h n

छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव प्रारंभ, सीएम ने बताया आदिवासी साहित्य व संस्कृति का महत्व

आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में तीन दिवसीय राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव प्रारंभ हो गया है। यह आयोजन रायपुर के पंडित दीनदयाल ऑडिटोरियम में 19 अप्रैल से लेकर 21 अप्रैल तक चलेगा। इस मौके पर देश भर के आदिवासी साहित्य से संबद्ध साहित्यकारों को आमंत्रित किया गया है। इस आयोजन में फारवर्ड प्रेस की तरफ से भी एक स्टॉल लगाया गया है, जहां किताबें बिक्री के लिए उपलब्ध हैं

“छत्तीसगढ़ को अलग राज्य का दर्जा तो मिल गया, लेकिन इसके साथ ही इसकी पहचान एक नक्सल प्रभावित राज्य के रूप में बन गयी। तब लोग छत्तीसगढ़ आने से भी डरते थे। लोगों को लगता था कि ट्रेन से उतरने या फिर एयरपोर्ट से बाहर निकलने पर नक्सली उन्हें पकड़ लेंगे। लेकिन बीते तीन वर्षों में राज्य सरकार ने इसकी पूरी कोशिशें की है कि राज्य को इस छवि से मुक्त किया जाय। इस क्रम में कई तरह के आयोजनों की शुरूआत की गयी और लोग अब देश भर के अलावा विदेशों से भी सरगूजा और बस्तर के इलाके में आने लगे हैं।” ये बातें छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 19 अप्रैल, 2022 को रायपुर में आयोजित राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव-2022 का उद्घाटन करते हुए कही।

कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह के दौरान छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व पद्मश्री हलधर नाग

बताते चलें कि आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में तीन दिवसीय राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव प्रारंभ हो गया है। यह आयोजन रायपुर के पंडित दीनदयाल ऑडिटोरियम में 19 अप्रैल से लेकर 21 अप्रैल तक चलेगा। इस मौके पर देश भर के आदिवासी साहित्य से संबद्ध साहित्यकारों को आमंत्रित किया गया है। इस आयोजन में फारवर्ड प्रेस की तरफ से एक स्टॉल लगाया गया है। 

कार्यक्रम स्थल पर फारवर्ड प्रेस का स्टॉल

इसका उद्घाटन करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासियों के साहित्य व संस्कृति पर प्रकाश डाला तथा आह्वान किया कि आदिवासियों का साहित्य अपने आप में मौलिक साहित्य है और राज्य सरकार इसे बढ़ावा देने के लिए कृतसंकल्पित है। उद्घाटन के मौके पर लोक संस्कृति के संरक्षण एवं विकास से संबंधित पद्मश्री दमयंती बेसरा, आदिवासी कवि पद्मश्री हलधर नाग, पद्मश्री साकी नेती रामचंद्रा (कोया जनजाति) के अलावा आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम व पंडित रविशंकर शुक्ल यूनिवर्सिटी, रायपुर के कुलपति डॉ. केशरीलाल वर्मा आदि ने संबोधित किया।

बताते चलें कि यह आयोजन आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के तत्वावधान में किया जा रहा है। इस मौके पर आदिवासियों के साहित्य पर विमर्श के अलावा राज्य स्तरीय कला एवं चित्रकला तथा आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन भी किया जा रहा है। इसके तहत पहले दिन प्रथम सत्र में जनजातीय साहित्य भाषा विज्ञान एवं अनुवाद, जनजातीय साहित्य में जनजातीय अस्मिता एवं जनजातीय साहित्य में जनजातीय जीवन के चित्रण तथा जनजातीय समाजों की वाचिक परंपरा की प्रासंगिकता एवं जनजातीय साहित्य में अनेकता एवं चुनौतियों विषय पर शोधपत्र प्रस्तुत किये गये। 

(संपादन : नवल/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

साहित्य का आकलन लिखे के आधार पर हो, इसमें गतिरोध कहां है : कर्मेंदु शिशिर
‘लेखक के लिखे से आप उसकी जाति, धर्म या रंग-रूप तक जरूर जा सकते हैं। अगर धूर्ततापूर्ण लेखन होगा तो पकड़ में आ जायेगा।...
नागरिकता मांगतीं पूर्वोत्तर के एक श्रमिक चंद्रमोहन की कविताएं
गांव से पलायन करनेवालों में ऊंची जातियों के लोग भी होते हैं, जो पढ़ने-लिखने और बेहतर आय अर्जन करने लिए पलायन करते हैं। गांवों...
नदलेस की परिचर्चा में आंबेडकरवादी गजलों की पहचान
आंबेडकरवादी गजलों की पहचान व उनके मानक तय करने के लिए एक साल तक चलनेवाले नदलेस के इस विशेष आयोजन का आगाज तेजपाल सिंह...
ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविताओं में मानवीय चेतना के स्वर
ओमप्रकाश वाल्मीकि हिंदू संस्कृति के मुखौटों में छिपे हिंसक, अनैतिक और भेदभाव आधारित क्रूर जाति-व्यवस्था को बेनकाब करते हैं। वे उत्पीड़न और वेदना से...
दलित आलोचना की कसौटी पर प्रेमचंद का साहित्य (संदर्भ : डॉ. धर्मवीर, अंतिम भाग)
प्रेमचंद ने जहां एक ओर ‘कफ़न’ कहानी में चमार जाति के घीसू और माधव को कफनखोर के तौर पर पेश किया, वहीं दूसरी ओर...