h n

आंखों-देखी : जुबान बंद, आंखें दे रहीं लखबीर सिंह के मारे जाने की गवाही

बीते 15 अक्टूबर, 2021 को सिंघु बार्डर पर एक दलित की बर्बर हत्या कर दी गई। उसके उपर ‘सरबलोह’ नामक ग्रंथ की बेअदबी करने का आरोप था। लेकिन क्या यह आरोप इतना बड़ा आरोप था कि उसकी जान ले ली गई? लखबीर सिंह की हत्या के एक सप्ताह बाद सिंघु बार्डर का आंखों-देखा हाल

तारीख 22 अक्टूबर, 2021, स्थान सिंघु बार्डर। यह दिल्ली और हरियाणा की सीमा है। सीमा दो थानों के क्षेत्र में आता है। दिल्ली के हिसाब से देखें तो नरेला थाना और हरियाणा के हिसाब से कुंडली थाना। कुंडली थाना तो बिल्कुल उसी जगह है, जहां पिछले 11 महीने से किसान तीन कृषि कानूनों को लेकर आंदोलनरत हैं। इस सीमा पर आंदोलन स्थल के दोनों छोरों पर संबंधित राज्यों की पुलिस के अलावा केंद्रीय सुरक्षा बलों की भारी तैनाती है। यह पूछने पर कि सीमा पर कितने जवानों की तैनाती होगी, स्थानीय ने बताया कि पहले तो यहां कम से पांच हजार के आसपास पुलिस के जवान रहते थे। अब भी कम से कम पांच सौ जवान तो रहते ही हैं।

पुलिस के जवानों की तैनाती की थाह लेने के पीछे यह सवाल रहा कि जब बीते 15 अक्टूबर की रात लखबीर सिंह की हत्या निहंगों (सिक्ख धर्मावलंबियों का एक समूह) द्वारा की जा रही थी, तब क्या पुलिस के जवानों की कानों में उसकी चीख नहीं गूंजी होगी जब वह निहंगों से अपनी जान बख्श देने की गुहार लगा रहा होगा या फिर जब पहले उसका हाथ और बाद में पैर काटा गया होगा।

एक स्थानीय ने वह बैरिकेड दिखाया, जिसके उपर लखबीर सिंह को टांगा गया था। साथ ही वहलकड़ी का टुकड़ा भी दिखाया, जिसके उपर लखबीर का हाथ और पैर रखकर काटा गया। इसके ठीक बगल में निहंगों का कैंप और उसके सामने उनके घोड़ों के लिए बनाया गया अस्थायी अस्तबल। स्थानीय ने इसकी जानकारी दी कि लखबीर सिंह निहंगों की सेवा करता था। उसकी जिम्मेदारियों में घोड़ों की देख-रेख भी शामिल थी।

 

संयुक्त किसान मोर्चा के मुख्य मंच के नजदीक वह स्थल जहां, लखबीर सिंह की हत्या की गई

लखबीर सिंह की हत्या के दिन संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा एक बयान जारी किया गया। इस बयान में इस बात का उल्लेख है कि मृतक लखबीर सिंह कहां का रहने वाला था। यह बयान उस मोर्चे द्वारा जारी किया गया, जिनका मुख्य मंच हत्या स्थल से बमुश्किल 50 मीटर की दूरी पर है। मोर्चे ने 15 अक्टूबर, 2021 को अपने  बयान में कहा–

“संयुक्त किसान मोर्चा के संज्ञान में आया है कि आज सुबह सिघु मोर्चा पर पंजाब के एक व्यक्ति (लखबीर सिंह, पुत्र दर्शन सिंह, गांव चीमा कला, थाना सराय अमानत खान, जिला तरनतारन) का अंग भंग कर उसकी हत्या कर दी गई। इस घटना के लिए घटना स्थल के एक निहंग समूह ग्रुप ने जिम्मेदारी ले ली है, और यह कहा है कि ऐसा उस व्यक्ति द्वारा सरबलोह ग्रंथ की बेअदबी करने की कोशिश के कारण किया गया। खबर है कि यह मृतक उसी समूह/ग्रुप के साथ पिछले कुछ समय से था।

