विमर्श
जातिगत जनगणना का विषय जितना संवेदनशील है, उतना ही राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण भी। वर्ष 2009-10 में जातिगत जनगणना की मांग जोर पकड़ने के बाद राजनीतिक लाभ लेने के लिए व अपना अस्तित्व ओबीसी नेता के रूप में स्थापित करने के लिए लगभग सभी पार्टियों के ओबीसी नेता इस लड़ाई में उतरे। इनमें गोपीनाथ मुंडे, छगन भुजबल, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, करुणानिधि, नाना पटोले जैसे विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के दिग्गज ओबीसी नेतागण शामिल रहे। इस आंदोलन को निष्प्रभावी बनाने के लिए अन्ना हजारे द्वारा लोकपाल आंदोलन चलाया गया, जिसे ओबीसी विरोधी मीडिया ने जोर-शोर से हवा दी। परंतु इसके बावजूद सभी अड़चनों को मात देते हुए जातिगत जनगणना के समर्थक ओबीसी नेतागण मैदान छोड़ने को तैयार नहीं थे।
दिल्ली में छगन भुजबल द्वारा रामलीला मैदान में रैली निकालने की घोषणा करते ही द्विज वर्ग बिल्कुल घबरा गया, क्योंकि इसके पहले छगन भुजबल रामलीला मैदान खचाखच भर कर दिखा चुके थे। उसी समय गोपीनाथ मुंडे का लोकसभा में जातिगत जनगणना की मांग पर जोरदार भाषण चर्चा के केंद्र में था। इस क्रांतिकारी पृष्ठभूमि में तत्कालीन सत्ताधारियों को मजबूरन संसदमें ओबीसी जनगणना कराने की घोषणा करनी पड़ी।
कांग्रेस सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री प्रणव मुखर्जी ने संसद में तब स्पष्ट रूप से कहा था कि 2011 की राष्ट्रीय जनगणना में जातिगत जनगणना होगी। संसद में स्पष्ट आश्वासन मिलने के कारण सभी ओबीसी नेताओं ने अपनी तलवार म्यान में रख ली। संसद में दिया गया यह आश्वासन केवल समय निकालने के लिए एक ब्राह्मणवादी खेल था, यह बाद में मालूम पड़ा। हुआ यह कि जनगणना के प्रपत्र में ओबीसी के लिए कॉलम ही नहीं था। इस पर लोकसभा में फिर हंगामा हुआ। उस समय संसद में ‘स्वतंत्र रूप से आर्थिक व जातीय जनगणना’ कराने के लिए विधेयक मंजूर किया गया। यह विधेयक था– ‘सामाजिक, आर्थिक व जातिगत जनगणना-2011’। ओबीसी आंदोलन की यह बड़ी जीत थी। किंतु कानून बनाते समय उसके प्रावधानों पर बारीकी से ध्यान देने की सतर्कता न हमारे नेताओं में थी और ना ही उनके आगे-पीछे घूमने वाले बुद्धिजीवियों में। जनगणना संबंधी विधेयक मंजूर होते ही सभी ओबीसी नेता बेफिक्र हो गए। परंतु इस विधेयक के अनुसार होनेवाली जनगणना के प्रपत्र में ओबीसी कॉलम ही नहीं था, सिर्फ जाति का कॉलम था।
प्रावधान ऐसा किया गया था कि इस विधेयक के अनुसार होनेवाली जाति आधारित जनगणना के आंकड़े व अन्य जानकारी किसी भी सरकारी-गैरसरकारी संस्था या व्यक्ति को देना केंद्र सरकार को बंधनकारक नहीं होगा। केवल इसी प्रावधान के कारण जाति आधारित जनगणना होकर भी ओबीसी वर्ग की जनसंख्या अधिकृत रूप से कागज पर तो आई, लेकिन ओबीसी जनता के हाथ में नहीं आई। इसी प्रावधान के आधार पर केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र सरकार को ओबीसी डेटा लेने से इंकार कर दिया।
संसद में जातिगत जनगणना का विधेयक मंजूर होते समय ही ओबीसी सांसदों को जागृत रहकर यह प्रावधान हटाने के लिए सरकार को बाध्य करना चाहिए था। यदि ऐसा हुआ होता तो आज संपूर्ण देश की ओबीसी जनता का आंकड़ा हमारे हाथ में होता। किंतु सिर्फ आश्वासन पर जीनेवाले ओबीसी समाज को बारंबार फंसाना आसान हो गया है। जीवन-मरण की लड़ाई लड़कर जीत मिलने के बाद भी पराजित जीवन जीने को मजबूर ओबीसी समाज राजनेताओं की गलतियों के कारण बारंबार फंसते रहता है।
वर्ष 2011 में जिन्होंने ओबीसी जनगणना के लिए लड़ाई लड़ी, उन सभी नेताओं को खत्म कर डालने में ब्राह्मणवादी सत्ताधारियों को कामयाबी भले मिल गई हो, लेकिन नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव जैसे नेताओं की पहल ने पलटवार किया है। इसमें बड़ी भूमिका तेजस्वी यादव की रही, जिन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जातिगत जनगणना कराने का प्रस्ताव विधानसभा में मंजूर कराने को बाध्य किया। इसके कारण जदयू और भाजपा में फूट पड़ी और अंतत: बिहार की सत्ता से भाजपा बेदखल हुई अैर राजद को सत्ता में हिस्सेदारी मिली।
उल्लेखनीय है कि ओबीसी आरक्षण का मुद्दा हो या ओबीसी की जनगणना का, मूलतः ओबीसी इस देश के सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन की धुरी हैं। इसे बिहार में हुए सत्ता परिवर्तन ने एक बार फिर सिद्ध किया है। याद रखा जाना चाहिए कि मंडल आयोग के सवाल पर दो केन्द्र सरकारों व अनेक राज्य सरकारों को गिराने में ब्राह्मणी सत्ताधारियों को सफलता मिल चुकी है। किंतु ओबीसी के सवाल पर भाजपा की भी सरकार गिराई जा सकती है, यह बिहार ने सिद्ध किया है। अब कालचक्र उल्टा घूमने लगा है और ब्राह्मणी छावनी को पटखनी देने के लिए ओबीसी समाज तैयार हो चुका है।
(संपादन : नवल/अनिल)
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in
फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें
मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया