बहुजन साप्ताहिकी
आदिवासियों की वर्तमान स्थिति को जानना है तो उनके इतिहास को समझना होगा। आदिवासी एक निर्माता है, शिकार भी करता है, पर प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों का अतिदोहन नहीं करता। ये बातें प्रसिद्ध आदिवासी मर्मज्ञ प्रो. वर्जिनियस खाखा ने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में चल रहे तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के पहले दिन अपने अध्यक्षीय संबोधन में कही। बीते 28 अक्टूबर से चल रहे इस तीन दिवसीय आयोजन का आखिरी दिन है। इसका आयोजन गोंडवाना स्वदेश पत्रिका व छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के संयुक्त तत्वावधान में किया गया है। संगोष्ठी का उद्घाटन छत्तीसगढ़ के संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने किया। इस मौके पर पहले 15 शोधार्थियों ने अपना शोधपत्र पढा जो आदिवासियों के अलग अलग पहलुओं से संबंधित रहे। लुप्त होती आदिवासी प्रजाति, कोरकू जनजाति, सहरिया जनजाति(राजस्थान), संथाल जनजाति, भारिया जनजाति आदि पर अपने अपने तथ्यात्मक विचार रखे। संगोष्ठी के तीनों दिन के स्वरूप के बारे में छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सचिव अनिल भतपहरी ने जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन डॉ. गोल्डी एम. जार्ज ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन गोंडवाना स्वदेश पत्रिका के संपादक रमेश ठाकुर ने किया।
फणीश्वरनाथ रेणु का मूल्यांकन होना अभी बाकी
भारतीय लेखन परम्परा में प्रेमचंद, टैगोर, कुमार आशान और सुब्रमण्यम भारती के बाद जो एक नाम उभरकर आता है वह फणीश्वरनाथ रेणु जी का है। आज भी उनका मूल्यांकन होना बाकी है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्हें आंचलिकता की कोटि में डाल दिया गया। जिस तरह राष्ट्र के नेता डॉ. आंबेडकर को दलित नेता के रूप में स्थापित कर दिया गया, उसी तर्ज पर बड़े फलक के राष्ट्रीय लेखक रेणु को आंचलिकता के खांचे में रखने का कुचक्र रचा जाता रहा। ये बातें बिहार विधान परिषद सदस्य और वरिष्ठ लेखक प्रेमकुमार मणि ने बीते 23 अक्टूबर को बिहार की राजधानी पटना के कालिदास रंगालय में ‘फणीश्वरनाथ रेणु : सृजन एवं सरोकार’ विषयक दो दिवसीय सेमिनार में कही।
रेणु जन्मशताब्दी वर्ष के मौके पर आयोजित इस राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन सत्राची फाउंडेशन एवं वाई.बी.एन. विश्वाविद्यालय, राँची के द्वारा किया गया। पहले सत्र की अध्यक्षता डा. रामवचन राय ने की। इस मौक़े पर कवि आलोक धन्वा, प्रेमकुमार मणि, सुरेन्द्र नारायण यादव, अशोक आलोक, असलम हसन और आनन्द बिहारी ने रणु साहित्य के अलक्षित पक्ष पर अपनी बातें रखीं।
कार्यक्रम के आरंभ में रेणु साहित्य के मर्मज्ञ भारत यायावर के असामयिक निधन पर दो मिनट का मौन रखा गया, उसके उपरांत प्रतिभागियों द्वारा भेजे गए शोधालेखों का एक संकलन ‘फणीश्वोरनाथ रेणु : सृजन एवं सरोकार’ का विमोचन किया गया। पुस्तक का संपादन सत्राची फाउंडेशन के निदेशक आनंद बिहारी न किया है।