“संयुक्त किसान मोर्चा इस नृशंस हत्या की निंदा करते हुए यह स्पष्ट कर देना चाहता है कि इस घटना के दोनों पक्षों, इस निहंग समूह/ग्रुप या मृतक व्यक्ति, का संयुक्त किसान मोर्चा से कोई संबंध नहीं है। हम किसी भी धार्मिक ग्रंथ या प्रतीक की बेअदबी के खिलाफ हैं, लेकिन इस आधार पर किसी भी व्यक्ति या समूह को कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं है। हम यह मांग करते हैं कि इस हत्या और बेअदबी के षडयंत्र के आरोप की जांच कर दोषियों को कानून के मुताबिक सजा दी जाए। संयुक्त किसान मोर्चा किसी भी कानून सम्मत कार्यवाही में पुलिस और प्रशासन का सहयोग करेगा।

“लोकतांत्रिक और शांतिमय तरीके से चला यह आंदोलन किसी हिंसा का विरोध करता है।”

इस बयान पर बलबीर सिंह राजेवाल, डॉ. दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढ़ूनी, हन्नान मोल्ला, जगजीत सिंह डल्लेवाल, जोगिन्दर सिंह उगराहां, शिवकुमार शर्मा (कक्का जी), युद्धवीर सिंह, योगेंद्र यादव ने हस्ताक्षर किया है।

संयुक्त किसान मोर्चे के इस बयान से यह तो स्पष्ट है कि किसान नेताओं ने लखबीर सिंह की हत्या की पुष्टि की है और इस बात की भी कि निहंगों ने पहले उसका अंग भंग किया और बर्बरता से उसकी जान ली। यह बयान इस बात की भी पुष्टि करता है कि लखबीर निहंगों के साथ रह रहा था। लेकिन पूरा मामला क्या है, यह तो कोई चश्मदीद ही बता सकता था।

दिल्ली से जाने पर सिंघु बार्डर के हरियाणा सीमा में जाने के लिए स्थानीय निवासियों द्वारा बनाया दीवार तोड़कर बनाया गया वैकल्पिक रास्ता, जो कीचड़ और गंदगी से अटा पड़ा है

हत्यास्थल से कुछ दूरी (मुश्किल से 100 मीटर) पर एक निजी प्रतिष्ठान में काम करने वाले व्यक्ति ने बताया कि उस समय वह सोया हुआ था और जब पहली बार किसी के चीखने की आवाज आयी तब करीब ढाई बजे रहे होंगे। चीख सुनकर बाहर आया तो देखा कि सब संयुक्त किसान मोर्चा के मुख्य मंच की तरफ दौड़े जा रहे हैं। उस समय पुलिस वाले जो अवरोधकों के इस पार तैनात थे, वे भी जमा हो गए थे। निहंग करीब बीस-पच्चीस की संख्या में थे और सबके हाथ में तलवार था। सबके सामने मारा गया वह। उसकी अंतिम चीख करीब चार बजे निकली। तब शायद उसकी मौत हो चुकी थी।

सिंघु बार्डर पर संयुक्त किसान मोर्चे के मुख्य मंच की तस्वीर

वहीं दूसरी तरफ कुंडली थाना प्रभारी रवि कुमार ने दूरभाष पर जानकारी दी कि उन्हें घटना की जानकारी सुबह साढ़े पांच बजे मिली और थाने की पुलिस पौने छह बजे हत्या स्थल पर पहुंची।

घटना के संबंध में किसान मजदूर संघर्ष मोर्चा के मीडिया प्रभारी विकी जैनपुरी से कुछ सीमित जानकारियां दीं। इस मोर्चे का दिल्ली की सीमा में अपना मंच है और संयुक्त किसान मोर्चा के मुख्य मंच से इस मोर्चे के मंच के बीच में करीब 50 मीटर की दूरी है। पुलिस ने घेराबंदी कर रखी है। इस वजह से दिल्ली से जाने के बाद किसान मजदूर संघर्ष मोर्चा के मंच तक गांव के नाले के किनारे बने कच्चे रास्ते से जाना पड़ता है। बार्डर के उस पार संयुक्त किसान मोर्चा के मंच और मुख्य आंदोलन स्थल तक जाने के लिए स्थानीय निवासियों के साथ मिलकर प्रदर्शनकारी किसानों ने एक वैकल्पिक रास्ता बना रखा है जो दीवारों को तोड़कर बनाया गया है। साथ ही, रास्ते में कीचड़ और गंदगी का अंबार है।

