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यूपी चुनाव : बीएचयू के शोध छात्र-छात्राओं व शिक्षकों की राय

दर्शन और धर्मशास्त्र विभाग के प्रोफेसर प्रमोद बागड़े कहते हैं कि हमें संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए इन ब्राह्मणवादी हिन्दुत्व की ताकतों को चुनौती देकर हराने की जरूरत है। योगी सरकार के पांच साल दलितों, अल्पसंख्यकों और अन्य उत्पीड़ित तबकों के लिए भयावह सिद्ध हुए है। पढ़ें, आकांक्षा आजाद की यह प्रस्तुति

उत्तरप्रदेश में चुनावी महासंग्राम का आगाज़ हो चुका है। सात चरणों में निर्धारित चुनाव में पार्टियां अपना भविष्य आजमाने को तैयार है। एक तरफ सत्तासीन योगी सरकार के पक्ष में चुनाव के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उतर चुके है।वहीं दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियां योगी सरकार को घेरने की पूरी तैयारी कर चुकी हैं। इस सियासी घमासान को लेकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के शिक्षक व छात्रों की राय क्या है, फारवर्ड प्रेस ने कुछ शिक्षकों व शोधार्थियों से बातचीत की। 

मसलन, हिंदी के शोधार्थी सुरेश जिनागल कहते हैं कि भाजपा सरकार की पिछले पांच सालों की कार्यप्रणाली पर नज़र डाली जाए तो एक समय रोम में हुई तबाही सा मंजर देखने को मिलता है। एक ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया जाना जो कि अपने मूल में सांप्रदायिक और फ़ासिस्ट हो, भाजपा के नापाक इरादों को स्पष्ट करता है। 2017 के आंकड़ों को उठाकर देखा जाए तो सबसे अधिक सांप्रदायिक घटनाएं उत्तर प्रदेश में ही घटित हुई थीं। इससे यह अनुमान लगाना कठिन नहीं कि सांप्रदायिकता को इन्होंने मुख्य हथियार उस समय भी बनाया था और आगे भी बनाते रहेंगे। यही इनका मुख्य मुद्दा भी है। गुजरात में 2002 की घटनाओं के बाद नरेंद्र मोदी की छवि को जिस प्रकार उभार गया और उस छवि का फ़ायदा उठाकर वह व्यक्ति प्रधानमंत्री भी बना, कुछ उसी प्रकार की कोशिश उत्तर प्रदेश में भी ये लोग करना चाहते हैं। ‘अयोध्या अभी झांकी है, काशी मथुरा बाकी है’ यह नारा बताता है कि विकास की बात को परे हटाकर ये लोग सिर्फ़ सांप्रदायिकता पर फ़ोकस करते हैं। मेरी राय से उत्तर प्रदेश का चुनाव शिक्षा, स्वास्थ्य और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर लड़ा जाना चाहिए लेकिन आज पूरे राज्य में शिक्षा और स्वास्थ्य की जगह इन्होंने धर्म को आधार को बना रखा है। 

वहीं बीएससी की छात्रा श्रेयस सिंह की नजर में योगी सरकार के पांच वर्ष के कार्यकाल में हिंदुत्व और विकास का एक अनूठा संगम वाला मॉडल दिखा। वे कहती हैं कि प्रदेश में कानून व्यवस्था में व्यापक सुधार, 24 घंटे बिजली, सड़क व्यवस्था, बाहरी निवेश, महिलाओं की सुरक्षा आदि पर बहुत बेहतरीन तरीके से काम हुआ है। इसके साथ ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद जिसमें राम मंदिर का निर्माण एवं काशी विश्वनाथ कॉरिडोर मुख्य हैं। 

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के परिसर का एक दृश्य

दर्शन और धर्मशास्त्र विभाग के प्रोफेसर प्रमोद बागड़े कहते हैं कि हमें संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए इन ब्राह्मणवादी हिन्दुत्व की ताकतों को चुनौती देकर हराने की जरूरत है। योगी सरकार के पांच साल दलितों, अल्पसंख्यकों और अन्य उत्पीड़ित तबकों के लिए भयावह सिद्ध हुए है। दलितों, मुस्लिमों और महिलाओं पर बेतहाशा अत्याचार बढ़े हैं। शिक्षा की स्थिति बेहद खराब है। अन्य राज्यों की तुलना में उत्तर प्रदेश हर एक सामाजिक मानकों में पीछे रहा है। मीडिया चैनलों और समाचार पत्रों पर हिंदुत्व कॉरपोरेटवादियों का कब्ज़ा है। 

