बिहार में लोकसभा चुनाव के दो चरण पूरे हो चुके हैं। तीसरे चरण का मतदान आगामी 7 मई को होने जा रहा है। पहले चरण में जमुई, गया, नवादा और औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्रों में बीते 19 अप्रैल को मतदान संपन्न हुआ। जबकि किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका में दूसरे दौर में 26 अप्रैल को वोट डाले गये। दो चरणों के मतदान के बाद मिल रही ग्राउंड रिपोर्ट बता रही है कि भाजपा के लिए इस बार बेड़ा पार करना मुश्किल है। यह इसके बावजूद कि पुराने दो मित्र नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार फिर से एक साथ हैं, लेकिन उनके बीच भारतीय संविधान है, जिसे बदलने के लिए भाजपा ‘अबकी बार चार सौ पार’ का नारा दे रही है।
सवाल उठता है कि क्या इस चुनाव में नरेंद्र मोदी का मैजिक चल नहीं पा रहा है? क्या ‘अबकी बार 400 पार’ का उद्घोष जमीन पर असर नहीं दिखा रहा है? बिहार के लिहाज से देखें तो इन दोनों सवालों का जवाब है– हां!
आखिरकार ऐसा क्या हुआ जो मोदी का मैजिक पिटता हुआ नजर आ रहा है! इसे समझने के लिए सारण (छपरा) की एक चुनावी सभा में लालू यादव के भाषण पर गौर कीजिए। मंच पर खड़े लालू यादव के हाथ में संविधान था, जिसे दिखाते हुए लालू लोगों से कह रहे थे– “भाजपा बाबा साहब का संविधान बदलना चाहती है। लोकतंत्र को खत्म करना चाहती है। पिछड़े वर्गों के हक को छिनना चाहती है। हम सबको एकजुट रहना है। जागरूक रहना है। देश को बचाना है, संविधान को बचाना है।”
जो बात लालू यादव बिहार में कह रहे थे, वही बात कांग्रेस नेता राहुल गांधी महाराष्ट्र में अमरावती की सभा में बोल रहे थे। राहुल कह रहे थे– “पहली बार किसी राजनीतिक पार्टी ने संविधान पर आक्रमण किया है। संविधान को खत्म करने की कोशिश की जा रही है।” लालू के जैसे ही भीड़ को संविधान की प्रति दिखाते हुए राहुल कह रहे थे कि यह संविधान गरीबों, पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों की आवाज है, जिसे नरेंद्र मोदी, आरएसएस, भाजपा खत्म करना चाहते हैं।
लालू और राहुल दोनों के मुताबिक, भाजपा और नरेंद्र मोदी से लोकतंत्र और संविधान को खतरा है और उसकी रक्षा का सवाल लोकसभा चुनाव के सेंटर स्टेज पर आ खड़ा हुआ है। लोकशाही और तानाशाही के बीच का संघर्ष इस देश ने पहले भी देखा है। याद कीजिए 1977 का आम चुनाव, जिसमें तानाशाही हारी थी। उसका केंद्र तो बिहार ही बना था।
दूसरी ओर भाजपा पर संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने के आरोपों पर प्रधानमंत्री और भाजपा में उनके बाद दूसरी कतार के नेता भी सफाई देते फिर रहे हैं। प्रधानमंत्री पलटवार करते हुए कह रहे हैं कि कांग्रेस और ‘इंडिया’ गठबंधन वाले पिछड़ों के हिस्से का आरक्षण मुसलमानों को देना चाह रहे हैं। इसके लिए वे कर्नाटक का उदाहरण दे रहे हैं। लेकिन यहीं पर तेजस्वी यादव प्रधानमंत्री को याद दिलाते हैं कि जिस कर्पूरी ठाकुर को अभी-अभी भारत रत्न दिया गया है, वह जब मुख्यमंत्री बने थे तो उन्होंने सामाजिक रूप से पिछड़े हुए सभी जाति और धर्म के लोगों को आरक्षण दिया था। तेजस्वी ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति से उम्मीद की जाती है कि वह बोलने से पहले तथ्यों पर गौर कर लें।
जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि नरेंद्र मोदी दस साल से सरकार चला रहे हैं। कभी उन्होंने संविधान को छुआ है क्या?
