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शशिकांत ह्यूमने : एक प्रेरक आंबेडकरवादी

जब मैंने उनसे पूछा कि डॉ. आंबेडकर के जीवन और मिशन की किस बात ने उन्हें सबसे अधिक प्रभावित किया है तो शशिकांत ह्यूमने ने कहा कि उन्हें डॉ. आंबेडकर के बारे में जो बात सर्वाधिक पसंद थी वह थी– अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करना। बता रहे हैं विद्या भूषण रावत

शशिकांत ह्यूमने नागपुर के वरिष्ठ आंबेडकरवादी हैं। फरवरी, 1939 में जन्मे शशिकांत आंबेडकरवादियों की उस पीढ़ी से हैं, जिन्होंने बाबा साहब आंबेडकर को देखा और सुना। 

वस्तुत: महाराष्ट्र के दलित परिवारों में या कहें कि नव-बौद्ध परिवारों में डॉ. आंबेडकर का संघर्ष और उपलब्धियां हर परिवार की लोककथाओं का हिस्सा हैं। 

शशिकांत का परिवार भूमिहीन था। फिर भी अपने दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत से उन्होंने ऐसी सफलताएं हासिल कीं, जिनके ऊपर किसी को भी गर्व हो सकता है। वह महाराष्ट्र सरकार में एक अधिकारी बने और नौकरी में रहते हुए डबल एमए और एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। उनके लिए उम्र मायने नहीं रखती। उनकी जिज्ञासा और दृढ़ संकल्प उन्हें नई तथ्यों की खोज में व्यस्त रखता है, जिसे वह आंबेडकरवादी समुदाय के साथ साझा करते हैं। वह आज भी एक उत्कट पाठक हैं और लगातार अनुवाद कार्य में लगे रहते हैं। 

वह पिछले 18 वर्षों से समता सैनिक दल, लश्करी बाग, नागपुर का नेतृत्व कर रहे हैं। दो वर्षों तक वह बौद्ध पेंशनर्स एसोसिएशन के प्रमुख रहे। उन्होंने बहुजन हिताय संगठन की भी शुरुआत की ताकि वह दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों को एक साथ जोड़ सकें। 

शशिकांत का प्रारंभिक जीवन संकट में बीता। पिता खेतिहर मजदूर थे। उनकी मां बीड़ी बनाती थीं और परिवार में कमाने वाली अकेली थीं। कुछ समय बाद उनके पिता ने एक छोटा-सा पान-बीड़ी का ठेला शुरू किया, लेकिन वह परिवार चलाने के लिए पर्याप्त नहीं था। उनके परिवार में 9 लोग थे। 

शशिकांत अपनी मां से प्रभावित हुए, जिन्होंने उन्हें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। गरीबी की अभावों के बावजूद उनके माता-पिता दोनों आंबेडकरवादी थे। उन्होंने डॉ. आंबेडकर को देखा था और उनके बारे में कहानियां सुनी थीं। उन दिनों डॉ. आंबेडकर ‘मूकनायक’ या ‘समता’ में जो भी लिखते, उसे कई लोग साझा करते थे और इस प्रकार उनके विषय में क्षेत्र के दलितों के बीच जानकारी पहुंचने लगी थी। 

डॉ. आंबेडकर जब भी नागपुर आते थे तो शशिकांत के माता-पिता उनको सुनने और देखने के लिए जरूर जाते थे।

हालांकि गरीबी के कारण शशिकांत को अनेकानेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन तब स्कूली शिक्षा कठिन और महंगी नहीं थी। उन्होंने अपनी मैट्रिक की पढ़ाई सरकारी स्कूल से पूरी की। बाद में, उन्हें एक कार्यालय में नौकरी मिल गई। मैट्रिक के बाद उन्होंने पॉलिटेक्निक की परीक्षा दी, लेकिन अंग्रेजी न समझने के कारण उस समय उन्हें गणित और विज्ञान समझ में नहीं आया और वे फेल हो गए। 

