वर्ष 2015 में तमिलनाडू के नामक्कल जिले के तिरूचेनगोड में स्थित प्रसिद्ध अर्द्धनारीश्वर मंदिर से गोकुलराज नामक इंजीनियरिंग के एक मेधावी छात्र का तब अपहरण कर लिया गया जब वह वहां एक छात्रा से बातचीत कर रहा था। बाद में, उसे अत्यंत ही क्रूरतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया गया। उसकी जीभ काट दी गई और उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया।
गोकुलराज दलित समुदाय से था और उसका ‘अपराध’ यह था कि उसकी दोस्ती गौंदर नामक एक प्रभावशाली शूद्र (ओबीसी) जाति की लड़की से थी। उसका अपराध शायद यह भी था कि वह एक ‘सफल युवा’ था। वह अच्छी अंग्रेजी बोलता था, उसने अपना एक छोटा-सा व्यवसाय भी शुरू किया था और उसकी व्यवहारकुशलता के चलते, उसके मित्रों में सभी समुदायों के लोग थे। उसके हत्यारों ने उसकी मौत को आत्महत्या का रूप देने का प्रयास किया। यद्यपि जिस तरह से उसे यातनाएं दी गई थीं, उसके शरीर पर कई जगहों पर तेज हथियार के निशान थे और उसका सिर काटा गया था, उससे यह साफ़ था कि उसने आत्महत्या नहीं की थी।
मामले के जांच के दौरान, विष्णुप्रिया नामक एक दलित महिला जांच अधिकारी ने आत्महत्या कर ली। उसकी मां का कहना था कि विष्णुप्रिया पर यह दवाब था कि इस प्रकरण में वह तीन निर्दोष व्यक्तियों को गिरफ्तार कर ले। जब दबाव सीमा से बाहर हो गया तो उसने अपनी जान ले ली। इस बीच इस हत्या के लिए ज़िम्मेदार बताया जाने वाला युवराज फरार हो गया। वह गौंदर जाति के एक संगठन, धीरन चिन्नामलाई पेर्वाई, से जुड़ा हुआ था। बाद में उसने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। परन्तु वह अपने खिलाफ लगे आरोपों से वह ज़रा भी चिंतित नहीं था।
मामला अदालत में गया। अभियोजन पक्ष के द्वारा पेश किए गए गवाह अपनी गवाही से मुकरने लगे।। इसके बाद, मद्रास उच्च न्यायालय में एक अपील दायर कर यह मांग की गई कि सरकार मामले में नया सरकारी वकील नियुक्त किया जाए। इसके पहले, इसी आशय का अनुरोध जिला कलेक्टर से किया गया था, परन्तु इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। हाईकोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और बी.बी. मोहन, जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 पर अपनी गहरी पकड़ के लिए जाने जाते हैं, को सरकारी वकील नियुक्त किया गया।
इसके बाद सुनवाई सही दिशा में आगे बढ़ी और मदुरै की अदालत ने 1989 के अधिनियम के तहत युवराज सहित दस लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। लगभग एक दशक पहले सुनाए गए पथप्रवर्तक वच्छाती प्रकरण में फैसले के बाद यह फैसला भी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत फैसलों की एक मिसाल बनेगा। अपने न्यायादेश में न्यायाधीश टी. संपतकुमार ने लिखा–
‘‘मृतक गोकुलराज एक युवा इंजीनियरिंग स्नातक था और अपनी विधवा मां चित्रा का सबसे छोटा पुत्र था। निश्चित तौर पर उसकी आंखों में एक सुनहरे भविष्य के सपने तैर रहे होंगे। चित्रा को भी यह उम्मीद रही होगी कि वह अपने पुत्र की देखभाल और संरक्षण में सुखी जीवन बिताएंगी। परंतु आरोपियों ने उसके सपनों को कुचल दिया। उन्हें केवल इस बात का अहंकार था कि वे एक प्रभुत्वशाली जाति से हैं और केवल इस शक के आधार पर कि एक दमित जाति के युवा (जो इंजीनियर था) के उनकी जाति की एक युवती से संबंध थे, उन्होंने अत्यंत क्रूरतापूर्वक उसकी हत्या कर दी।’’
न्यायाधीश ने आगे लिखा– ‘‘प्रेम को जाति, धर्म, नस्ल आदि से कोई मतलब नहीं होता। ये न तो प्रेम को रोक सकते हैं और ना ही उसे समाप्त कर सकते हैं…जाति के कारण गोकुलराज की हत्या जातिप्रथा के खून भरे इतिहास का एक और अध्याय है।” उन्होंने डॉ. आंबेडकर को उद्धत करते हुए लिखा– “अगर जाति को तोड़ना है, तो अंतरजातीय विवाह इसका एकमात्र उपाय हैं।” न्यायाधीश ने डॉ. आंबेडकर का एक अन्य उद्धरण भी अपने निर्णय में शामिल किया जो lसर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2020 में दिए गए एक निर्णय का अंश था।
‘जाति का विनाश’ में डॉ. आंबेडकर लिखते हैं– “मुझे विश्वास है कि असली इलाज अंतरजातीय विवाह ही है। खून के रिश्ते ही नातेदारी का भाव सृजित कर सकते हैं और जब तक नातेदारी का यह भाव, परिवार और रिश्तेदारी का भाव, नहीं होगा, तब तक जाति द्वारा निर्मित अजनबीपन का भाव समाप्त नहीं होगा। अगर समाज पहले से ही अन्य धागों से बंधा हुआ है, तो विवाह जीवन की केवल एक मामूली घटना होती है। परन्तु जहां समाज बंटा हुआ हो, वहां लोगों को एक करने के सूत्र के रूप में विवाह की सख्त आवश्यकता होती है। जाति को तोड़ने का असली उपाय अंतरजातीय विवाह ही है और कुछ भी जाति को समाप्त नहीं कर सकता।”
(अनुवाद: अमरीश हरदेनिया, संपादन : नवल)
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