसे बड़ा और सबसे भव्य मंदिर बनाना चाहती थी।
“हिंदू आदर्शों” की पैरोकार इस संस्था ने मंदिर का निर्माण करने के लिए भारत से श्रमिक बुलवाए। इन्हें रिलीजियस वीसा (आर-1) के आधार पर अमरीका लाया गया। अमरीकी सरकार को यह बताया गया कि ये लोग लोग कुशल कारीगर हैं और स्वयंसेवक के रूप में मंदिर निर्माण में सहयोग करना चाहते हैं। उनसे अंग्रेजी में लिखे कई कागजों पर हस्ताक्षर करवाए गए। कहने की ज़रुरत नहीं कि उनमें से कोई भी अंग्रेजी नहीं समझता था।
अदालत में दायर प्रकरण में कहा गया है कि अमरीका पहुँचते ही उनके पासपोर्ट उनसे छीन लिए गए। मजदूरों को ट्रकों की ट्रालियों पर बने अस्थायी घरों में रख दिया गया। इन ट्रकों को ऐसे जगह रखा जाता था जहां चारों ओर से बाड़ बने थे और वहां पहरेदार भी तैनात थे। उन्हें किसी से मिलने या बात करने की इज़ाज़त नहीं थी। भोजन के रूप में उन्हें निहायत बेस्वाद दाल और आलू दिए जाते थे।
उनसे हर दिन 13 घंटे काम करवाया जाता था, जिसमें वजनी पत्थर उठाना, क्रेन और अन्य भारी मशीनों का संचालन करना, सडकें और नालियां बनाना, गड्डे खोदना और बर्फ साफ़ करना शामिल था। उन्हें करीब 450 डॉलर प्रति माह का वेतन दिया जाता था, जिसमें से केवल 50 डॉलर नगद दिए जाते थे और शेष रकम भारत में उनके बैंक खातों में जमा की जाती थी। मामूली गलतियों, जैसे हेलमेट न पहनने, पर उनका वेतन काट लिया जाता था।
न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार बीएपीएस “भारत के सत्ताधारी दल का करीबी है।” उसने अयोध्या में राममंदिर के निर्माण का खुलकर समर्थन किया था और उसके लिए धन भी दिया था।
वहीं बीएपीएस के प्रवक्ता लेनिन जोशी ने सभी आरोपों को गलत बताया है। संस्था के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कानू पटेल का कहना है कि वे “मजदूरों द्वारा मजदूरी के लिए किये गए दावे से असहमत हैं।”
ऐसा अनुमान है कि संस्था वर्षों से सैकड़ों मजदूरों का शोषण कर रही थी। न्यू जर्सी में आव्रजन मामलों की वकील स्वाति सावंत कहती हैं कि उन्हें इन मजदूरों की बुरी हालत के बारे में पिछले साल पता चला था।
स्वाति, जो स्वयं दलित हैं, ने न्यूयार्क टाइम्स से कहा, “उन लोगों को लगा उन्हें अच्छा काम मिलेगा और अमरीका देखने को भी। लेकिन उन्हें क्या मालूम था कि उनके साथ जानवरों की तरह व्यवहार किया जाएगा या मशीनों की तरह जो कभी बीमार नहीं पड़तीं।”
स्वाति का कहना है कि उन्होंने गुप्त रूप से मजदूरों को संगठित किया और मजदूरी और आव्रजन संबंधी उनके प्रकरणों को लड़ने के लिए वकीलों की टीम तैयार की।
वाशिंगटन स्थित इंटरनेशनल कमीशन फॉर दलित राइट्स के अध्यक्ष डी.बी सागर ने एसोसिएटेड प्रेस से कहा कि दलित शोषण का सबसे आसान शिकार होते हैं क्योंकि भारत में वे सबसे गरीब समुदाय हैं।
“उन्हें जिंदा रहने के लिए, अपने परिवार की रक्षा करने के लिए कुछ चाहिए होता है।” सागर, जो स्वयं एक दलित हैं, ने बताया। उन्होंने कहा कि अगर मुक़दमे में लगाये गए आरोप सही हैं तो यह ‘आधुनिक काल में गुलामी’ का उदाहरण है।
(संपादन : नवल/अनिल)
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