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मायावती आख़िर किधर जा सकती हैं?

समाजवादी पार्टी के पास अभी भी तीस सीट हैं, जिनपर वह मोलभाव कर सकती है। सियासी जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव इन सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान करके बसपा के गठबंधन में आने का रास्ता बंद नहीं करना चाहते। बता रहे हैं सैयद जै़गम मुर्तजा

क्या बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती सच में अकेले लोकसभा चुनाव लड़ेंगी या फिर ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा बनेंगी? यह एक ऐसा सवाल है जो सियासत में दिलचस्पी रखने वाले हर व्यक्ति की ज़बान पर है, लेकिन इसका जवाब सिर्फ मायावती के ही पास है। उनके दिमाग़ में आख़िर क्या चल रहा है, कोई नहीं जानता।

पिछले कुछ दिनों से बसपा प्रमुख को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं और अफवाहें सियासी गलियारे में हैं। इनमें एक है कि मायावती चुनावों के आधिकारिक ऐलान होने का इंतज़ार कर रही हैं और आचार संहिता लगते ही अपने पत्ते खोल देंगीं। सियासी गलियारों में ख़बरें हैं कि अंदर ही अंदर बहुत कुछ पक रहा है, लेकिन हालात ऐसे हैं कि कोई इस बारे में जुबान नहीं खोल रहा। लगता है कोई भी जल्दबाज़ी में नहीं है। न मायावती, न अखिलेश यादव और न ही कांग्रेस पार्टी।

मायावती के ‘इंडिया’ गठबंधन में आने की चर्चा नई नहीं है। हालांकि मायावती कम-से-कम दो बार यह ऐलान कर चुकी हैं कि उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी। यानी बसपा न एनडीए का हिस्सा बनेगी और ‘इंडिया’ गठबंधन का। लेकिन इस बीच उनकी पार्टी ने तेलंगाना में बीआरएस के साथ चुनावी गठबंधन का ऐलान कर दिया। हालांकि इस गठबंधन को लेकर बीआरएस प्रमुख और तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की ‘डील’ तेलंगाना की प्रादेशिक इकाई से हुई है। बसपा को गठबंधन में एक सीट मिली है और सूत्रों का कहना है कि पार्टी के तेलंगाना प्रदेश के अध्यक्ष आर.एस. प्रवीण कुमार गठबंधन के उम्मीदवार हो सकते हैं। 

हालांकि इस गठबंधन पर अभी मायावती या उनके घोषित उत्तराधिकारी आकाश आनंद का कोई बयान नहीं आया है। दूसरी तरफ के. चंद्रशेखर राव ने भी माना है कि उनकी इस मामले में मायावती से अभी तक भी कोई सीधी बात नहीं हुई है। इसी बीच एक और ख़बर आई, जिससे लगा कि मायावती की पार्टी ‘इंडिया’ गठबंधन से दूर जा रही है। फरीदाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान आकाश आनंद पहली बार सुरक्षा गार्डों से घिरे नज़र आए तो खुलासा हुआ कि एक महीना पहले ही केंद्र सरकार ने उन्हें ‘वाई प्लस’ सुरक्षा मुहैया कराई है। लेकिन मायावती और उनकी सियासत को जानने वाले कहते हैं कि यह बहुत छोटी-छोटी बातें हैं। मायावती ऐसी चीज़ों से नहीं बहलने या बहकने वालीं।

मायावती, बसपा प्रमुख

वापस समाजवादी पार्टी और ‘इंडिया’ गठबंधन की तरफ आते हैं। समाजवादी पार्टी के पास गठबंधन में कुल 63 सीट आईं। इनमें तीन सीट समाजवादी पार्टी अपना दल, महान दल, और आज़ाद समाज पार्टी जैसे छोटे दलों को साधने में कर सकती है। समाजवादी पार्टी ने अबतक कुल 31 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया है। इनमें से एक, संभल के शफीक़ुर्रहमान बर्क़ का इस दौरान निधन हो गया है। यानी समाजवादी पार्टी के पास अभी भी तीस सीट हैं, जिनपर वह मोलभाव कर सकती है। सियासी जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव इन सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान करके बसपा के गठबंधन में आने का रास्ता बंद नहीं करना चाहते।

लेकिन मायावती के मना करने के बावजूद उनके ‘इंडिया’ गठबंधन में आने की चर्चाएं आख़िर आई कहां से? 

