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सिर्फ दलित साहित्यकार नहीं थे ओमप्रकाश वाल्मीकि, परिनिर्वाण दिवस के मौके पर बोले डॉ. एन. सिंह

ओमप्रकाश वाल्मीकि के परिनिर्वाण दिवस के मौके पर आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जाने-मााने आलाेचक डॉ. एन. सिंह ने कहा कि ओमप्रकाश वाल्मीकि जी ने अपने समय में हिंदी साहित्य की एक ऐसी गैर-उर्वर भूमि को तोड़कर उपजाऊ भूमि में तब्दील किया जो सदियों से उपेक्षित पड़ी थी। राज वाल्मीकि की खबर

जाने-माने आलोचक और लेखक डॉ. एन सिंह ने कहा कि यदि ओमप्रकाश वाल्मीकि को सिर्फ दलित लेखक कहा जाए तो यह उनको कमतर आंकना होगा। वे राष्ट्रीय स्तर के हिंदी साहित्यकार थे। उनकी आत्मकथा जूठन दलित साहित्य की ही नहीं बल्कि हिंदी साहित्य की कालजयी रचना है। उनका समग्र साहित्य प्रकाशित होकर सामने आना चाहिए। डॉ. एन. सिंह जी साहित्य चेतना मंच द्वारा आयोजित ओमप्रकश वाल्मीकि स्मृति साहित्य सम्मान समारोह में बोल रहे थे। ऑनलाइन आयोजित इस कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि जूठन दलित समाज के कटु यथार्थ को हमारे सामने रखती है और उनके साथ होने वाले भेदभाव और छूआछूत से समस्त विश्व को रू-ब-रू कराती है।

गौर तलब है कि बीते 17 नवंबर, 2021 को यह आयोजन ओमप्रकाश वाल्मीकि के परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर साहित्य चेतना मंच (साचेम), सहारनपुर, उत्तर प्रदेश द्वारा किया गया। इस मौके पर दूसरे ओमप्रकाश वाल्मीकि साहित्य सम्मान-2021 के तहत दस दलित-बहुजन साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। इन साहित्यकारों में प्रो. नामदेव, डॉ. सुमित्रा मेहरोल, संतोष पटेल, डॉ. अमित धर्मसिंह, डॉ. कार्तिक चौधरी, डॉ. सुरेखा, डॉ. चैन सिंह मीणा, आर. एस. आघात, डॉ. राम भरोसे और सुनील पंवार शामिल हैं।

अपने मुख्य संबोधन में डॉ. एन. सिंह ने ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य कर्म व जीवन पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि जूठन उनकी कालजयी रचना है, जिसका अनुवाद देश-विदेश की दस भाषाओं में हो चुका है। उनकी आत्मकथा के अंश एवं उनकी कई कहानियां विभिन्न विश्वविद्यालयें के पाठयक्रम में शामिल हैं। उनकी कविताएं बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए एक छोटी कविता का अंश जैसे– ‘चूल्हा मिट्टी का, मिट्टी तालाब की, तालाब ठाकुर का, फिर मेरा क्या।’ या उनकी एक कविता है – आप शायद जानते हों!। यह कविता जब नवभारत टाइम्स में छपी थी तो काफी हंगामा हुआ था। इसी प्रकार उनकी कहानी ‘शवयात्रा’ जब प्रकाशित हुई थी तो उसकी काफी आलोचना हुई थी।

आलोचक व साहित्यकार डॉ. एन. सिंह

डॉ. सिंह ने कहा कि ओमप्रकाश वाल्मीकि ने ‘दलित साहित्य का सौंदर्य शास्त्र’ लिखकर उन सवर्ण आलोचकों को जवाब दिया था, जो दलित साहित्य में शिल्पकला की कमी बताते थे। उन्होने सफाई देवता लिखकर सफाई कर्मचारी समुदाय के इतिहास में भी झांकने की कोशिश की। उनकी कहानियों में अम्मा, बिरम की बहू’, सलाम, पच्चीस चौके डेढ़ सौ आदि उल्लेखनीय हैं। उन्होंने कांचा इलैया शेपर्ड की चर्चित पुस्तक व्हाई आई ऍम नाट अ हिन्दू का हिन्दी में अनुवाद भी किया। इसके आलवा ओमप्रकाश वाल्मीकि लेखक के अलावा नाटककार और अभिनेता व नाट्य निर्देशक भी थे। 

