मुस्लिम समुदाय के सबसे वंचित तबके – पसमांदा – को सम्मान चाहिए, स्नेह नहीं। यह कथन यह समझने के लिए पर्याप्त है कि भाजपा का पसमांदाओं को अपनी ओर आकर्षित करने के सघन प्रयासों को केवल राजनीतिक रणनीति के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
मुंबई में हाल ही में आयोजित ऑल इंडिया मोमिन कांफ्रेंस की बैठक में पूर्व सांसद अली अनवर समेत अनेक अग्रणी पसमांदा नेताओं ने यह साफ़ कर दिया कि पसमांदा मुसलमानों के पिछड़ेपन और हाशियाकरण पर किसी भी सार्थक चर्चा के पहले भाजपा को इस वर्ग के विशिष्ट सरोकारों को स्वीकार करना होगा।
वहीं, मीडिया की रपटों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद में आयोजित भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पसमांदा मुसलमानों के बारे में बात करते हुए अपने कार्यकर्ताओं के कहा कि वे पसमांदा मुस्लिम समुदायों को भाजपा से जोडें ताकि पार्टी का जनाधार और व्यापक और अधिक मज़बूत हो सके।
यहां दो सवाल मौजूं हैं। पहला, यह कि वे क्या कारण हैं, जिनके चलते भाजपा को पसमांदा मुस्लिम समुदायों के प्रति अपना राजपीतिक दृष्टिकोण बदलने पर मजबूर होना पड़ा और दूसरा यह कि पसमांदाओं के ऐसे कौन से विशिष्ट मुद्दे और सरोकार हैं जो भाजपा को राजनीतिक रूप से असहज करते हैं।
ऐसे कम से कम दो मसले हैं, जिन्हें भाजपा नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती। पहला यह कि समाज कल्याण कार्यक्रमों के संबंध में भाजपा की नीति ने भारत को ‘खैराती राज्य’ में बदल दिया है। मोदी सरकार जिस राज्य का प्रतिनिधित्व करती है, वह जनकल्याणकारी सेवाएं उपलब्ध करवाना अपना राजनीतिक कर्तव्य नहीं मानता। वह नागरिकों को ‘लाभार्थी’ बनाता है और उन्हें पहुंचाए गए ‘लाभ’ के बदले उनसे साथ वोटों का सौदा करता है।
पसमांदा मुसलमान, लाभार्थियों की एक विशिष्ट श्रेणी हैं। वे सामाजिक दृष्टि से पिछड़े हैं। सांस्कृतिक दमन के शिकार हैं और आर्थिक रूप से हाशिए पर हैं। भाजपा के लिए, विशेषकर उत्तरी राज्यों में, इन लाभार्थियों को अपने साथ जोड़ना बहुत आसान है। भाजपा ने हाल में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में इस रणनीति का प्रयोग किया था।
तालिका 1: मुस्लिम लाभार्थी (उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2022)
योजना | कुल लाभान्वित परिवार | मुस्लिम लाभान्वित परिवार |
---|---|---|
मुफ्त राशन | 80 | 80 |
सस्ती दरों पर राशन | 60 | 51 |
स्वास्थ्यबीमा | 30 | 22 |
बैंक खाते में राशि | 27 | 19 |
गृहनिर्माण सहायता | 21 | 16 |
विवाह के लिए आर्थिक सहायता | 15 | 13 |
रोज़गार एवं कौशल विकास | 13 | 10 |
स्त्रोत: सीएसडीएस – लोकनीति डाटा इकाई – सभी अंक प्रतिशत में
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की कैबिनेट के एकमात्र मुस्लिम सदस्य दानिश आज़ाद अंसारी भी भाजपा की पसमांदा नीति पर बात करते हुए इस बिंदु पर जोर देते हैं। वे कहते हैं, “वजीफों से संबंधित योजनाओं, आवास योजनाओं, प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम आदि के लाभार्थियों में पसमांदाओं का अनुपात काफी अधिक है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री आदित्यनाथ में उनका विश्वास बढ़ रहा है। आजमगढ़ और रामपुर उपचुनावों में भाजपा की विजय से यही साबित होता है।”
फिर, कुछ विचारधारात्मक मुद्दे भी हैं। हिंदुत्व की राजनीति मुसलमानों को दो तबकों में विभाजित करती है– ‘विदेशी’ मुसलमान (जो उपमहाद्वीप के बाहर से आये और यहां शक्तिशाली इस्लामिक साम्राज्यों की स्थापना की) और ‘धर्मपरिवर्तित’ मुसलमान (देश के हिंदू, जिन्हें जबरदस्ती मुसलमान बनाया गया)। यह अलग बात है कि इस उप-विभाजन को अक्सर कुलीन हिंदुत्ववादी नज़रअंदाज़ करते हैं और सभी मुसलमानों से उनकी देशभक्ति साबित करने को कहते है!
