[यह रिपोर्ट ‘डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर और अछूतों का आंदोलन’, स्रोत सामग्री (1915-1955), संकलनकर्ता डॉ. बी.जी. कुंते व बी.एन. पाठक, अनुवादक कंवल भारती, आनंद साहित्य सदन, अलीगढ़ में संकलित है। यहां अनुवादक की सहमति से पुनर्प्रकाशित]
दिनांक : 9 दिसंबर, 1956
समय : शाम 5:45 से रात 10:15 बजे तक
स्थान : शिवाजी पार्क, दादर
तत्वावधाान : बंबई के नागरिक
विषय : डॉ. बी. आर. आंबेडकर की स्मृति में श्रद्धांजलि
अधयक्ष : श्री एम. वी. डांडे
वक्ता :
श्री के. एस. ठाकरे
श्री मधाुकर महाजन
श्री नौजीर भरूचा
श्री बी. सी. कांबले
डॉ. हेमंत कार्निक
श्री पगारे
डॉ. टी. आर. नरवणे
श्री रूपवते
श्री एस. जी. लटकर
श्री खोब्रागड़े, बार-एट-लॉ
श्री मोहिद्दीन हारिस
श्री एस. ए. भिड़े
श्री आर. डी. भंडारे
श्री एम. आर. दंडवते
श्री आनंद कोसल्यायन
श्री अनंत मंदेकर
श्री दादासाहेब गायकवाड़
श्री पी. के. अत्रे
उपस्थित श्रोता : एक लाख
टिप्पणी :
अधयक्ष ने कहा कि उन्हें [डॉ. आंबेडकर को] लोगों की स्थिति का अहसास था। अतीत में बहुत सी सभाएं शिवाजी पार्क में हुई हैं, परंतु आज की सभा अतीत की सभाओं से भिन्न है। आज के दिन वे एक महान व्यक्ति की स्मृति में अपनी श्रद्धांजलि देने के लिए एकत्र हुए हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि यह सभा बंबई के नागरिकों की ओर से आयोजित की गई है, पर वह जानते हैं कि इस सभा में पददलित लोगों के प्रतिनिधि न केवल भारत के अनेक भागों से, बल्कि विश्व के भी अनेक भागों से डॉ. आंबेडकर को अपनी श्रद्धांजलि देने के लिए आए हैं। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर समुद्र और हिमालय से भी बड़े थे और जब वे व्यवहार के बारे में सोचते थे, तो अपने जीवन काल में लोगों से मिले व्यवहार को याद करके उनका हृदय क्रोध से भर जाता था। डॉ. आंबेडकर ने अन्याय के खिलाफ़ लड़ाई लड़ी थी। उनकी उपस्थिति से उनके शत्रुओं में, जो बात तो न्याय की करते थे, पर उनका कार्य सत्य और न्याय से कोसों दूर था, दहशत भर जाती थी। उनका निधन देश की बहुत बड़ी क्षति है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि डॉ. आंबेडकर की वाणी कठोर थी, पर यह कोई नहीं सोचता कि ऐसा क्यों था? इसका कारण यह था कि उन्होंने बचपन से ही न केवल हिंदुओं से, बल्कि दूसरे समुदायों के लोगों से भी दुर्व्यवहार और तिरस्कार झेला था। उन्होंने आगे कहा कि यह कहना गलत है कि वे ब्राह्मणों से घृणा करते थे। उनके बहुत से मित्र ब्राह्मण थे और एक ब्राह्मण ने ही उनकी सहायता की थी और उन्हें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया था। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने उस पत्र को अपने पास सुरक्षित रखा था, जो उनके ब्राह्मण अधयापक ने उन्हें उस समय भेजा था, जब वे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने लंदन गए थे। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर के विरुद्ध एक आरोप यह लगाया जाता है कि उन्होंने देश के लिए कुछ नहीं किया। वह ऐसे लोगों से पूछना चाहते हैं कि डॉ. आंबेडकर ने देश के लिए क्या नहीं किया? उन्होंने संविधान का निर्माण किया, और उन्होंने ही राष्ट्रीय ध्वज में अशोक चक्र का विचार दिया था। उन्होंने देश की महान सेवा की थी, पर लोग उनको और उनके अनुयायियों के साथ वह मानवीय बर्ताव करने में विफल रहे। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने लोगों में जागरूकता पैदा की थी और उन्हें पूरा यकीन है कि यद्यपि डॉ. आंबेडकर अब नहीं रहे हैं, पर जो शिक्षा उन्होंने उनको दी थी, उसे वे सदैव अपने सामने रखेंगे।