शशिकांत ह्यूमने

नौकरी करते हुए शशिकांत पढ़ते रहे। शशिकांत पर डॉ. आंबेडकर के विचारों का इतना असर था कि उन्होंने भी हर उस विधा में शिक्षा प्राप्त करने की कोशिश की जो उनकी कमजोरी रही। उसके लिए उन्होंने बहुत मेहनत की। अपने ऑफिस के समय से अलग, वह अपनी क्लासेस जॉइन करते थे और इसके लिए वह 7.30 से 9 बजे तक कॉलेज जाते थे। उन्होंने उसी कार्यालय से बीए एलएलबी पास की और फिर एलएलएम भी पूरा किया। उन्होंने यूपीएससी और एमपीएससी में आवेदन किया। पहले ही प्रयास में उनका चयन महाराष्ट्र प्रदेश में हो गया। उनका चयन राजपत्रित अधिकारी के रूप में हुआ। 

लेकिन शशिकांत यहीं नहीं रुके। इसके बाद उन्होंने अर्थशास्त्र में एमए पास किया और पुणे विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एमए पूरा किया। उनका चयन आयकर विभाग में भी हो गया था, लेकिन परिवार और अन्य ज़िम्मेदारियों के कारण वह ज्वाइन नहीं कर सके। 

जब मैंने उनसे पूछा कि डॉ. आंबेडकर के जीवन और मिशन की किस बात ने उन्हें सबसे अधिक प्रभावित किया है तो शशिकांत ह्यूमने ने कहा कि उन्हें डॉ. आंबेडकर के बारे में जो बात सर्वाधिक पसंद थी वह थी– अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करना। डॉ. आंबेडकर ने एक बार कहा था, “मेरे बेदाग चरित्र के कारण ही लोग मुझसे डरते हैं।” उस बात ने भी शशिकांत को बहुत प्रभावित किया।

शशिकांत को अधिकांश लोग ह्यूमने कहते हैं। इस बारे में वह कहते हैं– “मुझे यह उपनाम पसंद है। यह मानवीय ही है। और यह मेरे माता-पिता का उपनाम है। नागपुर में बहुत सारे लोग हैं जो यह उपनाम रखते हैं। इसके अलावा भंडारा जिले के कुछ क्वार्टरों में भी लोग अपना सरनेम ह्यूमने लिखते हैं।” 

वह समता सैनिक दल के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हुए थे, जिसे डॉ. आंबेडकर द्वारा शुरू किया गया था। 

शशिकांत ने हिंदी और अंग्रेजी की कई पुस्तकों का मराठी में और कई मराठी पुस्तकों का अंग्रेजी और हिंदी में अनुवाद किया। उनमें से कुछ हैं– ‘हिंदू साम्राज्यवाद का इतिहास’, ‘गीता का जिरह’, ‘खून के छींटे’ और  ‘विवेकवाद’।

शशिकांत के जीवन में दुख का पहाड़ तब टूटा जब 8 फरवरी, 2019 को हृदय गति रुकने के कारण उनके बेटे अभियान का अप्रत्याशित रूप से निधन हो गया। अभियान नालंदा अकादमी से जुड़े थे और विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सक्रिय थे। उन्होंने युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए अभियान लैब की स्थापना की थी। एक वृद्ध माता-पिता के लिए अपने ऊर्जावान बेटे को खोना निश्चित रूप से अकथनीय है। इस त्रासदी के बावजूद भी शशिकांत और उनकी पत्नी कांता ने धैर्य बनाए रखा और अभियान के सपनों और मिशन को पूरा करने के लिए अपना शेष जीवन समर्पित करने का फैसला किया। आज शशिकांत नालंदा अकादमी से जुड़े हैं और जहां अभियान ने अकादमी के विकास के लिए खुद को पूरी तरह से समर्पित कर दिया है।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

विद्या भूषण रावत

विद्या भूषण रावत सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और डाक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता हैं। उनकी कृतियों में 'दलित, लैंड एंड डिग्निटी', 'प्रेस एंड प्रेजुडिस', 'अम्बेडकर, अयोध्या और दलित आंदोलन', 'इम्पैक्ट आॅफ स्पेशल इकोनोमिक जोन्स इन इंडिया' और 'तर्क के यौद्धा' शामिल हैं। उनकी फिल्में, 'द साईलेंस आॅफ सुनामी', 'द पाॅलिटिक्स आॅफ राम टेम्पल', 'अयोध्या : विरासत की जंग', 'बदलाव की ओर : स्ट्रगल आॅफ वाल्मीकीज़ आॅफ उत्तर प्रदेश' व 'लिविंग आॅन द ऐजिज़', समकालीन सामाजिक-राजनैतिक सरोकारों पर केंद्रित हैं और उनकी सूक्ष्म पड़ताल करती हैं।

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