बहुजन साप्ताहिकी
छत्तीसगढ़ : जोतीराव फुले के विचार साझा करने पर ब्राह्मणों ने दर्ज कराई कोरोना संक्रमित बुजुर्ग के खिलाफ एफआईआर
आज भी ब्राह्मण वर्ग के लोग जोतीराव फुले के विचार पचा नहीं पा रहे हैं। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के पत्थलगांव थाने में इससे संबंधित एक मामला दर्ज कराया गया है। मिली जानकारी के अनुसार दीवानपुर थाने के निवासी जगेश्वर प्रसाद यादव, जो कि एक सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, के खिलाफ एक मामला युवा ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष अंकित शर्मा द्वारा दर्ज कराया गया है। उन पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने सोशल मीडिया में ब्राह्मण समाज के विरुद्ध अनर्गल एवं अभद्र टिप्पणी की है, जिसके कारण ब्राह्मण समाज की भावनाएं आहत हुई हैं।
गौरतलब है कि करीब 75 वर्षीय जगेश्वर प्रसाद यादव इन दिनों कोरोना संक्रमित हैं और अपने घर पर एकांतवास में रह रहे हैं। दरअसल, उन्होंने महाकुल समाज युवा इकाई नामक वाट्सएप ग्रुप में बीते 10 मई को एक वीडियो शेयर किया, जिसे दिल्ली से संचालित ‘द शूद्रा’ नामक यू-ट्यूब चैनल द्वारा जारी किया गया था। इस वीडियो में जोतीराव फुले के उन विचारों के बारे में बताया गया है जो उनकी लोकप्रिय किताब ‘गुलामगिरी’ में उद्धृत है।
जगेश्वर प्रसाद यादव द्वारा वीडियो शेयर किए जाने के बाद स्थानीय सवर्ण भड़क गए। उन्होंने पहले तो उन्हें धमकाया और बाद में 18 मई, 2021 को उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया। इस मामले में पत्थलगांव थाना प्रभारी संतलाल आयाम ने दूरभाष पर बताया कि सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले रिटायर्ड शिक्षक जगेश्वर प्रसाद यादव पर आईपीसी की धारा 295ए, 505(2) के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। अभी इस मामले की जांच की जा रही है।
अपनी प्रतिक्रिया में ‘द शूद्रा’ यू-ट्यूब चैनल के संपादक सुमित चौहान ने कहा कि राष्ट्रपिता जोतिबा फुले के विचारों पर आधारित किसी वीडियो को शेयर करने पर इस तरह की कार्यवाही करना असल में जातिवादी मानसिकता का सबसे बड़ा उदाहरण है। राष्ट्र के निर्माण के लिए राष्ट्रपिता जोतिबा फुले ने जन्म के आधार पर ग़ैर-बराबरी को ख़त्म करने और सभी इंसानों को समान मानने की महान सीख दी। उनकी लिखी किताब ‘गुलामगिरी’ महाराष्ट्र सरकार की ओर से प्रकाशित की गई है। फिर भला ऐसे महापुरुष के विचारों से क्या दिक़्क़त है?
राजस्थान : परशुराम को मातृहंता कहने पर भड़के सवर्ण, मुकदमा दर्ज, विभाग ने किया निलंबित
हिंदू धर्म ग्रंथों में मिथकों का चित्रण जिन रूपों में किया गया है, उसे उसी रूप में प्रस्तुत किये जाने पर अब द्विज भड़कने लगे हैं। एक मामला राजस्थान के करौली जिला के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय चंदेलपुरा में इतिहास के व्याख्याता पृथ्वीराज बैरवा का है। उन पर आरोप है कि उन्होंने गत दिनों परशुराम जयंती के मौके पर फेसबुक पर परशुराम की मिथकीय कहानी को साझा किया, जिसमें परशुराम को मातृहंता कहा गया है। उनके इस पोस्ट के खिलाफ ब्राह्मण महासंघ फाउंडेशन राजस्थान, राष्ट्रीय परशुराम सेना और अन्य ब्राह्मण संगठनों ने विरोध अभियान चलाया। साथ ही स्थानीय थाने में मामला दर्ज कराया है। इसके अलावा करौली जिलाधिकारी कार्यालय द्वारा गत 17 मई को यह कहते हुए तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है कि बैरवा ने फेसबुक पर राजनीतिक एवं आपत्तिजनक व सामाजिक टिप्पणी कर आमजन की भावनाओं को आहत किया है।
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इससे पहले अपने पोस्ट में पृथ्वीराज बैरवा ने लिखा कि “परशुराम को ब्राह्मण अपना आराध्य देवता मानते हैं! परशुराम ने कुल्हाड़ी से अपनी मां की गर्दन काट दी। क्षत्रिय समाज की गर्भवती महिलाओं का पेट चीरकर उनकी और उनके नवजात शिशुओं की हत्या की। भारत के राष्ट्रपिता महात्मा फुले ने लिखा है परशुराम उपद्रवी, विनाशी निर्दयी, मूर्ख और नीच प्रवृत्ति वाला व्यक्ति था!”
