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लोक शिकायतों का लेखा-जोखा और सरकारी तंत्र के मनचाहे दावे

सूचना के अधिकार कानून-2005 के तहत जो जानकारियां मिली हैं, वह न केवल इस विभाग के विज्ञापनी दावों को खारिज करती हैं, बल्कि सरकारी मशीनरी में इस तरह की विज्ञापनी संस्कृति की महामारी फैलने के हालात का बयां करती हैं। बता रहे हैं अनिल चमड़िया

इस दौर में आम जन सरकारों के समक्ष जो शिकायतें करते हैं, उनमें से ज्यादातर शिकायतों को लेकर लोगों को निराशा हाथ लगती है। दो अध्ययनों से यह नतीजा निकलता है कि पचास प्रतिशत से ज्यादा शिकायतकर्ता अपनी शिकायतों को लेकर सरकारी रवैये को खराब मानते हैं। केवल साढ़े पांच प्रतिशत लोग ही संतुष्ट होते हैं। साढ़े चार प्रतिशत लोग थोड़े संतुष्ट होते हैं। लेकिन चूंकि सरकारी मशीनरी वास्तव में विज्ञापन एजेंसियों में तब्दील हो गई हैं और उनमें एक हुनर विकसित हो गया है कि वे मनचाहे दावे पेश कर सकती हैं। क्योंकि विज्ञापनों में यह सुविधा होती ही है।

दरअसल, उपलब्धियों को बताने और उनके प्रसार के लिए अब सरकारी तंत्र को डिजिटल बनाया जा रहा है। इनमें वह तंत्र भी शामिल है, जिसके जिम्मे लोक शिकायतों का निवारण है। मसलन केंद्रीय प्रशासनिक सुधार एवं लोक शिकायत निवारण मंत्रालय द्वारा वेब आधारित सुविधा की शुरूआत की कई है। इस संबंध में मंत्रालय के अधिकारिक वेबसाइट पर सूचना दी गई है कि “लोक शिकायत प्रभाग सामान्‍यत: लोक शिकायतों और स्‍टाफ की शिकायतों तथा विशेषकर केंद्र सरकार में शिकायतों के निवारण संबंधी मुद्दों के लिए नीतिगत दिशा-निर्देश जारी करने और समन्‍वयन करने तथा मानीटरिंग के लिए उत्‍तरदायी है। वेब आधारित केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण तथा मानीटरिंग प्रणाली (सीपीजीआरएएमएस) विकसित की गई है और भारत सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों में कार्यान्वित की गई है। राज्‍य सरकारों के लिए स्‍थानीय भाषा इंटरफेस के साथ एक कस्‍टमाइज्‍ड सॉफ्टवेयर भी विकसित किया गया है। इस साफ्टवेयर को ‘सीपीजीआरएएमएस – राज्‍य’ कहा जाता है और इसे 9 राज्‍यों/संघ राज्‍य क्षेत्रों नामत: हरियाणा, ओडिशा, राजस्‍थान, पुडुचेरी, मेघालय, मिजोरम, उत्‍तराखंड, झारखंड और पंजाब में लागू किया गया है।”

नार्थ ब्लॉक, नई दिल्ली

ध्यातव्य है कि लोक शिकायत प्रभाग नागरिक चार्टर और सूचना एवं सुविधा केंद्रों का भी समन्‍वय करता है। लोक सेवा प्रदायगी को उन्‍नत बनाने तथा सरकारों को नागरिक केंद्रिक बनाने के उद्देश्‍य से ‘सेवोत्‍तम’ नामक एक सुधार मूल्‍यांकन ढांचा विकसित किया गया है। बेहतर सेवा प्रदायगी के लिए सेवोत्‍तम ढांचा आरंभ करने के लिए मंत्रालयों/विभागों और राज्‍य सरकारों को भी सहायता प्रदान की जाती है।

यह प्रभाग मंत्रिमंडल सचिवालय की अध्‍यक्षता में शिकायत संबंधी स्‍थायी समिति के संयुक्‍त सचिव और उससे ऊपर के स्‍तर के अधिकारियों को सचिवालय सहायता भी प्रदान करता है।

इस प्रकार से देखें तो यह बात साफ होती है कि सरकार लोक शिकायतों के निवारण के लिए किस तरह के दावे करती है। प्रभाग का दावा है कि 2015 के बाद से लोगों की शिकायतों की संख्या में 6 गुना की बढोतरी हुई है। लेकिन प्रभाग भी उसी रफ्तार से लोगों की शिकायतों का निपटारा करने में जुटी हुई है। वर्ष 2015 में जहां 75 प्रतिशत शिकायतों का निपटारा विभाग द्वारा किया जाता था, अब वह संख्या बढ़कर 99 प्रतिशत से भी ज्यादा हो गई है। विभाग अपनी उपलब्धियों के दावों के लिए विज्ञापन तैयार कर व करवा सकती है। परंतु विज्ञापनों में निपटारे का दावा तो पेश किया जा सकता है, लेकिन उस निपटारे से लोगों ने क्या सचमुच अपनी शिकायतों को दूर होते महसूस किया है, यह केवल शिकायतकर्ता ही जाहिर कर सकते हैं।

