देश में चुनाव आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव की घोषणा की जा चुकी है। तदनुसार, महाराष्ट्र में कुल पांच चरणों में चुनाव संपन्न होंगे। चुनावों की घोषणा के साथ ही विभिन्न दलों और गठबंधनों के बीच खींचतान शुरू हो गई है। महाराष्ट्र में मुख्य रूप से दो गठबंधन हैं। उनमें से एक महाविकास आघाड़ी (इंडिया गठबंधन) है, जिसमें शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के अलावा कांग्रेस शामिल है। दूसरा गठबंधन भाजपा के नेतृत्व वाली है, जिसमें शिवसेना (शिंदे गुट) और राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजित पवार गुट) शामिल है। इन दोनों गठबंधनों के अलावा एक महत्वपूर्ण घटक वंचित बहुजन आघाड़ी है, जिसके मुखिया प्रकाश आंबेडकर हैं। पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह ही इसबार भी वंचित बहुजन आघाड़ी असरदार साबित हो सकती है।
आघाड़ी के नेता प्रकाश आंबेडकर ने अपनी ओर से सात उम्मीदवारों की सूची 27 मार्च को जारी कर दी। यह पूछने पर कि वंचित बहुजन आघाड़ी कुल कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी, आंबेडकर ने कहा कि अभी यह फाइनल नहीं हुआ है।
महाराष्ट्र में वंचित बहुजन आघाड़ी की राजनीतिक हैसियत को समझने के लिए चुनावी आंकड़ों पर नजर डालना जरूरी है। वर्ष 2014 और वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनावों के आंकड़ों के अनुसार, दोनों चुनावों में भाजपा को 23-23 सीटों के साथ क्रमश: 27.6 और 27.8 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि शिवसेना को 18-18 सीटों के साथ क्रमश: 20.8 और 23.5 प्रतिशत वोट हासिल हुआ।
दूसरी ओर कांग्रेस के लिए दोनों चुनाव अच्छे नहीं रहे। 2014 के चुनाव में, कांग्रेस केवल दो सीटें जीत सकी और 2019 में विदर्भ से केवल एक सीट जीत पाई। इसके बावजूद कांग्रेस का वोट प्रतिशत क्रमश: 18.3 प्रतिशत और 16.4 प्रतिशत था। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को दोनों चुनावों में 4-4 सीटें मिली और मतों में उसकी हिस्सेदारी क्रमश: 16.1 प्रतिशत और 15.7 प्रतिशत रहा था। इस तरह हम पाते हैं कि दोनों पक्षों (कांग्रेस और राष्ट्रवादी) के वोटों के प्रतिशत में क्रमश: 1.9 प्रतिशत और 0.4 प्रतिशत की गिरावट हुई, लेकिन भाजपा और शिवसेना के वोट प्रतिशत में क्रमश: 0.2 प्रतिशत और 2.7 प्रतिशत की वृद्धि तो हुई लेकिन सीटों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं हुई।
2014 के लोकसभा चुनाव के समय वंचित बहुजन आघाड़ी स्थापित नहीं हुई थी। इसीलिए प्रकाश आंबेडकर ने भारीप बहुजन महासंघ के तहत 23 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। उस बार उन्हें केवल 0.7 प्रतिशत मत यानी कुल 3,60,854 वोट मिले थे। लेकिन वंचित बहुजन आघाड़ी के गठन के बाद जब प्रकाश आंबेडकर 2019 के लोकसभा चुनाव में उतरे तब उन्हें 7 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए। यह एक बड़ा बदलाव था। वंचित बहुजन आघाड़ी ने 2019 के लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी के प्रत्याशियों को हराने में अहम भूमिका निभायी थी। इसका अनुमान इसीसे लगाया जा सकता है कि 2019 के लोकसभा में चुनाव में 14 सीटों पर वंचित बहुजन आघाड़ी के उम्मीदवारों को 80,000 से अधिक वोट मिले थे। परिणामस्वरूप, कांग्रेस-एनसीपी को 14 सीटों पर शिकस्त झेलनी पड़ी। हालांकि वंचित बहुजन आघाड़ी के भी सभी उम्मीदवार हार गए। उसके लिए खास यह रहा कि 19 लोकसभा क्षेत्रों में वह तीसरे स्थान पर रही और केवल एक अकोला लोकसभा क्षेत्र में वह दूसरे स्थान पर रही, जहां से प्रकाश आंबेडकर स्वयं उम्मीदवार थे। वहीं ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को औरंगाबाद सीट पर कामयाबी मिली थी।
वैसे इस बार सियासी समीकरण बिल्कुल अलग हैं। शिवसेना और एनसीपी दो खेमों में बंट गए हैं। दोनों पक्षों का मूल नाम और चुनावी प्रतीक विभाजित समूह में चला गया। कई विधायकों, सांसदों, कॉरपोरेटर्स और पार्टी कार्यकर्ता एकनाथ शिंदे और अजीत पवार के गुटों में चले गए है। फिर भी, इन दोनों विभाजित समूहों के पास व्यापक प्रभाव रखनेवाला नेता नहीं है। उद्धव ठाकरे और शरद पवार के चुनावी यात्राओं में बड़ा जनसैलाब दिखाई देता है। अब यह देखना होगा कि क्या यह जनसैलाब वोटों में तब्दील हो पाएगा?
(संपादन : राजन/नवल/अनिल)
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