फारवर्ड प्रेस से बातचीत में पृथ्वीराज बैरवा ने बताया कि उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। वे अपने वकीलों से सलाह ले रहे हैं। कोरोना काल के कारण चूंकि न्यायालयों में ऑनलाइन सुनवाई की व्यवस्था है, इसलिए वे आगामी सोमवार को इस मामले में अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर करेंगे। बैरवा ने कहा कि उन्होंने जो कुछ पोस्ट किया है, वह कहीं से तथ्यहीन नहीं है। हिंदू धर्म ग्रंथों में इसके उल्लेख हैं।
बिहार : मुख्यमंत्री के गांव की कोरोना संक्रमित महिला के साथ निजी अस्पताल में दुष्कर्म, मौत के बाद आश्रितों को 54 लाख रुपए का मुआवजा
राजधानी पटना के एक बड़े निजी अस्पताल (पारस अस्पताल) में एक कोरोना संक्रमित महिला के साथ दुष्कर्म और बाद में उसकी मौत की सूचना प्रकाश में आयी है। इस मामले में राज्य सरकार द्वारा मृतिका के आश्रितों को 54 लाख रुपए मुआवजा दिए जाने की घोषणा की गई है। जबकि दुष्कर्म के मामले में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है। वहीं जिला प्रशासन द्वारा एक जांच टीम का गठन किया गया है जो अस्पताल में जाकर मामले की छानबीन करेगी।
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मिली जानकारी के अनुसार मृतका अति पिछड़ा वर्ग से आती थीं। मामला प्रकाश में तब आया जब गत 17 मई, 2021 को मृतका की बेटी प्रियंका कुमार ने स्थानीय न्यूज चैनलों को बयान दिया कि उसकी मां के साथ दुष्कर्म किया गया है। यह मामला सुर्खियों में इसलिए भी बना क्योंकि मृतका मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पैतृक गांव कल्याणबिगहा की रहने वाली थी। हालांकि इसके बावजूद न तो अस्पताल प्रबंधन पर और ना ही आरोपियों के खिलाफ कोई कार्यवाई की गई। इस बीच 19 मई को प्रियंका की मां की मौत हो गई। अपने बयान में प्रियंका ने अपनी मां की हत्या करने का आरोप लगाया है।
फारवर्ड प्रेस से बातचीत में प्रियंका ने बताया कि उसकी मां गांव में आंगनबाड़ी सेविका थी। उसने यह दुहराया कि उसकी मां की हत्या हुई है ताकि उसकी मां को गवाही देने से रोका जा सके।
वहीं मृतका के आश्रितों को 54 लाख रुपए की मुआवजा दिए जाने की घोषणा करने वाले राज्य के समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी ने बताया कि 4 लाख रुपए पीड़ित परिवार को उपलब्ध करा दिया गया है तथा शेष 50 लाख रुपए की राशि के लिए विभागीय प्रक्रिया आरंभ कर दी गयी है। यह पूछे जाने पर कि क्या राज्य में आंगनबाड़ी सेविकाआों की कोरोना से मौत होने पर 50 लाख रुपए देने का प्रावधान पहले से तय है और क्या यह राशि किसी और मामले में दिया गया है, सहनी ने विवरण देने से इंकार किया।
छत्तीसगढ़ और झारखंड में वैक्सीन लेने से डर रहे आदिवासी
आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में हालांकि राज्य सरकार द्वारा गांव-गांव जाकर लोगों को कोरोना का टीका लगाया जा रहा है। लेकिन बस्तर सहित अनेक जिलों में आदिवासी वैक्सीन लेने से इंकार कर रहे हैं। यहां तक कि कोरोना के लक्षण होने के बावजूद वे न तो जांच करवा रहे हैं और ना ही दवाएं ले रहे हैं। इससे स्थिति विस्फोटक बनती जा रही है। यही हाल झारखंड राज्य का भी है।
पीयूसीएल, छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान ने इस संबंध में बताया कि लोग राज्य सरकार के तंत्र पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। इसकी वजह कहीं न कहीं तंत्र के खिलाफ लोगों का आक्रोश है। इसके अलावा उनमें जागरूकता का भी अभाव है। वहीं जन स्वास्थ्य समिति, छत्तीसगढ़ से संबद्ध दीपिका जोशी ने बताया कि छत्तीसगढ़ के शहरी इलाकों में लोग टीकाकरण में दिलचस्पी ले रहे हैं। लेकिन सुदूर जिलों में लोगाें में भ्रांतियां हैं। इसके लिए उनके संगठन की तरफ से जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है।
वहीं, झारखंड के पत्रकार विशद कुमार के मुताबिक, आदिवासियों को सरकार यह नहीं बता पा रही है कि टीके से उनकी जान बच सकती है। इसके अलावा यह भी कि लोगों के अंदर अभी भी अंधविश्वास है। वहीं लोगों में यह भ्रांति भी है कि टीका लगवाने से वे बीमार पड़ सकते हैं।
(संपादन : अमरीश)
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