राजनीतिक गोलबंदी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा रही है। वर्ष 1977 और वर्ष 1989 में कांग्रेस के खिलाफ राष्ट्रव्यापी गोलबंदी हुई थी और सरकार बदल गयी थी। अब भाजपा के खिलाफ राष्ट्रव्यापी गोलबंदी की शुरुआत हो रही है, जिसकी नींव गत 23 जून, 2023 को बिहार की राजधानी पटना में पड़ी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुआई में देश की 15 पार्टियों के शीर्ष नेताओं का मुख्यमंत्री आवास में महाजुटान हुआ। विभिन्न वैचारिक धाराओं के नेता एक साथ बैठे और सभी ने एक धारा के साथ चलने का संकल्प लिया। स्थानीय आग्रह और पूर्वाग्रहों को छोड़कर न्यूनतम साझा सहमति को तैयार हुए।
बैठक के बाद साझा प्रेस वार्ता में सभी ने एकजुटता प्रदर्शित करते हुए कहा कि जुलाई में शिमला में होने वाली बैठक में एकता के व्यावहारिक पक्षों पर चर्चा की जाएगी। बैठक में जनता दल यूनाईटेड के नीतीश कुमार, राष्ट्रीय जनता दल के लालू यादव एवं तेजस्वी यादव, कांग्रेस के राहुल गांधी एवं मल्लिकार्जुन खड़गे, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के डी. राजा, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सीताराम येचुरी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के माले दीपंकर भट्टाचार्य, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के शरद पवार व सुप्रिय सुले, झारखंड मुक्ति मोर्चा के हेमंत सोरेन, तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, द्रविड़ मुणेत्र कड़गम के एम.के. स्टालिन, शिवसेना के उद्धव ठाकरे, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल एवं भगवंत सिंह मान, नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुला और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की महबूबा मुफ्ती शामिल रहे।

विपक्षी नेताओं की बैठक दोपहर 12 बजे शुरू हुई और 4 बजे तक चली। इस दौरान मंथन को लेकर कयास लगाए जाते रहे। शाम को 4 बजे के बाद साझा प्रेस वार्ता में लगभग सभी पार्टियों के नेता मौजूद थे। एकाध पार्टी के नेता दूसरी व्यस्तताओं के कारण बैठक के बाद प्रस्थान कर गये थे, इस कारण मीडिया से मुखातिब नहीं हुए। प्रेस वार्ता की शुरुआत करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि विपक्षी एकता की राष्ट्रव्यापी गोलबंदी पर सहमति बन गई है। सभी दल मानते हैं कि देश का लोकतंत्र और संविधान खतरे में है। संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए भाजपा को सत्ता से हटाना जरूरी है। इसके लिए सबको एक साथ आना होगा। सभी नेताओं ने कहा कि केंद्र सरकार सभी संवैधानिक संस्थानों पर हमला कर रही है और उनकी मर्यादाओं को ध्वस्त कर रही है। एक विचारधारा विशेष के माध्यम से लोकतंत्र को तानाशाही में तब्दील किया जा रहा है। इतिहास बदलने की बात कही जा रही है। इतिहास बचाने के लिए सभी दलों का एक होना जरूरी है।
पटना में हुई बैठक में सबसे बड़े आकर्षण के केंद्र थे लालू यादव। पटना पहुंचने वाले अधिकतर नेताओं ने लालू यादव से अलग-अलग मुलाकात की। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लालू यादव के परिवार से मिलने के लिए विशेष इंतजाम के साथ पटना आयी थीं। साझा प्रेस वार्ता में भी लालू यादव का ही जलवा रहा। उन्होंने राहुल गांधी को शादी की सलाह देकर माहौल में खुशनुमा बना दिया। लेकिन इसके साथ ही कर्नाटक में कांग्रेस की जीत की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि बजरंगबली ने भाजपा की कमर तोड़ दी है। भाजपा के खिलाफ आगे की लड़ाई में रामायण के मिथकीय पात्र नल-नील को जोड़ने की बात कहकर उन्होंने राष्ट्रव्यापी गोलबंदी में छोटे-बड़े सभी दलों को साथ लेने का संकेत दिया। उन्होंने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि हम पूरी तरफ फिट हो गये हैं, अब भाजपा को फिट कर देना है।
अगर हम आयोजन की पृष्ठभूमि में जाएं तो इस महाजुटान में सबसे बड़ी भूमिका लालू यादव की रही है। पिछले साल अगस्त महीने में भाजपा से नाता तोड़ने के बाद नीतीश कुमार राजद के साथ सत्ता में लौटे हैं। इसी बीच लालू यादव का किडनी प्रत्यारोपण और उनके स्वास्थ्य में तेजी से हुए सुधार ने नीतीश कुमार का आत्मविश्वास बढ़ा दिया है। इसके साथ ही उन्होंने विपक्षी एकता की पहल तेज की। वे जिस भी राज्य में गए, उन्होंने कहा कि हम लालूजी का संदेश लेकर आए हैं। नीतीश कुमार की हर यात्रा में तेजस्वी यादव उनके साथ रहे। नीतीश ने किसी भी दूसरे राज्य की यात्रा अकेले नहीं की। उनकी ही पहल पर लोग बैठक में शामिल होने के लिए पटना आए।
लालू यादव अपने स्टैंड को लेकर बराबर स्पष्ट रहे हैं। मंडल आंदोलन हो, 1996 या 1998 में केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री का चयन हो या 2004 में सोनिया गांधी के पक्ष में तनकर खड़ा होने का मामला हो, लालू यादव कभी दुविधा में नहीं रहे हैं। वे विपक्षी एकता के हिमायती रहे हैं। नेतृत्व की बहस में उलझने के बजाये भाजपा को परास्त करने के लिए हरसंभव एकजुटता के पैरवीकार रहे हैं। उसी का परिणाम है कि विपक्षी एकता पटरी पर आ रही है। लेकिन इसके परिणाम के लिए एक साल का इंतजार तो करना ही होगा।
(संपादन : नवल/अनिल)