झारखंड में लोहरा जनजाति के लोग अब भी भेदभाव के शिकार हो रहे हैं। राजधानी रांची जिले के सिल्ली प्रखंड अंतर्गत बड़ा चांगडू पंचायत के अड़ाल नवाडीह गांव में इस जनजाति के सदस्यों को कुंए से पानी पीने से रोका जा रहा है। जो लोग उन्हें कुंए से पानी नहीं लेने दे रहे हैं, वे कुरमी समुदाय के लोग हैं और फिलहाल झारखंड में ओबीसी में शुमार हैं।
विदित है कि पिछले कई सालों से झारखंड और बंगाल में कुरमी समुदाय द्वारा खुद को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में डालने की मांग की जा रही है।
खबर के मुताबिक इस गांव में 3 लोहरा जनजाति परिवार के करीब 19 सदस्य रहते हैं।
बताते चलें कि सिल्ली विधानसभा क्षेत्र है और इस क्षेत्र के वर्तमान विधायक सुदेश कुमार महतो हैं, जो भाजपा की सरकार में उप मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं।
यह बात तो समझ में आती है कि गर्मी के मौसम आते ही लोग पानी के लिए परेशान हो जाते हैं। गर्मी में पानी की किल्लत हो सकती है, लेकिन आज पानी लेने को लेकर छुआछूत जैसा मामला जब आ जाए, तब हमें यह सोचने के लिए बाध्य हो जाना पड़ता है कि आज भी हम इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में कहां खड़े हैं।
आज की ऐसी परिस्थितियों पर खोरठा के साहित्यकार और व्याख्याता दिनेश कुमार दिनमणी कहते हैं कि “भारतीय समाज में सोपानीकृत जाति-व्यवस्था और छुआछूत आज भी एक कड़वा सच है, जो आज के कथित उच्च सभ्य समाज का बदनूमा दाग़ भी है। चारवर्णी व्यवस्था में भी अंतिम पायदान के बीच भी ऊंच-नीच का विभाजन है, श्रेष्ठता-निकृष्टता का भाव है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता।
सामाजिक कार्यकर्ता और आदिवासी नेता लक्ष्मीनारायण मुंडा का कहना है कि “‘सिल्ली के नावाडीह गांव : यहां सभी कुएं ऊंची जातिवालों के, दलित नही भर सकते हैं पानी’ गत 6 जून, 2023 को दैनिक हिंदी ‘प्रभात खबर’ में समाचार प्रकाशित होने के बाद मामला गर्म है। लेकिन रांची जिले के पांच परगना क्षेत्र के अंतर्गत सिल्ली का यह गांव ही नहीं, ऐसे बहुत सारे गांव मिलेंगे। कुड़मी/कुर्मी/महतो जाति ही नहीं और भी जातियां आदिवासियों के साथ ऐसे ही पेश आती हैं। इस इलाके में तो खासकर हमारे मानकी-मुंडा परिवार और मुंडा जाति के लोग भी ऐसे ही करते हैं। इसलिए इस सच्चाई को कबूल करना होगा कि यह समस्या सिल्ली और कुड़मी/कुरमी/महतो में ही नहीं, देश और समाज के अंदर है।”
सिल्ली निवासी और भाजयुमो, झारखंड के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमाकांत महतो कहते हैं कि “छुआछूत व जातीय भेदभाव भारतीय संविधान के खिलाफ है, ऐसी वृत्तियों पर सरकार और प्रशासन को सख्त कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए। ऐसे मामले जब प्रकाश में आते हैं तो सरकार को तुरंत इसे संज्ञान में लेकर स्थानीय प्रशासन को निर्देश देना चाहिए कि वह मामले की जांच कर दोषी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करें।”
अड़ाल नवाडीह गांव के इन लोहरा परिवारों के मुहल्ले में न तो सरकारी चापानल है, न कुंआ और न कोई जलमीनार। इनलोगों को पानी पीने के लिए गांव के बाहर तालाब के समीप एक डांढी है, जिससे ये लोग पानी लेते हैं, लेकिन गर्मी आते ही वह भी सूख जाता है। इस डांढी पर बाकी अन्य जाति के लोग पानी लेने नहीं जाते हैं, जबकि यह दांड़ी उन्हीं लोगों की जमीन पर बना है।
इस संबंध में लोहरा परिवार की कमला देवी कहती हैं कि “साल में कुछ माह एक डांढी जो उन्हीं लोगों की जमीन पर बना है, से पानी नसीब हो जाता है। लेकिन गर्मी आते ही हमलोग अपने से ऊंची जाति के लोगों के कुंए पर निर्भर हो जाते हैं। हमलोग खुद से उनके कुएं से पानी नहीं ले सकते, इसलिए घंटों खड़े होकर कुएं के पास किसी के आने का इंतजार करते रहते हैं।”
सीमा देवी बताती है कि “गांव में हमसे बड़ी जाति के लोगों के चार अलग-अलग कुंए हैं। घंटों खड़े रहने के बाद जब कोई कुंए पर आता है, तब जाकर कहीं हमें पानी नसीब हो पाता है, और वह भी हर रोज बुरा-भला सुनने के बाद।” पुइतू देवी कहती हैं कि “हमारी परेशानियों से न तो सरकारी अफसरों को कोई लेना-देना है और न ही मुखिया को। हमलोगों ने कई बार नेताओं और मुखिया को अपनी समस्या बताई है, लेकिन किसी ने स्थायी समाधान नहीं निकाला है। अब तो ऊंची जाति के लोगों से मांग कर पानी पीने की आदत-सी हो गई है।”
वहीं बड़ा चांगडू पंचायत की मुखिया सरिता मुंडा कहती हैं कि जिस इलाके के सबंध में सवाल उठाया जा रहा है, वहां मौजूद सरकारी व्यवस्था की पूरी जानकारी उन्हें नहीं है।
जबकि प्रखंड विकास अधिकारी (बीडीओ) पवन आशीष लकड़ा का कहना है कि यह काफी गंभीर विषय है। वे स्वयं जाकर स्थिति की जांच करेंगे।
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)
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