मुख्यमंत्री भूपेश बघेल नीत छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी सरकार 51 पुरातात्विक स्थलों को चिन्हित कर राम वन गमन पथ का निर्माण कर रही है। इस परियोजना के तहत राज्य के उत्तर में कोरिया और दक्षिण में सुकमा के मध्य एक हज़ार चार सौ मील लंबी राम वन गमन पथ पर्यटन सर्किट की पहचान की गयी है। इसके लिए एक अरब सैंतीस करोड़ पैंतालीस लाख रुपए की लागत का बज़ट पारित किया है। एक सरकारी आदेश पर प्रदेश के सोलह जिलों में चिन्हित आदिवासियों के पुरातात्विक तथा आस्था स्थलों पर रातों-रात राम वन गमन का बोर्ड लगा दिया गया है। राज्य के उत्तर में सीतामढ़ी से लेकर दक्षिण में रामाराम तक आदिवासी पेनगुड़ियां (जहां मान्यता के अनुसार आदिवासियों के आराध्य प्रकृति-चिन्हों के रूप में परंपरागत रूप से निवास करते हैं) को सरकार द्वारा जीर्णोद्धार के नाम पर भारी तादाद में देवगुड़ी में बदला जाना इस अभियान में शामिल है।
बताते चलें कि पूर्ववर्ती भाजपा की रमन सिंह सरकार के कार्यकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और बजरंग दल ने पौराणिक रामराज्य के भगवान राम को, पांच हज़ार दलित बस्तियों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा था। अब उनके इस काम को भूपेश बघेल की सरकार पूरा कर रही है।
यह तथ्यपूर्ण है कि राम वन गमन पथ परियोजना आरएसएस के विशाल हिंदू राष्ट्र अभियान का हिस्सा है। वर्ष 2015 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने रामायण सर्किट विकसित करने का ऐलान किया था। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के मुताबिक भारतमाला परियोजना के तहत 2537 मील की विस्तृत परियोजना तैयार की गयी है। इसके तहत उत्तर प्रदेश में 130 मील लंबे राम वन गमन मार्ग अयोध्या से फैजाबाद के रास्ते चित्रकूट तक होगा। मध्य प्रदेश में लगभग 75 मील की दूरी तक राम वन गमन मार्ग का विस्तार तथा राज्य में शारदा शक्तिपीठ प्रस्तावित है।
इसके अलावा छत्तीसगढ़ में 75 विभिन्न पर्यटन केंद्रों के निर्माण के साथ चंद्रखुरी में कौशल्या मंदिर और सुकमा के रामाराम मंदिर का नवीनीकरण भी शामिल है। इन सरकारी परियोजनाओं के जरिए देश की जनता को ‘त्रेता युग’ का एहसास कराया जाएगा।
दरअसल, मध्य भारत के आदिवासी बहुल इलाकों में हिंदुओं के भगवान राम को स्थापित करने के निहितार्थ स्पष्ट हैं। जब पूरा सरकारी अमला राम वन गमन पथ के शिलान्यास कार्यक्रमों और यात्राओं में मशगूल था, उसी समय छत्तीसगढ़ का आदिवासी और दलित इलाका सांप्रदायिकता और जातीय हिंसा के लपटों में जल रहा था। सांप्रदायिक ताकतें महासमुंद में दलितों को सार्वजनिक तालाबों के उपयोग की मनाही और औकात में रहने के फरमान दीवारों पर लिख रही थीं। धरमपुरा में दलितों के श्रद्धा व आस्था स्थल जैतखाम को चुन-चुन कर आग के हवाले किया जा रहा था। वहीं कबीरधाम में ध्वज़ फहराने का विवाद तथा लुंद्रा (सरगुजा) में धार्मिक अल्पसंख्यकों को विशेष लक्ष्य करते हुए उनके सामाजार्थिक बहिष्कार के सामूहिक शपथ की घटनाओं के जरिए धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ दहशतगर्दी का मकसद साफ़ दिखाई देता है। दूसरी ओर राज्य का प्रशासनिक तंत्र और उसका रवैया दलितों के खिलाफ घटित होने वाली जातीय हिंसा की घटनाओं और अंतर्धार्मिक तथा अंतर्जातीय विवाह के मामलों में उग्र प्रतिक्रिया करने कट्टरपंथियों के पक्ष में खड़ा नजर आता है।
पूरे प्रदेश में पौनी पसारी, चर्म शिल्प और नाई पेटी योजना की आड़ में वर्णाश्रम आधारित परंपरागत व जातिगत व्यवसाय के अनुरूप सरकारी योजनाएं बनाई जा रही हैं। राज्य सरकार गोधन न्याय योजना का क्रियान्वयन कर रही है। इस योजना के क्रियान्वयन की आड़ में हाशिये पर जीने को मजबूर भूमिहीन श्रमिकों को जमीन पर स्वामित्व से से वंचित किया जा रहा है। सदियों से भूमिहीन इन समुदायों को गांव में गोबर इकट्ठा करने के लिए प्रोत्साहित करने की तुलना में भूमिसुधार योजनाओं के तहत जमीन का आवंटन अधिक जरूरी है।
उत्तर छत्तीसगढ़ के रायगढ़ और जशपुर जिलों मे आदिवासी भूमियों को गैर-आदिवासियों द्वारा छल-कपट और धोखे से हडप लिए जाने से संरक्षण करने वाली भू-राजस्व संहिता के क्रियान्वयन में भेदभाव साफ़ दिखाई देता है। रायगढ़ में जहां खनन कम्पनियों और ताप बिजली परियोजनाओं के मामलों में आदिवासी भूमि अधिकारों के संरक्षण व जमीनों को वापस करने की प्रशासनिक जबाबदेही नाकारा साबित हो रही है। वहीं जशपुर में इसी कानून का हवाला देकर गिरिजाघरों के विरुद्ध प्रशासनिक कार्यवाहियों की फेहरिस्त लंबी है।
राम वन गमन पथ परियोजना के निर्माण में विशेष तौर पर सामाजिक-राजनीतिक सत्ता में उच्चवर्णीय बर्चस्व की स्थापना और जातिगत मर्यादाओं को थोपने की साजिश अंतर्निहित है। इसके प्रसार के लिए आरएसएस पहले से ही रामायण का गोंडी व अन्य आदिवासी भाषाओं में अनुवाद करवाकर वितरण कर रहा है। वनवासी कल्याण आश्रम के जरिए उसकी पूरी कोशिश है कि जनगणना में आदिवासियों को हिंदू के रूप में दर्ज किया जाय।
बहरहाल, एक सोची समझी रणनीति के तहत हिंदुओं और आदिवासियों के बीच वैमनस्यता का वातावरण बनाया जा रहा है। इसके लिए ईसाई आदिवासियों को डिलिस्टिंग अथवा गैर-अधिसूचित करने का अभियान जोरों पर है। इस माहौल में भूपेश बघेल भी संघ का ही अनुसरण करते नजर आ रहे हैं।
(संपादन : नवल/अनिल)
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