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मध्य प्रदेश में सीवर के अंदर फिर गई दो जानें

बेलगाम नौकरशाही द्वारा ठेका प्रणाली की आड़ में बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के सेप्टिक टैंक या सीवर में सफाई कर्मचारियों को बेखौफ उतारे जाने का सिलसिला जारी रखा गया है। यह दर्शाता है कि सूबे की बेलगाम नौकरशाही को सर्वोच्च न्यायालय का भी डर नहीं है। बता रहे हैं मनीष भट्ट मनु

गत 15 जून, 2023 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर नगर निगम के वार्ड संख्या 16 स्थित रेशम मिल में सीवर की सफाई कर रहे अमन और विक्रम कसोरिया नामक दो कर्मियों की जान चली गई। दोनों को बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के सीवर में उतारा गया था। दोनों की मौत ने एक बार फिर इस अमानवीय प्रथा पर बहस की जरूरत को उजागर किया है। 

उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल याचिका संख्या 583/2003 – सफाई कर्मचारी आंदोलन व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य – में दिनांक 27 मार्च, 2014 को दिए गए एक महत्वपूर्ण निर्णय में हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध एवं पुनर्वास अधिनियम 2003 के प्रावधानों का अवलंबन लेते हुए आवश्यक सुरक्षा उपकरणों के बिना सेप्टिक टैंक या सीवर लाइन सफाई में किसी कर्मी को नियोजित करने पर रोक लगा दी थी। 

लेकिन, बेलगाम नौकरशाही द्वारा ठेका प्रणाली की आड़ में बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के सेप्टिक टैंक या सीवर में सफाई कर्मचारियों को बेखौफ उतारे जाने का सिलसिला जारी रखा गया है। यह दर्शाता है कि सूबे की बेलगाम नौकरशाही को सर्वोच्च न्यायालय का भी डर नहीं है।

राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2003-04 से लेकर वर्ष 2008-09 की अवधि में ही मध्य प्रदेश राज्य में हाथों से सीवर की सफाई के दौरान कुल 11 सफाई कर्मचारियों की मौत हुुई थी। इनमें से चार मौतें शिवपुरी, दो-दो मौतें ग्वालियर, झुंडपुरा और देवास तथा एक मौत इंदौर में हुुई। आल इंडिया सफाई मजदूर कांग्रेस की मध्य प्रदेश ईकाई की युवा शाखा के अध्यक्ष सुुधीर कौड़े बतलाते हैं कि इस अवधि के बाद भी सिंगरौली और भोपाल सहित विभिन्न स्थानों पर कई और मौतें हो चुकी हैं। वे आरोप लगाते हैं कि हर हादसे के बाद शासन और प्रशासन के स्तर पर महज खानापूर्ति ही की जाती है। 

मृतक विक्रम कसोरिया व अमन

सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं होने को लेकर देवास के युवा अधिवक्ता तथा भीम आर्मी के जिला अध्यक्ष हीरो सोलंकी का कहना है कि शिवराज चौहान की हुकूमत में नौकरशाही बेलगाम हो चली है। साथ ही न्यायिक प्रक्रिया भी इतनी अधिक खर्चीली और समय लेने वाली हो गई है कि अधिकांश लोग तो लड़ने से पहले ही हार मान चुके होते हैं। 

सुुधीर कौड़े आरोप लगाते हैं कि आरएसएस और भाजपा अपनी स्थापना के समय से ही दलित और आदिवासी विरोधी रही हैं। ऐसे में उनसे किसी तरह की अच्छाई की उम्मीद करना बेमानी है। अपने आरोप के समर्थन में वे यह तर्क देते हैं कि आज तक भाजपा के किसी बड़े नेता ने ग्वालियर हादसे पर संवेदना व्यक्त करना उचित नहीं समझा है।