डॉ. सिंह ने कहा कि ओमप्रकाश वाल्मीकि जी ने अपने समय में हिंदी साहित्य की एक ऐसी गैर-उर्वर भूमि को तोड़कर उपजाऊ भूमि में तब्दील किया जो सदियों से उपेक्षित पड़ी थी। यद्यपि हिंदी साहित्य लिखा जा रहा था पर वह जातिवाद से पीड़ित वर्ग, जाति भेद से पीड़ित समाज की आवाज नहीं बन रहा था। उन्होंने इस बंजर भूमि को जोत-बोकर इस पर दलित साहित्य की फसल उगाई। यह कार्य उस दौर में बहुत कठिन था। मगर वाल्मीकि जी ने यह कर दिखाया। इसके साथ ही उन्होंने दलित साहित्यकारों को यह संदेश दिया कि हमें क्या लिखना चाहिए और क्यों लिखना चाहिए। उन्होंने साहित्य को मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि एक खास मकसद के लिए लिखने की बात कही थी। उन्होंन जूठन जैसी आत्मकथा लिखी और सफाई समुदाय की ऐसी पीड़ा को साहित्य जगत के सामने रखा जिस पर अब तक कोई ध्यान नहीं दे रहा था। एक अछूते क्षेत्र से साहित्य का परिचय कराया। उन्होंने अम्मा जैसी कहानी लिखी जो मैला ढोने वाली महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती है। उन्होंने दलित वर्ग के आपसी मतभेदों को भी सामने रखने के लिए शवयात्रा जैसी कहानी भी लिखी, जो उस सामय बहुत चर्चित रही। हालांकि उसकी आलोचना भी बहुत हुई। किसी कृति की आलोचना करना बुरा नहीं है यदि वह सही नीयत और निष्पक्ष ढंग से की जाए। ओमप्रकाश वाल्मीकि का रचना संसार उनका साहित्य नई पीढ़ी का उसी तरह मार्ग दर्शन करता है जिस प्रकार अँधेरे में सागर के यात्रियों को लाइट हाउस या प्रकाशस्तम्भ।

सहानुभूति के लिए नहीं लिखा जाता है दलित साहित्य

विशिष्ट वक्ता के रूप में बोलते हुए कवयित्री और लेखिका डॉ. पूनम तुषामड ने कहा कि हम सहानुभूति के लिए लिखे गए साहित्य को दलित साहित्य नहीं कह सकते, बल्कि स्वानुभूति के साहित्य को ही दलित साहित्य कहा जा सकता है। उन्होंने ओमप्रकाश वाल्मीकि की पुस्तक दलित साहित्य का सौन्दर्य शास्त्र की चर्चा करते हुए कहा कि हिंदी के गैर दलित साहित्यकार दलित साहित्य को यह कहकर खारिज कर देते हैं कि यह तो रोने-पीटने का साहित्य है। ऐसे आलोचकों को ओमप्रकाश वाल्मीकि जी ने अपनी इस पुस्तक में करारा और तर्कपूर्ण जवाब दिया है। यह गैर दलित साहित्यकारों के सारे प्रतिमानों को बदल देता है। 

समालोचक व कवयित्री डॉ. पूनम तुषामड़

डॉ. तुषामड़ ने उदाहरण देते हुए कहा कि उनके लिए चाँद सुंदरता का प्रतीक होता है तो हम दलितों के लिए वह रोटी का।

उन्होंने कहा कि दलितों को अपना भोग हुआ यथार्थ या जीवन की हकीकत लिखना बहुत मुश्किल होता है। बहुत साहस का काम होता है। दलित साहित्य प्रतिरोध का साहित्य है। बहुत प्रेरित करने वाला साहित्य है। 

डॉ. तुषामड़ ने कहा कि एक बार दलित लेखिका सुशीला टाकभौरे ने ओमप्रकाश वाल्मीकि जी से पूछा कि वे वाल्मीकि सरनेम क्यों लगाते हैं जबकि वह तो ब्राह्मण थे? इस पर ओमप्रकाश वाल्मीकि ने कहा था कि आजकल सब जानते हैं कि वाल्मीकि कौन होते हैं। वाल्मीकि एक जाति की पहचान हो गया है। और पूरे देश में वाल्मीकि जाति को लोग जानते हैं। मुझसे कोई मेरी जाति न पूछे इसलिए मैंने अपने नाम के साथ ही अपनी जाति लगा ली है। 

 

इस कार्यक्रम की रूपरेखा चर्चित दलित साहित्यकार डॉ. नरेन्द्र वाल्मीकि ने प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन युवा दलित रचनाकार रमन टाकिया ने किया। उन्होंने ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य को मील का पत्थर बताया। धरमपाल चंचल जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

राज वाल्मीकि

'सफाई कर्मचारी आंदोलन’ मे दस्तावेज समन्वयक राज वाल्मीकि की रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्होंने कविता, कहानी, व्यग्य, गज़़ल, लेख, पुस्तक समीक्षा, बाल कविताएं आदि विधाओं में लेखन किया है। इनकी अब तक दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं कलियों का चमन (कविता-गजल-कहनी संग्रह) और इस समय में (कहानी संग्रह)।

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