श्री एस. के. ठाकरे ने डॉ. आंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उन्होंने पिछले 65 वर्षों में बहुत से महापुरुषों की शव-यात्राएं देखी हैं, पर जितना अपार जनसमूह उन्होंने डॉ. आंबेडकर की शवव यात्रा में देखा, वह उन्होंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर द्विभािषिक राज्य के घोर विरोधी थे। उनकी इच्छा थी कि बंबई, बेलगांव, करवार के साथ संयुक्त महाराष्ट्र का निर्माण हो। उन्होंने कहा कि संयुक्त महाराष्ट्र के निर्माण का काम अभी अधूरा है और डॉ. आंबेडकर की इस इच्छा को पूरा करने की जिम्मेदारी अब उन लोगों की है, जो उनके साथी थे। उन्होंने श्रोताओं को कहा कि वे उनकी इच्छा को पूरी होने तक चैन से न बैठें।
श्री मधुकर महाजन ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि डॉ. आंबेडकर के निधन से उन्होंने एक महान अनुभवी नेता के नेतृत्व को खो दिया है, पर उनकी शिक्षाएं देश में लोकतंत्र को सुरक्षित रखने में बड़ी मदद करेंगी। उन्होंने आश्वासन दिया कि भारतीय जनसंघ डॉ. आंबेडकर के अनुयायियों को उनकी मुक्ति के लिए हर तरह का सहयोग करेगा।
श्री नौजीर भरूचा ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि डॉ. आंबेडकर एक विद्वान व्यक्ति थे, जिन्होंने आजीवन पददलित लोगों के कल्याण के लिए संघर्ष किया था। आज उन्होंने एक महान नेता खो दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि डॉ. आंबेडकर की अनुपस्थिति में दलित जनता के हितों की सुरक्षा के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों का एक संयुक्त मोर्चा बनाया जाना चाहिए।
श्री बी. सी. कांबले ने कहा कि डॉ. आंबेडकर के अनुयायी आज इसलिए शोक में हैं कि उन्होंने अपना समर्थक खो दिया है और उन्हें नहीं पता कि उनके अभाव में उनका भविष्य क्या होगा, क्योंकि ऐसा कोई भी दूसरा व्यक्ति नहीं है, जो उनका स्थान ले ले। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने आजीवन देश में असमानता को दूर करने और नए समाज के निर्माण के लिए काम किया और इसी दृष्टि से उन्होंने देश को संसदीय लोकतंत्र दिया। वे इस मत के थे कि देश में लोगों को लोकतांत्रिक तरीके से नया समाज बनाना चाहिए और उनका काम इसी दिशा में था। उन्होंने आगे कहा कि डॉ. आंबेडकर को कठोर बोलने वाला कहा जाता है। वह ऐसे लोगों को बताना चाहते हैं कि यदि अन्यायपूर्ण कारणों को हटा दिया गया होता, तो डॉ. आंबेडकर के लिए कठोर शब्दों का उपयोग करने का कोई अवसर नहीं मिलता।
डॉ. हेमंत कार्निक ने अपने भाषण में कहा कि सरकार ने छोटे-छोटे राज्यों के शासकों के निधन पर अपने कार्यालय बंद रखे थे, पर यह बहुत दुख का विषय है कि भारत सरकार ने डॉ. आंबेडकर के निधन पर राजकीय शोक घोषित नहीं किया, जो भारत के मंत्रिमंडल में थे और भारत के संविधाान के निर्माता भी थे। उन्होंने आगे कहा कि डॉ. आंबेडकर ने बहुत सी संस्थाएं आरंभ की थीं, और अब उन संस्थाओं को जारी रखने का महान कार्य उनके कंधों पर आ गया है, जिन्हें वे अपने पीछे छोड़ गए हैं।
डॉ. टी. आर. नरवणे ने डॉ. आंबेडकर की स्मृति में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि डॉ. आंबेडकर ने गुलामी के खिलाफ़ विद्रोह किया था और एक नए समाज की स्थापना के लिए काम किया था, जो अभी अधूरा है, और उसे अब उनके अनुयायियों को पूरा करना है।
श्री एस. जी. पाटकर ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से डॉ. आंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए डॉ. आंबेडकर के अनुयायियों को देश में समता पर आधाारित समाज की स्थापना के लिए हर प्रकार का सहयोग और समर्थन देने का आश्वासन दिया।
श्री दादासाहेब गायकवाड़ ने कहा कि डॉ. आंबेडकर को विद्रोही कहने की बजाए क्रांतिकारी कहना ठीक होगा। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने बौद्धधार्म तब अपनाया था, जब उन्होंने यह देख लिया था कि उन्हें सवर्ण हिंदुओं से मानवीय व्यवहार नहीं मिलने वाला है। उन्होने कहा कि उन्होंने हिंदू धर्म छोड़ने की घोषणा 1935 में की थी, और सवर्ण हिंदुओं को हरिजनों के प्रति मानवीय व्यवहार पर विचार करने के लिए पर्याप्त समय दिया था, परंतु जब डॉ. आंबेडकर ने देखा कि सवर्ण हिंदू ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हैं, तो उन्होंने अपने अनुयायियों को बौद्ध धर्म अपनाने की सलाह दी। उन्होंने आगे कहा कि डॉ. आंबेडकर ने तत्कालीन ब्रिटिश शासन से विधानसभाओं और संसद में उनकी समस्याओं को उठाने के लिए पृथक निर्वाचन की मांग की थी, लेकिन महात्मा गांधी ने यह कह कर उसका विरोध किया था कि कांग्रेस ही हरिजनों का प्रतिनिधित्व करने वाली सही पार्टी है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के समय डॉ. आंबेडकर ने कांग्रेस से पूछा था कि स्वतंत्रता मिल जाने के बाद वह हरिजनों को क्या सुविधाएं देगी, परंतु कांग्रेस ने उन्हें कोई आश्वासन नहीं दिया था। उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस कह रही है कि अस्पृश्यता देश से समाप्त हो गई है, पर वह उन्हें बताना चाहते हैं कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अस्पृश्यता पहले से भी ज्यादा बड़े स्तर पर व्यवहार में मौजूद है और वह इसके प्रमाण दे सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि उनके साथ आज भी गांवों और तालुकों में पुलिस और सरकारी अधिकारी अच्छा और सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि इसी तरह का अमानवीय व्यवहार सवर्ण हिंदुओं के साथ हुआ होता, तो वे ऐसा व्यवहार करने वालों के खिलाफ़ विनाशकारी कदम उठाते। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने अपने अनुयायियों को अन्याय के खिलाफ़ लोकतांत्रिक तरीकों से संघर्ष करने की सलाह दी थी, न कि हिंसा का सहारा लेने की। उन्होंने अंत में कहा कि डॉ. आंबेडकर की शिक्षाएं भविष्य में उनकी मुक्ति के लिए उनका मार्ग प्रशस्त करेंगी।
उसके बाद अधयक्ष ने डॉ. आंबेडकर की स्मृति में, श्रद्धांजलि प्रस्ताव रखा, जिसमें कहा गया कि वे महान विद्वान और महान राष्ट्रवादी थे, जिनके निधन से देश की महान क्षति हुई है। उन्होंने डॉ. आंबेडकर के अनुयायियों के दुख में शरीक होने की घोषणा की।
श्री पी. के. अत्रे ने प्रस्ताव का समर्थन करते हुए अपने भाषण में कहा कि डॉ. आंबेडकर एक दूरदर्शी व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने द्वारा लिखित पुस्तक में देश के विभाजन के परिणाम लिखे थे। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि पाकिस्तान नष्ट हो जाएगा और फि़र से अखंड भारत बनेगा। उन्होंने कहा कि वे संयुक्त महाराष्ट्र के समर्थक थे और द्विभाषी राज्य के विरुद्ध थे। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने सात करोड़ लोगों को उनके कानूनी अधिकारों से वंचित करके महात्मा गांधी के जीवन की रक्षा की थी। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने देश का नैतिक बल बढ़ाने के लिए बौद्ध धर्म स्वीकार किया था। उन्होंने कहा कि उन्होंने चौपाटी रेत पर डॉ. आंबेडकर के पार्थिव शरीर का दाह संस्कार करने की मांग की थी, परंतु श्री यशवंतराव चव्हाण ने ऐसा करने की अनुमति नहीं दी। उन्होंने कहा कि जहां अंतिम संस्कार हुआ है, वहां पर डॉ. आंबेडकर की विशाल प्रतिमा लगाई जायेगी, ताकि श्री तिलक और डॉ. आंबेडकर दोनों तरफ़ से बंबई शहर की रक्षा करेंगे और तब कोई भी बंबई शहर को महाराष्ट्र में शामिल करने से मना करने की हिम्मत नहीं करेगा।
अन्य वक्ताओं ने भी अपने भाषणों में डॉ. आंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित की।
सभी ने एक मिनट मौन खड़े होकर प्रस्ताव पास किया।
रात 10:15 बजे जनसभा शांतपूर्वक समाप्त हुई।
(हस्ताक्षर)
रिपोर्टर
10 दिसंबर, 1956
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