h n

गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ को कैसी चुनौती देंगे चंद्रशेखर आज़ाद?

भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को अयोध्या के बजाय गोरखपुर शहरी विधानसभा क्षेत्र में लड़ने का निर्देश दिया। और अब चंद्रशेखर ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इस विधानसभा क्षेत्र और चंद्रशेखर की दावेदारी के बारे में बता रहे हैं सैयद जैगम मुर्तजा

भीम आर्मी प्रमुख और आज़ाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर आज़ाद ने गोरखपुर शहर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है। इस सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भाजपा के प्रत्याशी हैं। गोरखपुर से चंद्रशेखर की उम्मीदवारी का ऐलान होने के बाद इस सीट पर चुनाव का नतीजा भले जो भी हो, लेकिन मुक़ाबला तो दिलचस्प हो ही गया है।

गोरखपुर सदर सीट के लिए अभी कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवारों का ऐलान होना बाक़ी है। ज़ाहिर है, जबतक सभी पार्टियां अपने उम्मीदवार न उतार दें, तब तक समीकरणों पर बात करना जल्दबाज़ी ही कही जाएगी। लेकिन अभी तक इस सीट से जो दो चेहरे मैदान में आए हैं उनमें एक राज्य का मुख्यमंत्री है और दूसरा दलित राजनीति का एक उभरता हुआ चेहरा है। योगी आदित्यनाथ 2017 में मुख्यमंत्री बनने से पहले गोरखपुर से ही सांसद थे। यह विधानसभा क्षेत्र ऐतिहासिक तौर पर भाजपा का गढ़ माना जाता है। गोरखपुर सदर के मौजूदा विधायक राधा मोहन अग्रवाल और सांसद रविकिशन दोनों भाजपा से हैं। ऐसे में चंद्रशेखर की चुनौती कितनी मज़बूत होगी इसे लेकर क़यासबाज़ी होना लाज़िम है।

इतिहास की बात करें तो गोरखपुर सदर विधानसभा क्षेत्र से 1952 औऱ 1957 में कांग्रेस के इस्तफा हुसैन की जीत हुई। वर्ष 1962 में कांग्रेस पार्टी के नियामतुल्लाह अंसारी ने जीत हासिल की। वहीं वर्ष 1967 में भारतीय जनसंघ के उदय प्रताप विजयी हुए और इस तरह गोरखपुर में भगवा राजनीति का दरवाज़ा पहली बार खुला। जबकि 1969 में कांग्रेस के रामलाल भाई चुनाव जीते। फिर 1974 में अवधेश श्रीवास्तव जनसंघ के टिकट पर और फिर 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर चुनकर विधानसभा पहुंचे। 1980 और 1985 में लगातार दो बार इस सीट पर कांग्रेस के सुनील शास्त्री की भी जीत हुई।

आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

इसके उपरांत 1989, 1991, 1993 और 1996 में लगातार चार बार, गोरखपुर सदर सीट से भाजपा के शिव प्रताप शुक्ला की जीत हुई। 2002 में योगी आदित्यनाथ द्वारा भाजपा से बग़ावत के चलते राधा मोहन दास अग्रवाल हिंदू महासभा के टिकट पर चुनाव जीते। योगी पार्टी मे वापस आए तो राधा मोहन 2007 में भाजपा के उम्मीदवार हुए। फिर 2007, 2012 और 2017 में इस सीट से राधा मोहन विजयी रहे हैं। कुल मिलाकर राम मंदिर आंदोलन की लहर पर सवार होने के बाद से गोरखपुर भगवा राजनीति का गढ़ बना हुआ है।