स्नातक की छात्रा निशा सिंह मानती हैं कि भाजपा ने 2014 के चुनाव के दौरान अपने घोषणा पत्र में जनता की मूलभूत आवश्यकताओं जैसे मंहगाई, बेरोजगारी, शिक्षा व सबको समानता की बाते कही, जिसपर जनता ने भरोसा कर भाजपा को भारी मतदान से जिताया। सत्ता में आते ही इस पार्टी ने प्राथमिक मुद्दों को छोड़ धर्म को प्राथमिक मुद्दा बना दिया, और जनता ने जब सवाल पूछना शुरू किया तो इन सवालों को दबाने के लिए राष्ट्रवाद और देशभक्ति की भावना को एक शस्त्र के रुप में इस्तेमाल कर सवाल पूछने वालो को देशद्रोही, नक्सली की संज्ञा में डाल दिया। परंतु एक धरमनिरपेक्ष और संविधान पर चलने वाले राष्ट्र में केवल एक धर्म को तरजीह नहीं दी जा सकती है, यह संविधान विरोधी है।जैसा की एक फ्रांसीसी विचारक वोल्टेयर का कहना है कि जो सरकार केवल धर्म को लेकर चलती है उस राष्ट्र की जनता के मूलभूत आवश्यकताओं का दमन हो जाता है, और यह कथन आज के परिस्थितियों पर पूर्णतः सही बैठती है। योगी सरकार ने अपने विफलताओं का इल्ज़ाम कोरोना महामारी पर लगा दिया और अपनी जिम्मेदारियों से बच निकलने की कोशिश की। आगामी चुनाव में भी योगी सरकार लोगों की आस्था व भावनाओं का इस्तेमाल कर पुनः सत्ता में आने का प्रयास कर रही है।

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बीए, तृतीय वर्ष के छात्र हर्ष भारद्वाज के अनुसार पूर्ववर्ती सरकारों की तरह योगी सरकार ने भी जनता से तमाम तरह के वादे किये थे पर उनमें से सिर्फ़ खानापूर्ति और सांप्रदायिक मानसिकता को फैलाने के अलावा कितने पूरे हो सके! जिस तरह से प्रदेश के आम नागरिकों के अधिकारों का हनन पिछले पांच सालों में किया गया है, कि युवा अपने लिए रोज़गार के लिए तरस गए हैं, कर्मचारी अपनी ही पेंशन के लिए लड़ रहे हैं और आम व्यक्ति महंगाई की मार के तले दब रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ पूंजीपति सुकून से बैठकर पैसे से पैसा कमा रहे है, उससे साफ़ ज़ाहिर है कि वर्तमान सरकार भटकी हुई सरकार साबित हुई है। इस बार के चुनाव की बात करें तो फिर से सभी पार्टियों के मुद्दों में वही सारे पुराने वादे नज़र आ रहे हैं जो पिछले कई सालों से हज़ारों करोड़ रुपये खर्च किये जाने के बावजूद भी पूरे नहीं हो सके हैं। मेरे हिसाब से इस बार आगामी चुनाव के लिए चुनावी मुद्दा नई योजनाओं को न लाना बल्कि पुरानी विकास योजनाओं को सही तरीके से लागू कराये जाना, ज़मीनी स्तर पर आम व्यक्ति की सुविधाओं के लिए काम किया जाना, हाशिये पर पहुँच गए लोगों को उनका हक़ दिलवाना और सबसे बढ़ी समस्या रोजगार और महंगाई को दूर करना आदि होना चाहिए।

समाजशास्त्र विभाग की प्रोफेसर प्रतिमा गोंड कहती हैं कि मेरे हिसाब से चुनाव का मुख्य एजेंडा शिक्षा होना चाहिए क्योंकि हमारे समाज से शिक्षा पूरी तरह से खत्म हो रही है। शिक्षा किसी भी समाज का आधार होती है, इसके बिना लोगों में चेतना नहीं आ सकती और जिनमें चेतना नहीं होती ऐसे लोग अपने अधिकारों के लिए भी आवाज नहीं उठा सकते हैं, चाहे वह जीवन जीने का अधिकार हो या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। शिक्षा के बाद अगला महत्वपूर्ण मुद्दा चिकित्सा है। कोविड के दौरान स्थिति संभाली जा सकती थी लेकिन नहीं संभाली गई। जिसके कारण इतनी संख्या में मौतें हुई। पिछले पांच सालों में हमने बहुत सारी चीजों को बिगड़ते देखा है। हम अपने प्रतिनिधियों को चुनकर इसलिए भेजते ताकि वह हमारे अधिकारों की रक्षा करें। लेकिन आज की स्थिति इसके उलट ही दिखती है। महिला सुरक्षा की बात करें तो इस सरकार में न तो उनके सम्मान की रक्षा है ना ही उनके जीवन की। हाथरस जैसे मामले में हमें सब देख सकते हैं। योगी सरकार के कार्यकाल में सभी वर्ग चाहे वह किसान हों, विद्यार्थी हों या फिर महिलाएं हों, सबका नुकसान हुआ है।

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

आकांक्षा आजाद

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस से राजनीति शास्त्र में एमए आकांक्षा आजाद स्वतंत्र लेखिका हैं तथा विश्वविद्यालय में छात्र संगठन भगत सिंह छात्र मोर्चा की अध्यक्ष हैं

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