संजीत बर्मन छत्तीसगढ़ के युवा दलित सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने लोरमी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है और वे लोगों के बीच जा रहे हैं। इस संबंध में फारवर्ड प्रेस ने उनसे बातचीत की। प्रस्तुत है इस बातचीत का संपादित अंश
आपने चुनाव लड़ने का फैसला किन परिस्थितियों और किन कारणों से किया है?
देखिए, छत्तीसगढ़ में दलिताें, आदिवासियों और ओबीसी के अधिकारों को लेकर मैं सतत संघर्ष करता रहा हूं। इस कारण कई बार मुझे सरकार के दमन का शिकार होना पड़ा और जेल जाना पड़ा। जब मैं जेल में था तब समाज के लोग मुझसे मिलने आते थे और कहते थे कि आप हमारे लिए इतना संघर्ष करते हैं, आपको सदन में जाना चाहिए ताकि हमारी आवाज उठा सकें। इसलिए जब जेल से बाहर आया तब लोरमी विधानसभा क्षेत्र, जो कि अनारक्षित विधानसभा क्षेत्र है और मेरा घर भी इसी विधानसभा क्षेत्र में है, के लोगों ने एक बैठक आयोजित की और मुझे भी उसमें शामिल किया। उसी बैठक में सभी ने सर्वसम्मति से मुझे अपना प्रत्याशी माना।
सामान्य तौर पर देखा जाता है कि दलित और आदिवासी आरक्षित सीटों पर ही चुनाव लड़ते हैं। लेकिन आप अनारक्षित सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इसके पीछे की वजह क्या है?
एक बात तो साफ है कि सिर्फ लोरमी ही नहीं, पूरे छत्तीसगढ़ में भाजपा और कांग्रेस की सरकारों ने दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्ग के लोगों के साथ धोखाधड़ी की है। तो एक मुद्दा यह है। आपने ठीक कहा कि दलित और आदिवासी आरक्षित सीटों पर ही चुनाव लड़ते हैं। लेकिन दुखद यह है कि आरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद वे दलितों और आदिवासियों के खिलाफ होने वाले जुल्म और अत्याचार के बारे में सदन में मुंह भी नहीं खोलते। तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कोई आरक्षित सीट से लड़ रहा है या अनारक्षित सीट से।
लेकिन लोरमी ही क्यों?
देखिए, लोरमी एक उदाहरण है। यहां दलित मतदाताओं की संख्या करीब 70-75 हजार है। और पिछले बीस वर्षों से यहां ऊंची जाति के एक व्यक्ति विधायक के तौर पर चुने जाते रहे हैं, जबकि उनकी अपनी जाति के मतदाताओं की संख्या अधिक से अधिक एक हजार होगी। लोरमी में दलित उत्पीड़न की अनेक घटनाएं हुईं, जिनके खिलाफ मैंने आंदोलन किया और लोगों को एकजुट किया। संभवत: इसी कारण से लोरमी के दलितों, आदिवासियों और ओबीसी के लोगों ने मुझे प्रत्याशी बनाया है।
आजकल चुनाव लड़ना बहुत खर्चीला हो गया है। इस चुनौती का मुकाबला आप कैसे करेंगे?
मैं तो मान्यवर कांशीराम जी की राह पर चल रहा हूं। वह कहते थे कि लोगों के बीच जाओ। मैं लोगों के बीच जा रहा हूं और लोग मुझे तन, मन और धन से सहयोग करने का आश्वासन दे रहे हैं। मैं तो देख रहा हूं कि लोग मुझे नोट भी दे रहे हैं और वोट देने का आश्वासन भी। यहां तक कि लोगों ने अपने खर्चे से मेरे रहने-सहने का प्रबंध किया है। साथ ही, अपने खर्चे से वे मेरे लिए चुनावी कार्यालय आदि की भी व्यवस्था कर रहे हैं। मैं इस मामले में पूरी तरह आश्वस्त हूं।
आप किन-किन मुद्दों को लेकर लोगों के बीच जा रहे हैं?
छत्तीसगढ़ में दलितों और आदिवासियों का उत्पीड़न सबसे बड़ा मुद्दा है। इसलिए मैं तो लोगों से कह रहा हूं कि आप मुझे वोट दें, मैं आपके ऊपर होनेवाले जुल्मों के खिलाफ सदन में आवाज उठाऊंगा और आपको न्याय मिले, इसके लिए संघर्ष करूंगा।
तो क्या महंगाई-बेरोजगारी का मुद्दा नहीं है लोरमी में?
बिल्कुल मुद्दा है। लेकिन सबसे बड़ा मुद्दा है जातिगत उत्पीड़न का। मैं आज ही देवार जाति के लोगों से मिला। क्या आप जानते हैं कि यह कौन-सी जाति है? मैं बताता हूं। यह वह जाति है जो लोगों का मनोरंजन करके अपनी पेट भरती है। ऊंची जातियों के लोग शादी-विवाह और त्योहार आदि के मौके पर इस जाति की महिलाओं को ले जाते हैं और उन्हें अपना मनोरंजन करने के लिए कहते हैं। आज जब मैं इस जाति के लोगों से मिलने गया तो एक महिला ने जानकारी दी कि सरकारी स्कूल में उनके बच्चों को अन्य जातियों व समुदायों के बच्चों से अलग रखा जाता है। यहां तक कि मध्याह्न भोजन के दौरान भी अलग पांत में बिठाते हैं। तो यह है भारत की आजादी के 75 साल के बाद भी जातिगत भेदभाव की स्थिति। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में ओबीसी आरक्षण का सवाल है, खाली सीटों का सवाल है, भूमिहीनता का सवाल है। तो मैं तो इन सभी के लिए लड़ता रहा हूं और मैं लोगों से कह रहा हूं कि आप मुझे वोट दें ताकि इन सवालों को लेकर लड़ाई को आगे बढ़ा सकूं।
अंतिम सवाल, लोरमी में जो सामाजिक और राजनीतिक समीकरण है, उसे आप किस रूप में आंकते हैं?
देखिए, मान्यवर कांशीराम ने कहा था कि यदि सत्ता की कुर्सी पर नहीं बैठ सकते तो उसे झकझोर दो। तो मैं यही कर रहा हूं। हालांकि मुझे उम्मीद है कि लोरमी के दलित, आदिवासी और ओबीसी समाज के लोगों का समर्थन मुझे मिलेगा। मैं इस बात को लेकर निश्चिंत हूं कि लोरमी में अब चाहे वह कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों अब दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को इग्नोर नहीं कर सकेंगे।
(संपादन : राजन/अनिल)
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