इस मौके पर साहित्यकार व बिहार विधान परिषद के सदस्य डॉ. रामवचन राय ने कहा कि हिंदी समाज असहिष्णु समाज है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि रेणु जन्शमताब्दी वर्ष के मौके पर जहां उनके योगदान का निरूपण किया जाना था लोग अपनी कुंठा में कभी उन्हें आदिवासी विरोधी तो कभी किसी जाति और मजहब के विरोधी के रूप में प्रकट करते रहे हैं। वहीं कवि आलोक धन्वा ने कहा कि बड़े वाम आलोचकों ने रेणु जी पर जैसा काम करना चाहिए था नहीं किया, उनको लेकर जैसी बेचैनी इन लेखकों में दिखाई पड़नी चाहिए थी, नहीं दिखाई पड़ी। सब ने उनसे सीखा, जो नहीं सीखा वे जड़ हो गए।
युवा कवि असलम हसन ने फणीश्वर नाथ रेणु साहित्य में मुस्लिम समाज की चिंताओं पर केंद्रित अपने आलेख का पाठ किया। उन्होंने बताया कि रेणु जिस अंचल से आते थे, वहां मुसलमानों की अच्छी खासी आबादी है लेकिन उनके साहित्य में उनकी समस्याओं की व्यापकता नजर नहीं आती।
अपने संबोधन में रेणु साहित्य के मर्मज्ञ सुरेंद्र नारायण यादव ने फणीश्वर नाथ रेणु के ‘मैला आंचल’ और परती परिकथा आदि उपन्यासों में आये चरित्रों पर खासतौर से अपना ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कहा कि रेणु लोकतंत्र की आहट को गहरे अंकित करने वाले अपने समय के विरल लेखक थे। इस मौके पर रानीगंज से आये लेखक अशोक आलोक ने रेणु जी के आरंभिक दिनों से जुड़ी स्मृतियों का अनुभव साझा किया। उन्होंने लेखक फणीश्वर नाथ रेणु के बचपन और उनके आसपास के जीवन परिवेश से जुड़ी कई दिलचस्प जानकारियां साझा की। इस पहले सत्र का संचालन अरुण नारायण ने किया और धन्यवाद ज्ञापन आनंद बिहारी ने किया।
बहुजनों की एकता को लेकर पैगाम के बैनर तले जुटान
देश के बहुजनों के बीच एकता कैसे बने ताकि बहुसंख्यक आबादी शासन-प्रशासन में अपनी समुचित भागीदारी सुनिश्चित करे, इस विषय पर विचार-विमर्श हेतु आगामी 18-19 दिसंबर, 2021 को दिल्ली में कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। पैगाम के तत्वावधान में इस मौके पर राष्ट्रीय अधिवेशन भी आहूत है। यह दो दिवसीय आयोजन नई दिल्ली के रानी झांसी मार्ग पर अवस्थित (झंडेवालान मेट्रो स्टेशन के नजदीक) आंबेडकर भवन के परिसर में होगा। आयोजन के लिए जो विषय निर्धारित हैं उनमें ‘बहुजन समाज की अपसी भाईचारा और एकता’, ‘उभरते युवा राजनीतिक नेतृत्व को सहयोग और दिशा देने की आवश्यकता’, ‘जातिगत जनगणना कराओ वरना कुर्सी खाली करो’ और ‘निजीकरण और ठेकेदारी : बहुजनों की हकमारी का षडयंत्र’ शामिल हैं।
बिहार के मुजफ्फरपुर में जहरीली शराब से छह की मौत, तीन हुए अंधे
बिहार में शराबबंदी का सरकारी दावे की पोल फिर खुली है। सूबे मुजफ्फरपुर जिले के सरैया पंचायत के दलितबहुजन बहुल गांव रूपौली में अबतक छह लोगों के मरने की सूचना है। जिले के वरीय पुलिस अधीक्षक जयंतकांत ने इस संबंध में बताया है कि जहरीली शराब पीने से अब तक छह लोगों की मौत हो चुकी है। जबकि तीन के आंखों की रोशनी जा चुकी है और चार अभी भी गंभीर अवस्था में इलाजरत हैं। बताया जाता है कि पंचायत चुनाव में जीत के बाद जश्न मनाए जाने के दौरान शराब का सेवन किया गया। बीते मंगलवार को हुए इस जश्न के बाद लोग बीमार पड़ने लगे। वहीं इस घटना के बाद स्थानीय प्रशासन ने रूपौली गांव पहुंचकर लोगों से पूछताछ की तथा अवैध शराब बनाने के अरोप में एक आदमी को गिरफ्तार किया गया है।
(संपादन : अनिल, इनपुट सहयोग– पटना से अरुण नारायण व रायपुर से पूनम साहू)