वहीं सामाजिक ताने-बाने की बात करें तो गोरखपुर शहर विधान सभा क्षेत्र में राजपूत, कायस्थ, ब्राह्मण, बनिया और मुसलमान वोटर ठीक-ठाक संख्या में हैं। हालांकि, सिर्फ पिछड़े या दलित वोटरों की गोलबंदी नतीजों को बदल नहीं सकती, लेकिन उनपर गहरा असर ज़रुर डाल सकती है। गोरखपुर शहरी विधानसभा क्षेत्र में क़रीब 4 लाख मतदाता हैं। जातीय लिहाज़ से शहरी सीट पर करीब 35 हज़ार ब्राह्मण, क़रीब 30 हज़ार दलित और 20-25 हज़ार वैश्य वोटर हैं। इसके अलावा क़रीब 40 हजार निषाद, केवट, मल्लाह वोटर हैं, जो पिछड़ों में एक बड़ा समूह है। हालांकि गोरखपुर शहर की कुल आबादी का क़रीब 21 फीसदी मुसलमान हैं, लेकिन शहरी विधानसभा सीट पर तमाम अल्पसंख्यक वोटर 30 हज़ार के आसपास ही हैं।

इन जातिगत ताने-बाने से इतर गोरखपुर शहरी सीट के नतीजों पर गोरखनाथ मठ का सबसे ज़्यादा असर माना जाता है। मठ के प्रभाव और सवर्ण वोटरों की बड़ी तादाद के चलते चंद्रशेखर के लिए चुनाव आसान नहीं है। अगर भाजपा का निषाद पार्टी से समझौता न हुआ होता, तमाम पिछड़े और दलित लामबंद हो जाते, और फिर मुसलमान भी समर्थन दे देते तो चुनाव वाक़ई मज़ेदार हो जाता। 

बहरहाल, यह देखना होगा कि सपा, बसपा और कांग्रेस इस सीट पर किसे टिकट देते हैं। इसके पहले 2017 में कांग्रेस के राणा राघवेंद्र क़रीब 61 हज़ार वोट लेकर यहां दूसरे स्थान पर रहे थे। अगर विपक्षी पार्टियां जातीय समीकरणों के हिसाब से अपने उम्मीदवारों का ऐलान करती हैं तो योगी आदित्यनाथ को इस सीट पर घेरा जा सकता है। कुल मिलाकर गोरखपुर में चुनाव चेहरे पर होना है और फिलहाल यूपी की राजनीति के दो बड़े चेहरे यहां से मैदान में हैं।

(संपादन : नवल/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

सैयद ज़ैग़म मुर्तज़ा

उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में जन्मे सैयद ज़ैग़़म मुर्तज़ा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन और मॉस कम्यूनिकेशन में परास्नातक किया है। वे फिल्हाल दिल्ली में बतौर स्वतंत्र पत्रकार कार्य कर रहे हैं। उनके लेख विभिन्न समाचार पत्र, पत्रिका और न्यूज़ पोर्टलों पर प्रकाशित होते रहे हैं।

संबंधित आलेख

जंतर-मंतर पर गूंजी अर्जक संघ की आवाज – राष्ट्रपति हो या चपरासी की संतान, सबकी शिक्षा हो एक समान
राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव कुमार भारती ने मांगों पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि इसके पूर्व भी संघ के संस्थापक महामना राम स्वरूप...
दलित विमर्श की सहज कहानियां
इस कहानी संग्रह की कहानियों में जाति के नाम पर कथित उच्‍च जातियों का दंभ है। साथ ही, निम्‍न जातियों पर दबंग जातियों द्वारा...
चौबीस साल का हुआ झारखंड : जश्न के साथ-साथ ज़मीनी सच्चाई की पड़ताल भी ज़रूरी
झारखंड आज एक चौराहे पर खड़ा है। उसे अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने और आधुनिकीकरण व समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए...
घुमंतू लोगों के आंदोलनों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए अंतर्राष्ट्रीय वेब सम्मलेन
एशिया महाद्वीप में बंजारा/घुमंतू समुदायों की खासी विविधता है। एशिया के कई देशों में पशुपालक, खानाबदोश, वन्य एवं समुद्री घुमंतू समुदाय रहते हैं। इसके...
कुलदीप नैयर पत्रकारिता सम्मान-2023 से नवाजे गए उर्मिलेश ने उठाया मीडिया में दलित-बहुजनाें की भागीदारी नहीं होने का सवाल
उर्मिलेश ने कहा कि देश में पहले दलित राष्ट्रपति जब के.आर. नारायणन थे, उस समय एक दलित राजनीतिक परिस्थितियों के कारण देश का राष्ट्रपति...