आदिवासी बहुल राज्य झारखंड, बंगाल और उड़ीसा में रहनेवाले कुर्मी जाति के लोग इन दिनों आंदोलनरत हैं। सबसे अधिक चर्चा झारखंड में चल रहे आंदोलन की हो रही है। आंदोलनकारियों की मांग है कि उन्हें अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल किया जाय।
वर्तमान में इन तीनों राज्यों में यह जाति पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल है और लंबे समय से इनकी यह मांग लंबित है। वहीं दूसरी ओर आदिवासी समुदायों के लोगों का कहना है कि कुर्मी जाति के लोगों की यह मांग अनुचित है, क्योंकि उनकी परंपराएं और रहन-सहन, धर्म संबंधी मान्यताएं आदिवासियों के समान नहीं हैं।
कुर्मी जाति के लोगों ने तीनों राज्यों में आंदोलन के लिए एक संयुक्त संगठन का निर्माण किया है। इस संगठन का नाम है– आदिवासी कुर्मी संगठन। इसके एक सदस्य शैलेंद्र महतो के अनुसार कुर्मी जाति 1950 से पहले एसटी की श्रेणी में शामिल थे। बाद में इस जाति को अलग कर ओबीसी में शामिल कर दिया गया।
कुर्मी जाति के लोगों का यह आंदोलन गत 14 सितंबर, 2022 के बाद तेज हुआ। इस दिन केंद्रीय मंत्रिपरिषद ने हिमालच प्रदेश की हट्टी, तमिलनाडु की नारिकोरवन व कुरीविक्करन, छत्तीसगढ़ की बिझिंया, उत्तर प्रदेश की गोंड और कर्नाटक की बेट्टा-करुबा जाति को एसटी में शामिल करने संबंधी फैसले को सहमति दी।
ध्यातव्य है कि वर्ष 2005 में झारखंड सरकार और वर्ष 2007 में पश्चिम बंगाल सरकार ने इस आश्य का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था कि कुर्मी जाति को एसटी में शामिल किया जाय।
झारखंड में इस आंदोलन के तेज होने की एक वजह राज्य की हेमंत सोरेन सरकार द्वारा इस साल लिए गए कुछ फैसले हैं। मसलन, साल की शुरूआत में सरकारी नौकरियों के लिए होने वाली परीक्षाओं में क्षेत्रीय भाषा के रूप में भोजपुरी, मगही, मैथिल को शामिल किया गया। इसे लेकर आदिवासी समाज के लोगों ने विरोध किया।
यह मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि हेमंत सरकार ने स्थानीय निवासी की परिभाषा में व्यापक बदलाव लाने के लिए एक बड़ा निर्णय लिया। इसके मुताबिक झारखंड में वही स्थानीय निवासी माने जाएंगे, जिनके पास वर्ष 1932 या फिर इससे पहले के जमीन संबंधी दस्तावेज होंगे।
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इस फैसले का जहां एक ओर आदिवासी समज के लोगों ने स्वागत किया तो दूसरी ओर गैर-आदिवासी समुदाय के लोगों ने विरोध किया। उनके विरोध की वजह यह भी है कि बड़ी संख्या में गैर-आदिवासी पड़ोसी राज्यों से तब आए जब संयुक्त बिहार के इस हिस्से में औद्योगिक अधिसंरचनाओं का विकास हुआ व खनन उद्योग को गति मिली। हालांकि राज्य के कुछ क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय के भी कई लोगों ने हेमंत सरकार के इस फैसले का विरोध किया है। उनका कहना है कि ऐसे आदिवासियाें की तादाद कम है, जिनके पास 1932 या फिर इसके पहले भूमि दस्तावेज होंगे।
अब झारखंड में कुर्मी जाति के लोगों द्वारा किये जा रहे आंदोलन ने बहस को जन्म दे दिया है। दरअसल, झारखंड के कुछ क्षेत्रों में कुर्मी जाति को कुड़मी भी कहा जाता है। हालांकि पड़ोसी राज्य बिहार, जिसका झारखंड 2000 तक हिस्सा रहा, वहां कुर्मी जाति के लोगों की बड़ी तादाद है। बिहार में कुर्मी जाति राजनीतिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से सुदृढ़ जाति मानी जाती है।
कुर्मी जाति के लोगों ने पांच दिनों तक व्यापक आंदोलन किया। इस दौरान सड़क मार्गों व रेल यातायात को बाधित किया गया।
इस क्रम में आदिवासी समुदाय के लोगों ने विरोधस्वरूप गत 27 सितंबर, 2022 को रांची के मोहराबादी मैदान में एक दिवसीय उपवास एवं धरना कार्यक्रम आयोजित किया। इस प्रदर्शन में भाजपा के पूर्व सांसद सालखन मुर्मू, रघुबरदास सरकार में मंत्री रहीं गीता उरांव आदि शामिल रहे।
इस मौके पर वक्ताओं ने कहा कि कुर्मी समुदाय हिंदू समाज का हिस्सा है और ये किसी भी रूप से आदिवासी से सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, आध्यात्मिक, बौद्धिक एवं वैचारिक तौर पर मेल नहीं खाता है। इनका रहन-सहन, रीति रिवाज, धर्म-संस्कृति, परंपरा और सभ्यता आदिवासियों से बिल्कुल भिन्न है। इसलिए एसटी में शामिल किये जाने की इनकी मांग असंवैधानिक है।
बहरहाल, कुर्मी जाति के लोगों के आंदोलन ने झारखंड में पहले से ही गर्म राजनीति को और गर्म कर दिया है। हालांकि यह कितना प्रभावकारी होगा, अभी इनकी आबादी बहुत कम होने के कारण कहना जटिल है।
(संपादन : नवल/अनिल)
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