पूरे देश में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की धूम के बीच एक और क्रिकेट लीग की शुरुआत हुई है। भले ही इस लीग के बारे में कम ही लोग जानते हैं, परन्तु यह दिल्ली की स्लम बस्तियों में रहने वाले दर्जनों बच्चों के सपनों में रंग भर रही है। यह है गली क्रिकेट लीग (जीसीएल)। यह भविष्य के क्रिकेट खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दे रही है ताकि उनकी ज़िन्दगी का संघर्ष और वंचना उनके सपनों को पूरा करने की राह में बाधक न आ सके।
जीसीएल की शुरुआत कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन (केएससीएफ) ने ऑडियो और वियरेबिल इलेक्ट्रॉनिक उपकरण निर्माता कंपनी बीओएटी के साथ मिलकर की है। बीओएटी के सह-प्रवर्तक और रियलिटी टेलीविज़न सीरीज शार्क टैंक इंडिया से चर्चा में आए अमन गुप्ता ने ओखला के इंद्र कल्याण विहार में गत 27 मार्च, 2022 को लीग का उद्घाटन किया। केएससीएफ अपने बाल मित्र मंडल (बीएमएम) कार्यक्रम के ज़रिए वर्ष 2018 से लगभग 23,000 बच्चों को बाल शोषण के विभिन्न स्वरूपों से बचाने का काम करता रहा है। बीएमएम कार्यक्रम दिल्ली की आठ स्लम बस्तियों में चल रहा है। जीसीएल यानी गली क्रिकेट लीग, बीएमएम, इंद्र कल्याण विहार की पहल है। इंद्र कल्याण विहार में बीएमएम के सौजन्य से एक बास्केटबाल कोर्ट का निर्माण भी किया गया है, जहां बस्ती के लड़के-लड़कियां सब रोज़ खेलते हैं। शायद यह दिल्ली की एकमात्र स्लम बस्ती है, जिसमें बास्केटबाल कोर्ट है।
गली क्रिकेट लीग सबसे पहले ऐसे बच्चों – लड़के और लड़कियों दोनों – की पहचान करेगी, जिनमें क्रिकेटर बनने की इच्छा और संभावना है। इसके बाद अलग-अलग टीमें बनाईं जाएंगीं और उन्हें खेल में प्रवीणता हासिल करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाएगा। पहले महीने मौलिक प्रशिक्षण दिए जाएंगे और अगले महीने उन्हें उन्नत तकनीकें सिखाई जाएंगीं। कोच बच्चों को बल्लेबाज़ी, गेंदबाज़ी, फील्डिंग और विकेटकीपिंग की बारीकियां सिखाएंगे। चयन और प्रक्षिक्षण के बाद, कार्यक्रम का समापन दिसंबर में भव्य गली क्रिकेट लीग टूर्नामेंट से होगा, जिसमें आठों बस्तियों के बच्चों की टीमें ट्राफी के लिए एक-दूसरे से भिड़ेंगीं।
ताशु और निशा दोनों 11 साल की हैं और सातवीं कक्षा में पढ़तीं हैं। उन्हें क्रिकेट खेलना सिखाया जाएगा, यह सोचकर ही वे बहुत रोमांचित हैं। दोनों को क्रिकेट बहुत प्रिय है और उनका सपना है कि वे भारत की महिला क्रिकेट टीम में खेलें। ताशु कहती है– “मैं जब बच्ची थी तब मैं प्लास्टिक की गेंद और लकड़ी के फट्टों से क्रिकेट खेलती थी। कभी-कभी हम कामचलाऊ बैट और टेनिस बॉल से भी खेलते थे। हमने कभी सोचा भी नहीं था कि हमें क्रिकेट किट पहनकर लेदर बॉल से खेलने का मौका मिलेगा।” ताशु के पिता छोटे दुकानदार हैं। वहीं निशा भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी मिताली राज पर फ़िदा है और उनके जैसा बनना चाहती है।
