इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आज 31 अगस्त, 2022 को 18 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के उत्तर प्रदेश सरकार की अधिसूचना को रद्द कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायाधीश जे.जे. मुनीर की खंडपीठ ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि इस मामले में प्रदेश सरकार की तरफ से समय समय पर जारी तीनों अधिसूचना अनुच्छेद 341 के अनुपालन में नहीं हैं।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि किसी भी समूह को अनुसूचित जाति की सूची में संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत ही शामिल किया जा सकता है। इसमें राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया है कि वह विभिन्न जातियों या क़बीलों के नाम इस विशेष सूची में शामिल कर सकें। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने इसकी अनदेखी करके अधिसूचनाएं जारी कर दीं।
ग़ौरतलब है कि 2005 में सबसे पहले मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी सरकार ने इस संबध में नोटिफिकेशन जारी किया था। हालांकि बाद में यह नोटिफिकेशन वापस ले लिया गया। इसके बाद 21 और 22 दिसंबर 2016 को अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली तत्कालीन समाजवादी पार्टी सरकार ने एक सरकारी आदेश जारी किया। इसके ज़रिए मझवार, कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमार, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी और मछुआ जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का फैसला किया था।
2016 में तत्कालीन प्रमुख सचिव (समाज कल्याण) मनोज सिंह की ओर से जारी की गई अधिसूचना के ख़िलाफ डॉ. बी. आर. आंबेडकर ग्रंथालय एवं जन समिति, गोरखपुर ने एक जनहित याचिका दाख़िल की। इस मामले में याचिकाकर्ता हरिशरण गौतम का कहना है कि “उत्तर प्रदेश सरकार का यह फैसला राजनीति से प्रेरित है। ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने का अधिकार केवल भारत की संसद को है और राज्यों को इस मामले में हस्तक्षेप का कोई अधिकार प्रदत्त नहीं है।”
जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 24 जनवरी 2017 को इन 18 ओबीसी जातियों को एससी सर्टिफिकेट जारी करने पर रोक लगा दी थी। इस बीच उत्तर प्रदेश में सरकार बदल गई। राज्य में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भजपा सरकार में भी इन्हीं जातियों को एससी सर्टिफिकेट जारी करने का आदेश पारित हुआ। इस फैसले के ख़िलाफ गोरख प्रसाद की तरफ से हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दाखिल की गई। 16 सितंबर, 2019 को इस मामले में भी जस्टिस सुधीर अग्रवाल व जस्टिस राजीव मिश्रा की डिवीजन बेंच ने सुनवाई करते हुए स्टे आर्डर जारी कर दिया था।
उच्च न्यायालय के ताज़ा फैसले के बाद उत्तर प्रदेश में नया राजनीतिक घमासान शुरु होने का आशंका जताई जा रही है। उत्तर प्रदेश सरकार में शामिल संजय निषाद, भाजपा से दोबारा नज़दीकी बना रहे ओमप्रकाश राजभर जैसे नेता भाजपा पर संसद के ज़रिए इस मामले में हस्तक्षेप की मांग करेंगे। इसके अलावा इन जातियों से संबंधित तमाम नेताओं पर भी दबाव होगा कि वह भाजपा से इस मामले में दख़ल दिलाकर आरक्षण की व्यवस्था क़ायम कराएं।
(संपादन : नवल/अनिल)
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