h n

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासी दल और संगठन चुनाव के लिए तैयार

आदिवासी न्यूज राउंडअप में इस बार पढ़ें राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासी संगठनों और दलों द्वारा चुनाव लड़ने की उनकी तैयारी, मुद्दे और संभावनाओं के बारे में

अगले महीने, यानि नवंबर में जब मुल्क में मौसम सर्द हो रहा होगा, तब पांच राज्यों– मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में राजनीतिक तापमान गर्म रहेगा। ये पांचों राज्य आदिवासी बहुल हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना के आदिवासी बहुल इलाके संविधान के विशेष कानून पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आते हैं जबकि मिजोरम के आदिवासी बहुल इलाके छठवीं अनुसूची के अंतर्गत आते हैं। यही कारण है कि पांचों राज्यों में आदिवासियों को लुभाने के लिए सभी पार्टियां चाहे वह केंद्र में सत्तासीन भाजपा हो या फिर विपक्षी दलों का ‘इंडिया’ गठबंधन, सभी तरह-तरह की घोषणाएं कर रही हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि अगले वर्ष लोकसभा चुनाव होने हैं और यह लगभग तय माना जा रहा है कि इस बार चुनाव में जिसका पलड़ा भारी होगा, देश का अगला शासक वही होगा। 

बीते 9 अक्टूबर, 2023 को केंद्रीय चुनाव आयोग ने पांचों राज्यों में चुनाव के तारीखों की घोषणा कर दी। इसके मुताबिक, छत्तीसगढ़ में मतदान दो चरणों में होंगे। पहले चरण का मतदान 7 नवंबर और दूसरे चरण का मतदान 17 नवंबर को संपन्न होगा। छत्तीसगढ़ के अलावा शेष चार राज्यों में एक ही चरण में मतदान होंगे। केंद्रीय चुनाव की अधिसूचना के अनुसार मध्य प्रदेश में मतदान 17 नवंबर को, राजस्थान में मतदान 25 नवंबर को, तेलंगाना में मतदान 30 नवंबर को और मिजोरम में मतदान 7 नवंबर को होंगे। पांचों राज्यों में मतों की गिनती आगामी 3 दिसंबर को होगी।

राजस्थान : क्या भारतीय आदिवासी पार्टी बिगाड़ेगी कांग्रेस-भाजपा का अंकगणित?

दक्षिणी राजस्थान, जो कि आदिवासी बहुल इलाका माना जाता है, वहां गत 10 सितंबर, 2023 को एक नए दल भारतीय आदिवासी पार्टी काे लांच किया गया। यह आयोजन डूंगरपुर में किया गया, जिसमें हजारों की संख्या में लोग जुटे। बताते चलें कि इस दल के पीछे आदिवासी परिवार संगठन है, जिसने इसकी बुनियाद रखी। ऐसा माना जा रहा है कि इस नवस्थापित राजनीतिक दल से इस इलाके में भाजपा और कांग्रेस दोनों का अंकगणित बिगड़ सकता है, क्योंकि इसे स्थानीय आदिवासियों का व्यापक सर्मथन मिल रहा है। 

इसके पक्ष में सामाजिक समीकरणों की बात करें तो दक्षिणी राजस्थान के मेवाड़-वागड़ इलाके की 28 विधानसभा क्षेत्रों आदिवासी समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इन 28 विधानसभा क्षेत्रों में 16 क्षेत्र अनुसूचित जनजाति और एक क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। 

उल्लेखनीय है कि आदिवासी परिवार संगठन ने 2018 के विधानसभा चुनाव में भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) को अपना समर्थन दिया था, और उसके दो विधायक निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे थे। 

भारतीय आदिवासी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में एक कांति रोत बताते हैं कि उनकी पार्टी राजस्थान और मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ेगी। हालांकि अभी कितने सीटों पर चुनाव लड़ना है, तय नहीं हुआ है। लेकिन राजस्थान में लगभग 25 सीटों पर तथा मध्य प्रदेश में लगभग 15 सीटों पर चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। 

उन्होंने आगे कहा कि केंद्रीय निवार्चन आयोग से उन्हें चुनाव चिह्न प्राप्त नहीं हुआ है, लिहाजा उनके उम्मीदवार स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश में हम सिर्फ झाबुआ, रतलाम और अलीराजपुर जिले में जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। 

मुद्दों के बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि चुनाव में भील प्रदेश का मुद्दा मुख्य मुद्दा है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के आदिवासी भील बहुल क्षेत्रों को मिलाकर भील प्रदेश बनाने की मांग हम पहले से करते रहे हैं। वहीं, पांचवीं अनुसूची, जल-जंगल-जमीन, आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार, आदिवासी क्षेत्रों में महिलाओं को सुरक्षा देना, आदिवासी परंपराओं व रीति-रिवाजों का संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण और आबादी के अनुरूप हिस्सेदारी हमारे अन्य मुख्य मुद्दे हैं।