ख़बर है कि कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने गतिरोध तोड़ने के लिए ख़ुद मायावती को फोन किया। कांग्रेस के सूत्रों की मानें तो फोन पर मायावती ने कोई आश्वासन तो नहीं दिया, लेकिन उनका स्वर रूखा नहीं था। इसके अलावा एक अहम ख़बर यह है कि मायावती ने ख़ुद फोन करके कुछ सीटों पर उम्मीदवारों से चुनावी तैयारी प्रारंभ करने को कहा है। इनमें बिजनौर, नगीना, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, आगरा, हाथरस, धौरहरा, मोहनलालगंज, जालौन और अकबरपुर शामिल हैं।

लेकिन मायावती अभी उन सीटों पर कुछ बोलने से बच रही हैं, जहां समाजवादी पार्टी या कांग्रेस की मज़बूत दावेदारी है। हालांकि वह ‘इंडिया’ गठबंधन में आईं तो सहारनपुर, अमरोहा, घोसी और ग़ाज़ीपुर जैसी सीटों पर पेंच फंसेगा, जहां 2019 में उनकी पार्टी की जीत हुई थी। 

मगर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेता मानकर चल रहे हैं कि मायावती को ‘इंडिया’ गठबंधन में आने का फायदा तो है। इससे गठबंधन भी मज़बूत होगा। एक तो इसके चलते मुसलमान वोटों का बंटवारा नहीं होगा, दूसरे दलितों को भी एक मज़बूत मंच मिलेगा। इस बार ज़मीन पर जाट बनाम जाटव वाला गतिरोध भी नहीं है, क्योंकि आरएलडी गठबंधन से बाहर है। वर्ष 2019 में इसके चलते दलित गठबंधन से दूर हो गए थे। सबसे बड़ा फायदा यह है कि समाजवादी पार्टी और बसपा के साथ आने से दलित और पिछड़ों को मजबूत विकल्प मिल जाएगा, क्योंकि इस बार हालात 2019 से अलग हैं।

बहरहाल, फायदे-नुक़सान अपनी जगह हैं, लेकिन मायावती का मिज़ाज अपनी जगह।  बसपा के सांसदों को तोड़ने और कांग्रेस, सपा में शामिल करने पर वह किस तरह का बर्ताव करेंगी, कोई नहीं जानता। मायावती के अपने गुणा-भाग हैं। लेकिन उनकी अपनी परेशानियां भी हैं। बसपा के पास इस बार चेहरों का अभाव है। पार्टी के पास अस्सी सीटों पर लड़ने के लिए मज़बूत उम्मीदवार नहीं हैं। उसे भाजपा, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के उन नेताओं से उम्मीद हैं, जो टिकट कटने पर उनकी तरफ आ सकते हैं। ऐसे में अगर समाजवादी पार्टी यूपी में 25 सीट और कांग्रेस यूपी के बाहर 5 से 8 सीट बसपा को देने पर राज़ी हो जाएं तो बात बन भी सकती है। 

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)

लेखक के बारे में

सैयद ज़ैग़म मुर्तज़ा

उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में जन्मे सैयद ज़ैग़़म मुर्तज़ा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन और मॉस कम्यूनिकेशन में परास्नातक किया है। वे फिल्हाल दिल्ली में बतौर स्वतंत्र पत्रकार कार्य कर रहे हैं। उनके लेख विभिन्न समाचार पत्र, पत्रिका और न्यूज़ पोर्टलों पर प्रकाशित होते रहे हैं।

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