उल्लेखनीय है कि संचालनालय नगरीय प्रशासन एवं विकास, मध्य प्रदेश, भोपाल द्वारा क्रमशः 12 जून, 2015 तथा 16 दिसंबर, 2021 को समस्त नगर निगम, नगर पालिका परिषद तथा नगर परिषद के आयुक्तों एवं मुख्य नगर पालिका अधिकारियों को पत्र भेज कर आवश्यक सुरक्षा उपकरणों के बिना सेप्टिक टैंक या सीवर लाईन सफाई में किसी कर्मी को नियोजित नहीं करने का निर्देश जारी किया गया था। लेकिन आज तक किसी ने भी यह जानने की जहमत नहीं उठाई कि सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों और अधिनियम के प्रावधानों का पालन हो रहा है अथवा नहीं। 

मध्य प्रदेश में सीवर सफाईकर्मियों की मौत : एक नजर में

तारीखस्थानमृतकों की संख्या
15 जून, 2023ग्वालियर2
12 दिसंबर, 2021भोपाल 2
24 सितंबर, 2021सिंगरौली3
1 अप्रैल, 2019इंदौर1
28 सितंबर, 2016शिवपुरी2
8 जून, 2014मुरैना2
22 सितंबर, 2014शिवपुरी 2
27 दिसंबर, 2008इंदौर 2
16 जून, 2004ग्वालियर1
11 अक्टूबर, 2003ग्वालियर1

भोपाल के अधिवक्ता नासिर अली के अनुसार प्रशासनिक मुखिया होने के चलते किसी भी राज्य का मुख्य सचिव ही सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों का अनुपालन करवाने के लिए जिम्मेदार होता है। इसके बाद संबंधित विभाग का प्रमुख सचिव आता है। किसी नगर निगम का आयुक्त अथवा नगर पाालिका परिषद या नगर परिषद का मुख्य नगर पालिका अधिकारी भी उसके इलाके में आवश्यक सुरक्षा उपकरणों के बिना सेप्टिक टैंक या सीवर में हुई मौत का सीधे तौर पर जिम्मेदार है। वह यह कह कर नहीं बच सकता कि मरने वाला ठेका श्रमिक था, क्योंकि ठेका देने वाला भी श्रम कानूनों के तहत प्राथमिक नियोक्ता होता है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिविल याचिका संख्या 583/2003 – सफाई कर्मचारी आंदोलन व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य – में पारित निर्णय में वर्ष 1993 के बाद से ही सेप्टिक टैंक/सीवर लाइन सफाई में मृत कर्मियों के परिजनों को रुपए दस लाख क्षतिपूर्ति का प्रावधान किया गया था, जिसमें आज तक वृद्धि नही की गई है। हादसे के बाद जरूर ही प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर इस आपदा में भी अवसर तलाशते नजर आए। उन्होने क्षतिपूर्ति का प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने निर्णय के आलोक में किए जाने के बाद भी इसका ऐलान करने से गुरेज नहीं किया। 

शिवराज सिंह चौहान की घोषणाओं की ही तरह इस हादसे को लेकर भी एक बार फिर ऐलान किया गया है कि अब से कोई भी सेप्टिक टैंक/सीवर लाईन की सफाई के लिए नहीं उतरेगा। सारा काम सुपर सक्शन मशीनों से किया जाएगा। मगर इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है कि जब पिछले ही साल ग्वालियर नगर निगम ने 19 लाख रुपए मूल्य की जो सीवर पाइप इंस्पेक्शन रोबोटिक कॉलर कैमरा मशीन खरीदी थी, जिसका उपयोग जहरीली गैस वाले सीवर सफाई के लिए किया जाता है। इसमें कैमरा लगा होता है और सब कुछ ठीक होने के बाद ही सफाई कर्मचारी को उतारा जाता है। लेकिन यह सवाल भी बेहद दिलचस्प है कि जब मशीन खरीदी गई थी, उसे आज तक सफाई कर्मियों को उपलब्ध क्यों नहीं करवाया गया?

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

मनीष भट्ट मनु

घुमक्कड़ पत्रकार के रूप में भोपाल निवासी मनीष भट्ट मनु हिंदी दैनिक ‘देशबंधु’ से लंबे समय तक संबद्ध रहे हैं। आदिवासी विषयों पर इनके आलेख व रपटें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होते रहे हैं।

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