भाजपा और कांग्रेस के मुद्दे पर वह कहते हैं कि भाजपा का राष्ट्रवाद फर्जी है, क्योंकि उसके राष्ट्रवाद में सबको बराबर जगह नहीं मिलती। जबकि कांग्रेस जिस धर्म निरपेक्षता की बात करती है, उसका वह स्वयं भी पालन नहीं करती है। अभी कांग्रेस गर्त में चली गई है। इसलिए जातिगत जनगणना के मुद्दे को उछाल रही है। जबकि 1952 से लेकर जितने साल तक कांग्रेस ने राज किया, तब तक उसने जातिगत जनगणना को लेकर रोड़े ही अटकाए। मैं तो चाहूंगा कि ब्राह्मण हो, राजपूत हो, ओबीसी हो या आदिवासी हो, सभी को उसके अनुसार प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। सबको बराबर प्रतिनिधित्व मिल गया तो लड़ाई ही खत्म हो जाएगी। सभी लोग शांति से रहेंगे। हम भी यहीं चाहेंगे। 

कांति रोत, श्याम सिंह मरकाम, डा. हिरालाल अलावा और अरविंद नेताम

बीटीपी के साथ चुनाव क्यों नहीं लड़ रहे, इस पर कांति रोत ने कहा कि जिस पार्टी के संस्थापक [छोटू भाई वसावा] को ही उनके बेटे महेश वसावा जो कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, ने बेटिकट कर दिया तब वह चुनाव में निर्दलीय उतरे और हार गए। इसके बाद बीटीपी अब खत्म हो गई। उस पार्टी के साथ हम कैसे चुनाव लड़ेंगे? 

मध्य प्रदेश : गोंगपा और जयस चुनौती देने को तैयार

मध्य प्रदेश में अब तक का यह ट्रेंड रहा है कि आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों को जो पार्टी सबसे ज्यादा जीतने में कामयाब होती है, सरकार उसी की बनती है। मसलन, 1998 और 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी आरक्षित अधिक सीटों को कांग्रेस पार्टी जीतने में कामयाब हुई थी तो उसकी सरकार बनी, जबकि 2003, 2008 और 2013 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अधिक सीटें जीतीं तो उसकी सरकार बनी। 

बताते चलें कि मध्य प्रदेश में 22 प्रतिशत मतदाता आदिवासी हैं। जबकि 47 विधानसभा सीट आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित है। आदिवासी मतदाता आरक्षित 47 सीटों के अलावा 35 विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं, क्योंकि इन 35 सीटों पर आदिवासी मतदाताओं की संख्या 50 हजार से एक लाख तक है। इसके अलावा अन्य सभी सीटों पर भी लगभग 5 हजार से 35 हजार तक आदिवासी मतदाता हैं। 

इसलिए मध्य प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस द्वारा आदिवासियों को लुभाने की कोशिशें की जा रही हैं। हालांकि मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस और भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती जयस संगठन और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) हैं। गोंगपा का गठबंधन बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से हुआ है, जबकि कांग्रेस से भी गठबंधन के लिए बातचीत होने के चर्चा होने की खबर है। हालांकि इस संबंध में गोंगपा के राष्ट्रीय महासचिव श्याम सिंह मरकाम कहते हैं कि “कांग्रेस से गोंगपा का कोई गठबंधन नहीं हुआ है, क्योंकि कांग्रेस गोंगपा से गठबंधन ही नहीं करना चाहती है। इसकी वजह यह है कि कांग्रेस गोंगपा के साथ सिर्फ मध्य प्रदेश में गठबंधन करना चाहती है, छत्तीसगढ़ में नहीं। चूंकि हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष तुलेश्वर सिंह मरकाम छत्तीसगढ़ से चुनाव लड़ते हैं और यदि कांग्रेस हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष के खिलाफ ही चुनाव लड़ेगी तो हम कांग्रेस के साथ गठबंधन कैसे कर सकते हैं?” 