पिछले कुछ वर्षों में हिंदुत्व राजनीति ने इस विचारधारात्मक असंगति से निपटने का प्रयास किया है। सन् 2018 में मोहन भागवत ने हिंदुत्व पर तीन व्याख्यान दिए। उन्होंने कहा, “सभी भारतीयों का डीएनए एक ही है। चाहे उनका धर्म जो भी हो।” इससे साफ़ है कि हिंदुत्व राजनीति, मुसलमानों, विशेषकर अति-पिछड़े मुसलमानों, को अपने एक-राष्ट्र-एक-जन के खाके में फिट करने को तैयार है। हो सकता है कि इसी कारण विवादित और भड़काऊ घरवापसी परियोजना, जिसका उद्देश्य मुसलमाओं को हिंदू धर्म में लाना था, को तिलांजलि दे दी गई है।
क्या भाजपा के लिए पसमांदा समुदायों की चिंताओं और आशंकाओं को दूर करना संभव होगा, विशेषकर इस तथ्य को जानते हुए कि पार्टी को अब भी चुनावों में उनसे अपेक्षित समर्थन नहीं मिल रहा है?
तालिका 2: उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में मुसलमान मतदाताओं का जातिवार रुझान
कांग्रेस | भाजपा | बसपा | सपा | |
---|---|---|---|---|
मुस्लिम ओबीसी/ पसमांदा | 32 | 8 | 13 | 35 |
सामान्य मुस्लिम (अशराफ) | 12 | 13 | 18 | 46 |
कुल | 20 | 9 | 19 | 41 |
स्त्रोत: सीएसडीएस डाटा इकाई – सभी अंक प्रतिशत में
इस सिलसिले में ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ के संस्थापक अली अनवर अंसारी का प्रधानमंत्री को लिखा खुला ख़त अत्यंत प्रासंगिक है। अंसारी, जिन्होंने मुसलमानों में जाति-आधारित शोषण और सामाजिक स्तरीकरण के लिए ‘पसमांदा’ शब्द का पहली बार प्रयोग किया, पसमांदाओं के प्रति भाजपा के दृष्टिकोण की रचनात्मक समालोचना करते हैं। वे तीन बातों पर जोर देते हैं।
उनकी मांग है कि पसमांदा समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का पता लगाने के लिए राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना होनी चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि बिहार में भाजपा समेत सभी दलों को जाति जनगणना के पक्ष में गोलबंद करने में अली अनवर ने अहम भूमिका निभाई थी। इस मांग पर जोर, जाति जनगणना से भाजपा के परहेज़ से मेल नहीं खाता।
तालिका 3: उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में मुसलमान मतदाताओं का जाति-वार रुझान
कांग्रेस | भाजपा+ | बसपा | सपा+ | अन्य | |
---|---|---|---|---|---|
सामान्य मुस्लिम (अशराफ) | 1 | 6 | 7 | 82 | 4 |
मुस्लिम ओबीसी/ पसमांदा | 4 | 7 | 6 | 80 | 3 |
कुल | 3 | 7 | 6 | 79 | 5 |
स्त्रोत: सीएसडीएस – लोकनीति डाटा इकाई – सभी अंक प्रतिशत में
दूसरे, अनवर अनुसूचित जाति (एससी) श्रेणी की ‘सांप्रदायिक प्रकृति’ पर भी प्रश्न उठाते हैं। कानूनन, दलित मुसलमान और दलित ईसाई, एससी आरक्षण के लिए पात्र नहीं हैं। इस मामले में अनवर के दो तर्क हैं। पहला, एससी श्रेणी का पूरी तरह ‘धर्मनिरपेक्षीकरण’ होना चाहिए और इसमें सभी दलित समुदायों को शामिल किया जाना चाहिए। इसके साथ ही, वंचित वर्गों के बीच स्पर्धा न हो, इसलिए एससी के लिए निर्धारित आरक्षण कोटा बढाया जाना चाहिए।
अली अनवर ने सकारात्मक कार्यवाही के वर्तमान नीतिगत ढांचे की अपर्याप्तता की पड़ताल भी की है। अली अनवर इस तथ्य पर जोर देते हैं कि अर्थव्यवस्था के निजीकरण ने पसमांदा शिल्पकार समुदायों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इस परिदृश्य में अंसारी, प्रधानमंत्री से पूछते हैं, “क्या आप निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करेंगे? यदि नहीं तो पसमांदा लोगों को ‘आप की सरकार’ पर क्यों भरोसा करना चाहिए?”
अली अनवर द्वारा मोदी के बयानों की विवेचना से यह स्पष्ट है कि केवल कुछ ‘स्नेह यात्राएं’ निकलने से पसमांदा मुसलमानों के हाशियाकरण के समस्या का निदान नहीं हो सकता। अगर भाजपा सचमुच वंचित मुसलमानों में अपना सामाजिक आधार बनाना चाहती है तो उसे उन संरचनात्मक कारकों पर फोकस करना होगा, जो सामाजिक असमानताओं को बनाये रखते हैं और सांप्रदायिक सोच पैदा करते हैं।
(अनुवाद: अमरीश हरदेनिया, संपादन : नवल/अनिल)
(यह आलेख दिनांक 7 अगस्त, 2022 को को ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित। यहां इसका हिंदी अनुवाद लेखक की सहमति से प्रकाशित)
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