नज़दीक के रामलीला मैदान पर पिच तैयार है और नेट लगा दिए गए हैं। इंद्र कल्याण विहार के बच्चों के लिए क्रिकेट किट के कई बैग आ चुके हैं। कुणाल कंवर पेशेवर क्रिकेट कोच हैं, जिन्होंने इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) से आईसीसी लेवल वन प्रमाणीकरण के लिए नामांकन भरा है। वे बताते हैं कि कार्यक्रम के अंतर्गत ऐसे बच्चों की पहचान की जाएगी, जिनमें क्रिकेट खेलने की प्राकृतिक क्षमता है और उनकी प्रतिभा को निखारा जाएगा। कुणाल नोएडा में ‘टग क्लिक’ नाम से क्रिकेट प्रशिक्षण अकादमी चलाते हैं। वे बताते हैं– “हमारी अकादमी से दो पेशेवर कोच हर सप्ताहांत बाल मित्र मंडलों में जाएंगे। हमारी पूरी कोशिश होगी कि हम बच्चों को अनुशासन के साथ-साथ कड़ी मेहनत करना सिखाएं, क्योंकि अच्छा क्रिकेट खिलाड़ी बनने के लिए ये दोनों बहुत ज़रूरी हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि इनमें से कुछ भविष्य में शानदार खिलाड़ी बनेंगे।”
क्या जीसीएल से कुछ अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी भी निकल सकते हैं? इस सवाल के जवाब में कुणाल ने बताया कि उनकी अकादमी प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को प्रशिक्षण की अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध करवाएगी। वे कहते हैं– “एक बात तो मैं पक्के तौर पर कह सकता हूं। जो मौका इन्हें मिल रहा है, ये बच्चे उसकी कीमत समझते हैं। उनमें हौसला भी है और कुछ कर दिखने का जज़्बा भी। किसी भी खेल में बाज़ी मारने के लिए ये दोनों ज़रूरी हैं। क्रिकेट की कोचिंग उन्हें अपने देश और राज्य का प्रतिनिधित्व का मौका दिला सकती है। इसके अलावा वे कोच और क्रिकेट विश्लेषक इत्यादि भी बन सकते हैं। मेरे लिए इससे ज्यादा संतोष का विषय कुछ नहीं होगा कि ये बच्चे क्रिकेट में प्रवीण खिलाड़ी बन कर अपने समुदायों में लौटें और फिर दूसरे बच्चों को प्रशिक्षण दें। अगर ऐसा चक्र हम शुरू कर सके तो इससे बेहतर कुछ नहीं होगा।” नौवीं क्लास में पढ़ रहे मंटू और प्रहलाद इंद्र कल्याण विहार में रहते हैं। उन्होंने यह तय कर रखा है कि वे क्रिकेट खेलने की बढ़िया से बढ़िया तकनीकें सीख कर रहेंगे। मंटू, जिसके पिता किराने की एक छोटी-सी दुकान चलाते हैं, हर सप्ताह सूरजकुंड में एक क्रिकेट कोचिंग सेंटर में जाता है। उसके मुताबिक, “मैं बल्लेबाज़ और विकेटकीपर बनना चाहता हें। मुझे अपनी बल्लेबाज़ी पर काम करने की ज़रुरत है।” प्रहलाद ने अब तक लेदर बॉल ने नहीं खेला है, परन्तु उसे लगता है कि टेनिस बाल से लेदर बॉल की यात्रा बहुत कठिन नहीं होगी।
मंटू कहते हैं– “मैं क्रिकेट खिलाड़ी बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए कड़ी से कड़ी मेहनत करने को तैयार हूं।” रोज़ कमाने-खाने वाले उसके पिता बड़ी मुश्किल से पांच सदस्यों के अपने परिवार का पेट भर पाते हैं। परन्तु आर्थिक तंगी के बावजूद प्रहलाद अपने लक्ष्य को पाने के लिए दृढप्रतिज्ञ है।
इन बच्चों की आंखों में अनगिनत सपने तैर रहे हैं और उन्हें साकार करने के लिए वे सब कुछ करने को तत्पर हैं।
(अनुवाद: अमरीश हरदेनिया, संपादन : नवल)
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