वहीं दूसरी ओर जयस का प्रभाव मालवा-निमाड़ के साथ-साथ मध्य, विंध्य और महाकौशल क्षेत्र में भी है। यह संगठन पिछले एक साल से 47 आदिवासी आरक्षित विधान सभा सीटों के अलावा 35 आदिवासी प्रभाव वाली सीटों पर भी चुनाव लड़ने की ताल ठोक रहा है। हालांकि जयस के कई गुट होने के भी चर्चे हैं। पिछले दिनों जयस के एक गुट द्वारा मध्य प्रदेश के चार सीटों पर अपने उम्मीदवारों की सूची जारी की गई, जिसका जयस के राष्ट्रीय संरक्षक डा. हिरालाल अलावा ने खंडन किया है। 

जयस किसी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगा या निर्दलीय? इस पर डा. हिरालाल अलावा कहते हैं कि “कांग्रेस में जयस के कोटे से कितनी सीटों पर सहमति बनती है, यह अभी बताना मुश्किल है। लेकिन आदिवासियों के लिए रिजर्व 47 सीटों के अलावा उन सीटों पर भी जयस दावेदारी कर रहा है जहां आदिवासी मतदाताओं की संख्या एक लाख से 50 हजार तक है। कांग्रेस के साथ बात बने या ना बने, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जयस के युवा पूरी तैयारी के साथ चुनावी मैदान में हैं। वे तो चुनाव लड़ेंगे।”

कांग्रेस के संबंध में उनका कहना है कि “50 प्रतिशत से अधिक आदिवासी आबादी वाले इलाकों में छठी अनुसूची लागू करने, एससी-एसटी के बैकलॉग खाली पदों को भरने और आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को लागू करने का वादा कांग्रेस ने किया है। इसके अलावा नए युवाओं को मौका देने के लिए कांग्रेस से हमारी एक चरण की बात हो चुकी है।”

वहीं भाजपा पर हमलावार होते हुए डा. अलावा कहते हैं कि “संवैधानिक अधिकारों की बात करने वाले जयस जैसे जिस संगठन को ये अबतक देशद्रोही कहते थे, आज वे इसी जयस संगठन का पीला गमछा और इसी संगठन के लोगों के साथ मिलकर चुनाव में आदिवासी वोटों को हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। चुनाव आते ही उन्हें आदिवासी याद आते हैं और इसके बाद वे आदिवासियों को भूल जाते हैं।”

छत्तीसगढ़ : सर्व आदिवासी समाज ने कराया ‘हमर राज पार्टी’ का केंद्रीय चुनाव आयोग में पंजीकरण

कांग्रेस से अलग हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम के नेतृत्व में सर्व आदिवासी समाज संगठन भी छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में उतरने जा रहा है। संगठन ने ‘हमर राज पार्टी’ नामक पार्टी का गठन किया है। इसका रजिस्ट्रेशन केंद्रीय चुनाव आयोग से करा लिया गया है। इसकी जानकारी पिछले सप्ताह अरविंद नेताम ने मीडिया को दी। उन्होंने बताया कि यह पार्टी छत्तीसगढ़ में आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारेगी। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पार्टी राज्य के 90 में से 50 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इसके अलावा नेताम ने बताया कि पार्टी का अध्यक्ष अकबर राम कोर्राम को बनाया गया है, जबकि कार्यकारी अध्यक्ष बीएस रावटे और महासचिव की जिम्मेदारी विनोद नागवंशी को दी गई है।

(संपादन : नवल/अनिल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, संस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

राजन कुमार

राजन कुमार फारवर्ड प्रेस के उप-संपादक (हिंदी) हैं

संबंधित आलेख

जंतर-मंतर पर गूंजी अर्जक संघ की आवाज – राष्ट्रपति हो या चपरासी की संतान, सबकी शिक्षा हो एक समान
राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव कुमार भारती ने मांगों पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि इसके पूर्व भी संघ के संस्थापक महामना राम स्वरूप...
दलित विमर्श की सहज कहानियां
इस कहानी संग्रह की कहानियों में जाति के नाम पर कथित उच्‍च जातियों का दंभ है। साथ ही, निम्‍न जातियों पर दबंग जातियों द्वारा...
चौबीस साल का हुआ झारखंड : जश्न के साथ-साथ ज़मीनी सच्चाई की पड़ताल भी ज़रूरी
झारखंड आज एक चौराहे पर खड़ा है। उसे अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने और आधुनिकीकरण व समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए...
घुमंतू लोगों के आंदोलनों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए अंतर्राष्ट्रीय वेब सम्मलेन
एशिया महाद्वीप में बंजारा/घुमंतू समुदायों की खासी विविधता है। एशिया के कई देशों में पशुपालक, खानाबदोश, वन्य एवं समुद्री घुमंतू समुदाय रहते हैं। इसके...
कुलदीप नैयर पत्रकारिता सम्मान-2023 से नवाजे गए उर्मिलेश ने उठाया मीडिया में दलित-बहुजनाें की भागीदारी नहीं होने का सवाल
उर्मिलेश ने कहा कि देश में पहले दलित राष्ट्रपति जब के.आर. नारायणन थे, उस समय एक दलित राजनीतिक परिस्थितियों के कारण देश का राष्ट्रपति...