उधर इस चुनाव में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने भाषणों और फिसलती जुबान की वजह से हास्यास्पद हो गये हैं। वे हाशिए पर दिखाई दे रहे हैं। मोदी के सामने उन्हें बार-बार सफाई देनी पड़ रही है कि अब वह कहीं नहीं जा रहे हैं। लेकिन जब नरेंद्र मोदी मुसलमानों को खुलकर निशाना बना रहे हैं, तब अपने भाषणो में खुद को मुसलमानों का हितैषी बता कर नीतीश नरेंद्र मोदी को असहज कर दे रहे थे। ऐसे में मोदी ने नीतीश के साथ मंच साझा करना छोड़ दिया है। नीतीश अकेले प्रचार कर रहे हैं। इस दौरान उनकी जुबान कई दफे फिसली और ‘अबकी बार 400 पार” के नारे का मज़ाक बनता दिखा, जब उन्होंने चार हजार से अधिक सीटें जीतने की बात कही। इसके अलावा नीतीश कुमार ने जाति जनगणना, पिछड़ों का आरक्षण बढ़ाने और उसे संविधान की नौंवी अनुसूची में डालने की बात करना छोड़ दिया है।
बिहार में चुनावी मुकाबला नरेंद्र मोदी बनाम तेजस्वी यादव हो गया है। विपक्ष के नारे है– ‘संविधान और लोकतंत्र बचाना है, भाजपा को भगाना है’, ‘भाजपा भगाओ, देश बचाओ!’ विपक्ष के इस नारे में कितना दम है, इसका अंदाजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के बड़े नेताओं के भाषणों में दिख रही बौखलाहट से समझा जा सकता है।
विपक्ष के मुकाबले खुद को संविधान का सबसे बड़ा पहरुआ साबित करने की हड़बड़ी में प्रधानमंत्री एक चुनावी सभा में कह गये कि अगर बाबा साहब आंबेडकर भी आ जाएं तो संविधान को खत्म नहीं कर सकते। यह उपमा अपने आप में हास्यास्पद है, क्योंकि संविधान को चुनौती अंबेडकरवादियों से नहीं, बल्कि सावरकरवादियों से रहा है। ऐसे में प्रधानमंत्री का यह कहना कि बाबा साहब आंबेडकर भी आ जाएं तो संविधान को बदल नहीं पायेंगे, यह डॉ. आंबेडकर के संघर्ष और उनकी विरासत का अपमान है।
बहरहाल, दलितों, पिछड़ों और आरक्षण का नॅरेटिव कैसे सेंटर स्टेज पर है, इसे समझने के लिए प्रधानमंत्री को तेजस्वी यादव के क्जवाब पर गौर कीजिए– “प्रधानमंत्री जी को दलितों/पिछड़ों/अतिपिछड़ों के जीवन से जुड़े आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर बात करने से पूर्व पर्याप्त जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। एक प्रधानमंत्री को संविधान और आरक्षण जैसे मुद्दे पर जानकारी का अभाव हो, यह उचित प्रतीत नहीं होता है। सर्वप्रथम प्रधानमंत्री जी को भारत रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर जी के ‘आरक्षण मॉडल’ को अच्छे से समझ कर उसका अध्ययन करना चाहिए। सबसे पहले 𝟏𝟗78 में बिहार में जननायक कर्पूरी ठाकुर जी ने सभी धर्मों की सामाजिक रूप से पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की थी। मंडल कमीशन की रिपोर्ट में भी सभी धर्मों की सामाजिक रूप से पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की सिफारिशें है। पीएम को यह भी नहीं पता कि उनमें से कुछ सिफारिशें लागू है।”
तेजस्वी का यह जवाब प्रधानमंत्री के उस आरोप पर आया, जिसमें वह विपक्ष पर खासकर कांग्रेस पर पिछड़ों का आरक्षण मुसलमानों को दे देने की बात कह रहे थे।
कुल मिलाकर संविधान और लोकतंत्र का सवाल विपक्ष का मुख्य एजेंडा बन गया है। कांग्रेस से लेकर वामपंथी और राजद से लेकर शिवसेना तक बाबा साहब का संविधान और लोकतंत्र बचाने के लिए आवाज उठा रहे हैं।
भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य कहते हैं– “शायद पहली बार आम चुनाव का केंद्रीय विषय संविधान को बचाना है। और यह अच्छी बात है कि आज संविधान, लोकतंत्र व आरक्षण को बचाने के सवाल पर देश की जनता लड़ रही है और इस बार का चुनाव एक जनांदोलन है। आज जब भाजपा के कई नेता खुलकर संविधान बदलने की बात कह रहे हैं, मोदी जी अपनी पार्टी के वैसे नेताओं पर कार्रवाई नहीं करते, बल्कि कहते हैं कि आंबेडकर भी आ जाएं तो संविधान नहीं बदल सकते। यह चोर की दाढ़ी में तिनका है। उन्हें कहना चाहिए था कि गोलवलकर और सावरकर भी आज जाएं तो संविधान नहीं बदलेगा।”
सर्वविदित है कि फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) से उनके निवर्तमान सांसद व लोकसभा 2024 के चुनाव के उम्मीदवार लल्लू सिंह कह रहे थे कि चूंकि भाजपा को संविधान बलदना है और नया संविधान बनाना है, इसलिए 400 सीटें चाहिए। सामान्य बहुमत से यह नहीं हो सकता। इसके पहले भाजपा सांसद अनंत हेगड़े भी ऐसा वक्तव्य दे चुके हैं।
जाहिर सी बात है कि भाजपा का संकल्प पत्र भारत के संविधान को बदल देने की गहरी साजिश है। भाजपा के शासन में लगातार बढ़ती तानाशाही कोई एक घटना तक सीमित नहीं है बल्कि यह लंबे दौर से गुजरते हुए यहां तक पहुंची। जहां संविधान की मूल भावना का उल्लंघन करते हुए नागरिकता को धार्मिक आधार पर विभाजित किया जा रहा है। आरक्षण पर हमला किया जा रहा है। इलेक्टोरेल बांड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती दी जा रही है। मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति हेतु पैनल से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की उपस्थिति के प्रावधान को खत्म कर दिया गया है। क्या यह सब इसके प्रमाण नहीं हैं कि नरेंद्र मोदी के राज में संविधान के नियमों की धज्जियां उड़ा दी गईं? फिर इससे कौन इंकार कर सकता है कि भाजपा की विचारधारा आंबेडकर के विचारों के खिलाफ रही है। वह सामाजिक न्याय के खिलाफ है। इसलिए वे संविधान बदलने के लिए बेचैन हैं। लालू प्रसाद के शब्दों में कहें तो भाजपा के पास मनुस्मृति है, जिससे वह संविधान को बदलना चाहती है। और यह कि संविधान को खत्म करने की बात अब कोई हवा हवाई बात नहीं है। इसको इसलिए समाप्त करने की कोशिश हो रही है ताकि दलितों-पिछड़ों-अल्पसंख्यकों को मिले अधिकार खत्म कर दिए जाएं।
(संपादन : नवल/अनिल)