उत्तर प्रदेश में पहले चरण के मतदान के बाद अब सबकी निगाहें रुहेलखंड पर है। इस इलाक़े को परंपरागत तौर पर समाजवादी पार्टी (सपा) का मज़बूत गढ़ माना जाता रहा है। सपा के लिए यह इलाक़ा इसलिए भी अहम है कि यहां पर मज़बूत प्रदर्शन किए बिना पार्टी राज्य में कभी भी सत्ता हासिल नहीं कर पाई है। इसके अलावा यह इलाक़ा बसपा के लिए भी काफी अहम माना जाता रहा है।
राज्य में दूसरे चरण में नौ ज़िलों में वोटिंग होनी है। इनमें बरेली, शाहजहांपुर, बदायूं, मुरादाबाद, रामपुर, अमरोहा, संभल, बिजनौर और सहारनपुर ज़िले हैं, जहां 14 फरवरी को वोट डाले जाएंगे। परंपरागत तौर पर संभल, रामपुर, अमरोहा, बदायूं और मुरादाबाद ज़िले सपा का गढ़ माने जाते रहे हैं। संभल से सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और पार्टी नेता रामगोपाल यादव सांसद रह चुके हैं। मुलायम परिवार के ही धर्मेंद्र यादव बदायूं से सांसद रहे हैं। इन नौ ज़िलों में समाजवादी पार्टी का कोर वोटर माने जाने वाले यादव और मुसलमान वोटरो का भी इम्तहान है।
सपा के ही आज़म ख़ान (रामपुर), इमरान मसूद (सहारनपुर), सलीम इक़बाल शेरवानी (बदायूं), जावेद अली ख़ान (संभल), शफीक़ुर्रहमान बर्क़ (संभल), जावेद आब्दी (अमरोहा), कमाल अख़्तर (अमरोहा), महबूब अली (अमरोहा), इक़बाल महमूद (संभल) जैसे तमाम बड़े मुसलमान चेहरों का संबंध दूसरे चरण में वोटिंग वाले इन नौ ज़िलों से है। इनमें आज़म ख़ान रामपुर से, जबकि कमाल अख़्तर मुरादाबाद की कांठ विधानसभा सीट, महबूब अली अमरोहा सदर, और इक़बाल महमूद संभल से अपनी क़िस्मत आज़मा रहे हैं। बसपा से सपा में आए वीर सिंह के पुत्र विवेक सिंह अमरोहा की मंडी धनौरा सीट से, शफीक़ुर्रहमान के पौत्र ज़ियाउर्रहमान मुरादाबाद की कुंदरकी सीट से जबकि आज़म ख़ान के पुत्र अब्दुलाह आज़म रामपुर की स्वार सीट से चुनाव मैदान मे हैं।
बसपा के लिए भी यह इलाक़ा काफी अहम रहा है। पार्टी प्रमुख मायावती परिसीमन में ख़त्म हो चुकीं सहारनपुर की हरौड़ा और बदायूं की बिल्सी सीट से विधायक रह चुकी हैं। इसके अलावा वह एक बार बिजनौर से सांसद भी रही हैं। भाजपा के लिए यह इलाका इसलिए अहम है क्योंकि 2017 की सफलता में रुहेलखंड का अहम हिस्सा था। पार्टी ने रुहेलखंड की 58 में से 38 सीट पर जीत हासिल की थी। सपा पार्टी के लिए 2017 के नतीजों में दो बातें सांत्वनापरक थीं। पहली, पार्टी ने राज्य भर में जो 44 सीट जीतीं उनमें 14 रुहेलखंड से थीं। दूसरी, तमाम सीटों पर पार्टी दूसरे स्थान पर थी और इनमें कई सीट पर मुक़ाबला नज़दीकी था।
इस बार भी यहां मुख्य मुक़ाबला समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच ही माना जा रहा है। हालांकि कुछ सीटों पर बसपा भी सीधे मुक़ाबले में है।
पूर्व के चुनाव परिणामों के अनुसार, वर्ष 2012 में सपा ने सहारनपुर ज़िले में सिर्फ एक सीट, देवबंद जीती थी। बिजनौर में उसे धामपुर और नगीना में जीत मिली थी। इसके अलावा सपा ने मुरादाबाद शहर, मुरादाबाद देहात, कुंदरकी, बिलारी, चंदौसी, असमोली, संभल, रामपुर, मिलक, धनौरा, अमरोहा, हसनपुर, नौगावां, गुन्नौर, बिसौली, सहसवान, बदायूं, शेख़ूपुर, बहेड़ी, नवाबगंज, फरीदपुर, पुवायां, ददरौल, और कटरा सीट पर जीत हासिल की थी। लेकिन 2017 में पार्टी ने इनमें से तक़रीबन आधी सीटें गंवा दीं।
भाजपा के लिए जहां 2017 के प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती है, वहीं सपा जानती है कि राज्य में सत्ता पानी है तो इन नौ ज़िलों में बड़ी बढ़त हासिल करना ज़रुरी है। बसपा के लिए बड़ी चुनौती अपने जाटव वोट को बांधे रखने और पुराने प्रदर्शन दोहराने की है। एक समय में बिजनौर, शाहजहांपुर, बदायूं और सहारनपुर बीएसपी के मज़बूत गढ़ माने जाते थे। अगर बसपा को राज्य में मज़बूत होना है तो इन ज़िलों में वापसी ज़रूरी है। यही हाल कांग्रेस का भी है। एक ज़माने में रामपुर, बदायूं, सहारनपुर में कांग्रेस की मज़बूत स्थिति थी लेकिन अब पार्टी को अपनी खोई ज़मीन की तलाश है।
ख़ैर, इन नौ जिलों में शिक्षा, कारोबार के अलावा जातिगत समीकरण अहम हैं। इसके अलावा यह अहम है कि मुसलमान वोटर क्या एक तरफ जा रहे हैं और जा रहे हैं तो किस तरफ। मुसलमान इन नौ ज़िलों में आधी से अधिक सीटों पर निर्णायक हैं। कुछ सीटों पर मुसलमान साठ फीसदी से भी ज़्यादा हैं। वह बारी-बारी से दलित, यादव और जाट वोटरों के साथ मिलकर जीत के समीकरण बनाते रहे हैं। पिछले चुनाव में मुसलमान वोटों का बसपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन में क़रीब बराबरी का बंटवारा हुआ था। संभल, और कांठ सीट पर एमआईएम ने भी मज़ूबत उपस्थिति दर्ज कराई थी। हालांकि इसका फायदा भाजपा को मिला था। इस बार भी भाजपा की उम्मीदें मुसलमान वोटों के सपा, बीएसपी, कांग्रेस और एमआईएम में बंटने पर ही हैं। अगर यह वोट नहीं बंटते हैं और सपा या बसपा में से किसी एक तरफ जाते हैं तो दूसरे चरण का चुनावी पलड़ा उसी तरफ झुक जाएगा।
(संपादन : नवल/अनिल)
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