सूचना के अधिकार कानून-2005 के तहत जो जानकारियां मिली हैं ,वह न केवल इस विभाग के विज्ञापनी दावों को खारिज करती हैं, बल्कि सरकारी मशीनरी में इस तरह की विज्ञापनी संस्कृति की महामारी फैलने के हालात का बयां करती हैं।

केस स्टडी -1

1 जनवरी, 2019 से 28 फरवरी, 2021 के बीच दिल्ली के उपराज्यपाल के समक्ष शिकायतें

कुल शिकायतें पंजीकृत की गई34,210
जितने के बारे में जानकारी दी गई है8,013
संतुष्ट होने वालों की संख्या

 
1,918
थोडा संतुष्ट होने वालों की संख्या1,545
बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं होने वालों की संख्या4,550

इन आंकड़ों से एक भ्रम हो सकता है, क्योंकि पूरी तरह से आंकड़े नहीं दिए गए हैं। कुल पंजीकृत शिकायतों की संख्या 34 हजार 201 है, लेकिन जानकारी केवल 8,013 के बारे में दी गई है। फिर भी इससे नतीजा यह निकाला जा सकता है कि अपनी शिकायतों को लेकर बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं होने वाले लोगों की संख्या संतुष्ट होने वालों की संख्या से थोड़ी ज्यादा है। कुल पंजीकृत शिकायतों के अनुपात में 13 प्रतिशत से ज्यादा लोगों के बारे में लगता है कि वे अपनी शिकायतों पर सरकार के रवैये से पूरी तरह असंतुष्ट हैं। लेकिन आंकड़ों की यह बाजीगरी है। दरअसल जितने मामलों की जानकारियां दी गई हैं, उनमें 56 प्रतिशत से ज्यादा शिकायतकर्ताओं ने सरकारी रवैये को खराब बताया है।

केस स्टडी-2

केंद्रीय प्रशासनिक सुधार एवं लोक शिकायत निवारण मंत्रालय द्वारा लोगों को ऑनलाइन शिकायतें दर्ज करने के लिए एक सुविधा मुहैया कराई गई है। इस संबंध में इनसे यह जानकारी मांगी गई थी कि 1 जनवरी 2019 से फरवरी 2021 तक कितनी शिकायतें दर्ज की गई। इसके जवाब में बताया गया है कि 61 लाख 39 हजार 618 शिकायतें दर्ज की गईं। लेकिन इनमें से केवल 6 लाख 20 हजार 78 शिकायतों के बारे में जानकारी ही दी गई। इस तरह केवल दस प्रतिशत के बारे में जानकारी दी गई। इनमें 4 लाख 27 हजार 59 शिकायतकर्ताओं ने सरकारी रवैये को खराब बताया। यह आंकड़ा 68 प्रतिशत से ज्यादा होता है। वहीं पांच प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने सरकारी व्यवहार को औसत बताया। शिकायतों को लेकर सरकार की मुस्तैदी को काबिले-तारीफ बताने वालों की संख्या 17 प्रतिशत है।

प्रशासनिक सुधार एवं लोक शिकायत निवारण मंत्रालय के समक्ष शिकायतें

कुल61,39,818
जानकारी उपलब्ध6,20,078 (लगभग 10 प्रतिशत)

 
काबिले तारीफ1,06,244 (लगभग 17 प्रतिशत)
बहुत अच्छा

अच्छा

 
22,194

29,342
औसत35,239

 
खराब4,27,059 (68 प्रतिशत से ज्यादा)

इनमें 35,239 (5.6 प्रतिशत) शिकायतकर्ताओं ने सरकारी रवैये को औसत बताया है। लेकिन जितनी शिकायतों के बारे में जानकारी दी गई है, उनमें से 68 प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने सरकारी रवैये को खराब बताया है। यदि दोनों के आंकड़ों को जोड़ा जाए तो यह 73 प्रतिशत से ज्यादा हो जाता है। लेकिन सरकारी मशीनरी की सराहना करनेवाले या अच्छा बताने वालों की कुल जोड़ संख्या 25 प्रतिशत तक ही पहुंचती है।

सरकारी मशीनरी अपनी उपलब्धियों की किताबें छपवा कर, मीडिया कंपनियों में विज्ञापनों की भरमार करते और तरह-तरह के कार्यक्रमों में पैसा खर्च करके अपने दावों को सच मनवा लेने का अभियान चला सकती हैं, लेकिन इससे हकीकत का चेहरा साफ और सुंदर नहीं दिख सकता है। बल्कि इससे होता यह है कि सरकारी मशीनरी का एक विद्रुप चेहरा लोगों के जहन में जगह बना लेता है।

(संपादन : नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

अनिल चमड़िया

वरिष्‍ठ हिंदी पत्रकार अनिल चमडिया मीडिया के क्षेत्र में शोधरत हैं। संप्रति वे 'मास मीडिया' और 'जन मीडिया' नामक अंग्रेजी और हिंदी पत्रिकाओं के संपादक हैं

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