खैर, विकी जैनपुरी के मुताबिक, “आंदोलन कमजोर नहीं पड़ने वाला है। अभी चूंकि खेतों धान की कटाई का समय है तो लोगों की उपस्थिति कम होगी। लेकिन 26 नवंबर तक आते-आते लोग पहले की तरह बड़ी संख्या में जुटेंगे।” पुलिस द्वारा व्यवधानों और सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी के बारे में विकी जैनपुरी ने कहा कि “रास्ता हम किसानों ने नहीं, बल्कि पुलिस ने बंद कर रखा है। पुलिस और प्रशासन आगे का रास्ता खोले तब हम किसान तय करेंगे कि हमें क्या करना है।”

लखबीर सिंह की हत्या के संबंध में पूछे जाने पर उनका जवाब बिल्कुल वैसा ही था जैसा कि उपर में संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा 15 अक्टूबर, 2021 को जारी बयान में कहा गया है।

यह तो स्पष्ट है कि लखबीर सिंह की हत्या को बहुत सारे लोगों ने अपनी आंखों से देखा। इस बात की पुष्टि हरियाणा के एक बुजुर्ग आंदोलनरत किसान ने भी की। उन्होंने बताया कि “जब लखबीर सिंह को मारा जा रहा था तब किसी ने कहा कि जिसे मारा जा रहा है, वह हरियाणा का है, तब बड़ी संख्या में हरियाण के लोग हत्या स्थल की ओर दौड़े। उनके मुताबिक बहुत सारे लोगों ने पूरी घटना का वीडियो बनाया। लेकिन किसी ने बचाने की कोशिश नहीं की। उनके मुताबिक लखबीर सिंह को मारा जाना गलत हुआ। यदि उसने कुछ गलती की भी थी, तो उसे मारपीट कर छोड़ देते या फिर पुलिस के हवाले कर देते। कानून को अपने हाथ में लेने की क्या जरूरत थी।”

संयुक्त किसान मोर्चे के मुख्य मंच के पास बनाया गया शहीद स्मारक

इस बीच यह जानकारी भी मिली कि 21 अक्टूबर, 2021 को भी एक घटना घटित हुई। इस घटना में स्थानीय पोल्ट्री फर्म में काम करने वाले एक व्यक्ति का पैर तोड़ दिया गया। स्थानीय लोगों ने बताया कि यह घटना भी निहंगों ने अंजाम दिया। इस घटना के पीछे जो जानकारी हमें मिली, उसके मुताबिक एक निहंग ने उस व्यक्ति से एक मुर्गा की मांग की, जिसे देने से उसने इंकार कर दिया। इंकार करने के बाद वह दूर जाकर बीड़ी पीने लगा। इसी क्रम में उसके उपर हमला बोला गया। हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।

खैर, हत्या स्थल और संयुक्त किसान मोर्चा के मुख्य मंच से करीब 100 मीटर दूरी पर ही एक अस्थायी अस्पताल भी है, जिसके पास चौबीसों घंटे एक एंबुलेंस उपलब्ध रहता है। ऐसे में यह सवाल अब भी बरकरार है कि क्यों लखबीर सिंह जान नहीं बचाई गई और सभी उसे तड़प-तड़पकर मरते हुए देखते रहे?

(संपादन : अनिल)

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार / प्रियंका प्रियदर्शिनी

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं। प्रियंका प्रियदर्शिनी हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य की छात्रा हैं

संबंधित आलेख

यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’
“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...
महाराष्ट्र में आदिवासी महिलाओं ने कहा– रावण हमारे पुरखा, उनकी प्रतिमाएं जलाना बंद हो
उषाकिरण आत्राम के मुताबिक, रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया...