मणिपुर के मैतेई समुदाय के एक नेता के मांग पर जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार ने 26 दिसंबर, 2023 को मणिपुर सरकार को पत्र लिखकर ‘चिन-कुकी’ को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची से हटाने के लिए प्रस्ताव मांगा है। यह इसलिए भी आश्चर्यजनक है क्योंकि यह पहल केंद्र की ओर से की गई है। जबकि सामान्य तौर पर ऐसे मामलों में प्रस्ताव राज्य सरकार द्वारा केंद्र को भेजा जाता है। विदित है कि मणिपुर में जारी हिंसा के केंद्र में मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने का सवाल है। जारी हिंसा में अब तक 180 से अधिक लोग मारे गए हैं। अब भी वहां की स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है।
जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार ने मणिपुर सरकार को लिखे अपने पत्र में मणिपुर निवासी और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले) के राष्ट्रीय सचिव महेश्वर थौनाओजम द्वारा दिए गए ज्ञापन को आधार बनाया है। साथ ही पत्र में मंत्रालय ने चिन-कुकी को नोमिडिक (घुमंतू) के रूप में उद्धृत किया है।
भारत सरकार के पत्र में ही सवाल
गौर तलब है कि कुकी समुदाय को म्यांमार के लोग चिन-कुकी कहते हैं, जबकि मणिपुर में कुकी समुदाय के लोग आपस में एक-दूसरे को जो-कुकी के रूप में संबोधित करते हैं। पत्र में उल्लेखित चिन-कुकी शब्द मणिपुर के सभी कुकी की विभिन्न जनजातियों पर लागू होता है। इसके अलावा एक तथ्य यह भी है कि कुकी समुदाय मणिपुर में एसटी की सूची में शामिल हैं। पिछले साल 22 मार्च, 2023 को भारत सरकार की संस्था प्रेस इन्फार्मेशन ब्यूरो द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि मणिपुर में नोमिडिक ट्राइब यानी घुमंतू जनजातियों की संख्या शून्य है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि भारत सरकार द्वारा मणिपुर सरकार को भेजे गए ऊपर वर्णित पत्र में ‘नोमिडिक चिन-कुकी’ का उल्लेख क्यों किया गया है?
सोशल मीडिया पर दावे
बीते 8 जनवरी, 2023 को सोशल मीडिया मंच एक्स पर महेश्वर थौनाओजम ने लिखा कि “आज मुझे जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार से घुमंतू चिन-कुकी को एसटी सूची से हटाने के संबंध में जवाब मिला है। केंद्रीय मंत्रालय की ओर से यह बहुत बड़ा सकारात्मक जवाब है। मैं मणिपुर राज्य सरकार से आग्रह करता हूं कि वह जल्द ही इसके लिए सिफारिश भेजे।”
इसके पूर्व में 13 दिसंबर, 2023 को एक्स पर महेश्वर थौनाओजम ने लिखा कि “मैंने भारत सरकार के जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा से मुलाकात की और मैतेई को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के अनुरोध के साथ दस्तावेज भी प्रस्तुत किया कि मैतेई मणिपुर की आदिवासी जनजातियों के वंशज हैं। मैंने कुकी अप्रवासियों को भी अनुसूचित जनजाति सूची से हटाने की मांग की, क्योंकि 5 जनवरी, 2011 के कैलाश एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सभी अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) भारत के मूलनिवासी होंगे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के अनुसार मणिपुर के ज़ोमी सहित कुकी इस आधार पर मणिपुर की अनुसूचित जनजाति होने के लिए योग्य नहीं हैं, क्योंकि वे मणिपुर के मूल निवासी नहीं हैं।”
मुख्यमंत्री ने कही निर्धारित प्रक्रिया अपनाने की बात
वहीं मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने बीते 9 जनवरी, 2024 को कहा कि चिन-कुकी समुदाय को राज्य की अनुसूचित जनजाति सूची से हटाया जाएगा या नहीं, इस पर निर्णय लेने के लिए एक सर्व-जनजाति समिति का गठन किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि “उन्हें (चिन-कुकी को) मणिपुर की एसटी सूची में शामिल किया गया था, लेकिन उन्हें कैसे शामिल किया गया, इसकी दोबारा जांच की जानी चाहिए। कोई टिप्पणी करने से पहले, हमें (राज्य की) सभी जनजातियों को मिलाकर एक समिति बनानी होगी।” उन्होंने यह भी कहा कि पैनल की सिफारिशें मिलने के बाद राज्य सरकार इस मामले पर केंद्र को अपना विचार भेज सकेगी।
कुकी-जोमी कर रहे विरोध
भारत सरकार द्वारा की गई कार्रवाई के खिलाफ कुकी समुदाय के लोग खड़े हो गए हैं। अंग्रेजी दैनिक ‘द हिंदू’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) और ज़ोमी काउंसिल स्टीयरिंग कमेटी (जेडसीएससी) ने बीते 10 जनवरी, 2024 को मणिपुर में कुकी-जोमी आदिवासियों के एसटी सूची में होने की स्थिति की समीक्षा करने के कदम की कड़ी निंदा की।
आईटीएलएफ ने एक बयान जारी कर मैतेई समुदाय का जिक्र करते हुए कहा, “पहले उन्होंने एसटी दर्जा पाने की कोशिश की … अब, वे आदिवासी के रूप में हमारी पहचान को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं।” आईटीएलएफ ने अपने बयान में कहा कि वह इसे बीरेन सिंह सरकार द्वारा कुकी आदिवासियों को उनके अधिकारों और भूमि से वंचित करने के लिए एसटी मानदंडों को बदलने की कोशिश के रूप में देखता है।
जेडसीएससी ने भी अपनी आपत्तियों के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय को एक ज्ञापन भेजा। पीएमओ को दिए अपने ज्ञापन में, ज़ेडसीएससी ने कुकी और ज़ोमी समुदायों की एसटी स्थिति की समीक्षा शुरू करने के कदम को “बहुसंख्यकवादी नजरिए से इतिहास को बदलने की खुलेआम कोशिश” कहा। इसमें यह भी कहा गया है कि इससे मौजूदा विभाजन और बढ़ेगा।
कुकी समुदाय के इतिहास पर भी हमला
वहीं महेश्वर थौनाओजम ने कुकी समुदाय से संबंधित इतिहास को दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम से हटाने की मांग की है। इस संबंध में 19 दिसंबर, 2023 को एक्स पर थौनाओजम ने लिखा कि “मैंने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मुलाकात की और एंग्लो-कुकी युद्ध के बारे में शिकायत की कि यह एक मनगढ़ंत इतिहास है और इसे दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम से हटाया जाना चाहिए। और एंग्लो-कुकी युद्ध और अन्य मनगढ़ंत इतिहास की पुस्तकों के संबंध में, जो पुस्तक मेलों में बेची और प्रदर्शित की जा रही हैं, उनके ऊपर प्रतिबंध लगाने का आग्रह भी किया। उन्होंने [धर्मेंद्र प्रधान ने] जवाब दिया कि वह इस पर जरूर गौर करेंगे।”
इसके पहले 20 नवंबर, 2023 को भी थौनाओजम ने दिल्ली विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार को पत्र लिखा, जिसमें कहा गया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के एमए (इतिहास) में शामिल एंग्लो-कुकी युद्ध (भूमि का दावा) पाठ्यक्रम काल्पनिक है, जो मणिपुर के इतिहास को विकृत करता है। ऐसा पाठ्यक्रम स्वदेशी मणिपुर वासियों को स्वीकार्य नहीं है। अतः इस विषय को विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम से हटाने की व्यवस्था करें।
क्या यह सवाल नहीं उठता है कि इस प्रकार महेश्वर थौनाओजम द्वारा कुकी समुदाय को सिर्फ एसटी लिस्ट से हटाने की ही मांग नहीं की जा रही है, बल्कि उनकी पहचान और इतिहास को भी खत्म करने की मांग की जा रही है?
किसी एक व्यक्ति के आवेदन पर इतनी तत्परता क्यों?
पश्चिम बंगाल के चाय बागानों में आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अर्जुन इंदवार कहते हैं कि “देश के कई समुदाय लंबे समय से एसटी का दर्जा पाने की मांग कर रहे हैं। किसी को एसटी सूची से हटाने या शामिल करने के लिए प्रक्रिया और मापदंड होते हैं। लोकुर कमिटी के मापदंडों के तहत राज्य का टीआरआई (जनजातीय अनुसंधान संस्थान) देखता है, फिर उसे केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय भेजा जाता है। मंत्रालय उसे आरजीआई (भारत के रजिस्ट्रार जनरल) और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को भेजता है। वहां अध्ययन के बाद यदि वे सिफारिश करते है तो संसद से पारित कर एसटी का दर्जा दिया जाता है या हटाया जाता है। यह एक लंबी प्रक्रिया होती है और इसमें सालों-साल लगते हैं। कोई एक आदमी किसी प्रकार का एक आवेदन दे दे और सरकार उसके ऊपर अमल करके पत्र जारी कर दे, ऐसा तो नहीं होता है। सरकार को प्रक्रिया के तहत ही चलना पड़ता है। असम के उरांव, मुंडा, संथाल, जो अन्य राज्यों में एसटी हैं, असम में नहीं हैं और लंबे समय से एसटी की मांग कर रहे हैं। लेकिन उसके ऊपर तो सरकार ऐसी तत्परता नहीं दिखा रही है, जैसा मणिपुर के केवल एक व्यक्ति के आवेदन पर दिखा रही है। सरकार की इस तरह की तत्परता चिंताजनक है कि किसी एक आदमी ने किसी समुदाय को हटाने की मांग कर दिया और सरकार उसके आलोक में पत्र जारी कर दिया।”
अर्जुन इंदवार कहते हैं कि “मूलनिवासी होने की शर्त के आधार पर नहीं, लोकुर कमिटी के मापदंडों के आधार पर किसी समुदाय को एसटी का दर्जा दिया जाता है।”
एसटी के लिए तय मापदंड
संविधान में अनुसूचित जनजाति की श्रेणी के निर्धारण के लिए कोई मानदंड निर्दिष्ट नहीं है। हालांकि लोकुर कमिटी (1965) द्वारा निर्धारित पांच विशेषताएं– आदिम आचरण के संकेत, विशिष्ट संस्कृति, बड़े पैमाने पर समुदाय के साथ संपर्क करने में संकोच, भौगोलिक अलगाव और पिछड़ापन को एसटी निर्धारण के लिए मान्यता दी गई है।
यह भी उल्लेखनीय है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार 2014 में सत्ता में आने के तुरंत बाद एक आंतरिक समिति की रिपोर्ट के आधार पर अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने के लोकुर कमिटी के मानदंडों को बदलने का एक प्रस्ताव जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा लाया गया था। लगभग आठ वर्षों तक इस पर विचार करने के बाद, मंत्रालय ने 2022 में उस प्रस्ताव को रोक दिया और कहा कि दशकों पुराने मानदंडों के साथ छेड़छाड़ करने की कोई योजना नहीं है।
इतना ही नहीं, थौनाओजम द्वारा उल्लेखित सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अवलोकन से पता चलता है कि मामले का जनजाति की परिभाषा तय करने से कोई लेना-देना नहीं है। यह महाराष्ट्र में एक आदिवासी महिला के खिलाफ अत्याचार के मामले में एक आपराधिक अपील थी। सुप्रीम कोर्ट ने सजा को बरकरार रखा था और इस प्रक्रिया में महज टिप्पणी की थी कि आज के आदिवासी ही भारत के मूलनिवासियों के वंशज हैं।
मैतेई के एसटी दर्जा का मांग पूर्व में हो चुका है खारिज
जिस महेश्वर थौनाओजम के ज्ञापन के आधार पर केंद्र सरकार ने चिन कुकी को एसटी की सूची बाहर करने के लिए मणिपुर सरकार से प्रस्ताव मांगा है, उसकी पोल उसके इस दावे से खुल जाती है कि मैतेई मणिपुर की आदिवासी जनजातियों के वंशज हैं। जबकि अंग्रेजी दैनिक ‘द हिंदू’ द्वारा 17 अक्टूबर, 2023 को प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि मैतेई समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने के प्रस्ताव की दो बार जांच की गई और इसे खारिज कर दिया गया– पहली बार, 1982 में, भारत के रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय द्वारा; और दूसरी बार, 2001 में, मणिपुर सरकार द्वारा।
‘द हिंदू’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि “केंद्र और मणिपुर सरकार ने राज्य में चल रहे जातीय संघर्ष के दौरान इस जानकारी को सार्वजनिक नहीं किया और न ही इन रिकॉर्डों को मैतेई को एसटी का दर्जा दिए जाने संबंधी याचिका की सुनवाई के दौरान मणिपुर उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया। इन रिकॉर्डों को भारत सरकार के जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अधिकारियों ने अप्रैल, 2023 के अंत में ढूंढ निकाला। यह मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा मैतेई समुदाय को एसटी दर्जा दिए जाने की अनुशंसा संबंधी आदेश देने के बाद हुआ। इस आदेश के बाद मणिपुर राज्य में हिंसा फैल गई।”
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि “सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत प्राप्त रिकॉर्ड से पता चलता है कि आरजीआई के कार्यालय ने 1982 में गृह मंत्रालय के अनुरोध पर एसटी सूची में मैतेईयों को शामिल करने पर गौर किया था। इसमें पाया गया कि, ‘उपलब्ध जानकारी’ के आधार पर, मैतेई समुदाय में ‘आदिवासी विशेषताएं नहीं दिखती हैं’, और कहा कि यह समावेशन के पक्ष में नहीं है। इसमें कहा गया है कि ऐतिहासिक रूप से, इस शब्द [मैतेई] का इस्तेमाल ‘मणिपुर घाटी में गैर-आदिवासी आबादी’ को संबोधित करने के लिए किया गया था।”
“लगभग 20 साल बाद, जब तत्कालीन सामाजिक न्याय मंत्रालय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की एससी/एसटी सूचियों की समीक्षा कर रहा था, तो उसने मणिपुर सरकार से सिफारिशें मांगी थीं। जवाब में, मणिपुर के जनजातीय विकास विभाग ने 3 जनवरी, 2001 को केंद्र को बताया था कि वह मैतेईयों की स्थिति पर आरजीआई कार्यालय की 1982 की राय से सहमत है।
“तत्कालीन मुख्यमंत्री डब्लू. निपामचा सिंह के नेतृत्व वाली मणिपुर सरकार ने कहा था कि मैतेई समुदाय ‘मणिपुर में वर्चस्वशाली समूह’ था और इसे एसटी की सूची में शामिल करने की आवश्यकता नहीं है। इसमें कहा गया है कि मैतेई लोग हिंदू थे और ‘हिंदू जातियों की सीढ़ी में क्षत्रिय जाति का दर्जा मानते थे’। साथ में यह भी कहा गया कि उन्हें पहले से ही अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में सूचीबद्ध किया गया था।”
कटघरे में अठावले की पार्टी
इस पूरे प्रकरण में केंद्रीय मंत्री रामदस अठावले की पार्टी रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई) कटघरे में है। वजह यह कि केंद्र सरकार ने जिस महेश्वर थौनाओजम के ज्ञापन पर तत्परता दिखाई है, वह आरपीआई के राष्ट्रीय महासचिव हैं। यह वही पार्टी है, जिसे एक मजबूत राजनीतिक विकल्प के रूप में स्थापित होने का सपना डॉ. आंबेडकर ने देखा था।
बहरहाल, ऐसा पहली बार हो रहा है जब किसी राज्य में एक समुदाय को एसटी की सूची से निकालने और दूसरे समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने की बात हो रही है। इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा तत्परता दिखाना भी गंभीर सवाल खड़े करता है।
(संपादन : नवल/अनिल)
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