देखते ही देखते एक अर्द्धसैनिक बल में सिपाही कुलविंदर कौर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की राजनीतिक इकाई भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नवनिर्वाचित सांसद और भड़काऊ बातें कहने में माहिर बॉलीवुड कलाकार कंगना रनौत से ज्यादा लोकप्रिय हो गईं। कौर को पंजाब में घर-घर पहचाना जाने लगा और देश-दुनिया में भी उनका नाम हुआ। कुलविंदर उन किसानों की नायिका बन गईं, जिन्होंने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली आरएसएस-भाजपा सरकार के खिलाफ दो साल लंबी लड़ाई लड़ी और जीती।
उस दौरान रनौत ने किसानों का गुस्सा बढ़ाने में भरपूर योगदान दिया। पंजाब के निवासियों और विशेषकर किसानों के लिए पंजाबियत का अर्थ है– राष्ट्रवाद, आत्मसम्मान और आत्मबलिदान। क्रांतिकारी स्वाधीनता संग्राम सेनानी भगत सिंह ने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। चंडीगढ़ हवाईअड्डे, जिसका नाम उनके नाम पर रखा गया है, में कुलविंदर कौर ने एक असाधारण काम किया। उन्होंने किसानों के संघर्ष को सार्वजनिक रूप से अपमानित और लांछित करने के लिए रनौत, जो अब भाजपा सांसद हैं, से बदला लिया।
कौर पंजाब के एक किसान की बेटी हैं। उन्होंने कड़ी मेहनत से केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) में नौकरी हासिल की। वे चंडीगढ़ के शहीद भगत सिंह हवाईअड्डे पर तैनात थीं। यह हवाईअड्डा हरियाणा की सीमा के अंदर है। उनकी मां वीर कौर सहित कुलविंदर का पूरा परिवार आरएसएस-भाजपा सरकार के विरुद्ध सन् 2020 में चलाए गए ऐतिहासिक किसान आंदोलन में शामिल हुआ था। यह आंदोलन उन तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किया गया था, जिनका उद्देश्य देश के संपूर्ण कृषि व्यापार को अडाणी और अंबानी व्यापारिक समूहों को सौंपना था।
रनौत आरएसएस-समर्थक हिंदी फिल्म अभिनेत्री हैं। उन्हें भाजपा में भर्ती किया गया और हिमाचल प्रदेश में मंडी से पार्टी का टिकट दिया गया। मंडी में रनौत की जाति राजपूत (क्षत्रिय) की अच्छी खासी आबादी है और वे वहां से आसानी से चुनाव जीत गईं।
गत 6 जून, 2024 को वे चंडीगढ़ से दिल्ली जा रही थीं। ऐसा बताया जाता है कि हवाईअड्डे पर कौर और रनौत के बीच झूमा-झटकी हुई। रनौत ने एक वीडियो संदेश में आरोप लगाया कि सुरक्षा जांच के दौरान कौर ने उन्हें एक तमाचा रसीद किया। उन्होंने यह नहीं बताया कि झूमा-झटकी की वजह क्या थी। इस वीडियो के सार्वजनिक हो जाने के बाद कौर को निलंबित कर दिया गया और हरियाणा पुलिस ने उनके खिलाफ मामला दर्ज कर लिया।
इसी वीडियो में रनौत ने कहा कि पंजाब में आतंकवाद बढ़ रहा है। शायद वे यह कहना चाह रही थीं कि कौर ने जो किया वह पंजाब में बढ़ते आतंकवाद का नतीजा है। पंजाब की जनता, और विशेषकर वहां के किसानों, को यह बेजा आरोप मंज़ूर नहीं था और वहां विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। गत 9 जून को किसानों ने मोहाली में विशाल विरोध प्रदर्शन आयोजित किया।
रनौत के साथ हवाईअड्डे पर अपनी बेटी के व्यवहार का बचाव करते हुए कुलविंदर कौर की मां वीर कौर ने कहा– “कंगना ने गलत-सलत बोलकर उसे (कुलविंदर) भड़काया होगा।” उनका दावा था कि कुलविंदर अकारण ऐसा नहीं करेगी। किसान नेताओं ने यह आरोप भी लगाया कि “जब कुलविंदर ने कंगना से जांच के लिए उनका फ़ोन और पर्स देने के लिए कहा तो वे भड़क गईं और कथित रूप से वर्दी की नेमप्लेट पर उनका नाम (कौर) पढ़कर, उन्हें खालिस्तानी कहा।”
ठीक-ठीक क्या हुआ था और क्या नहीं, यह तो जांच से ही पता चलेगा। हरियाणा सरकार ने ‘झूमा-झटकी’ की पड़ताल के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित कर दिया है।
रनौत एक मध्यमवर्गीय राजपूत परिवार से हैं, मगर फिल्म जगत में लोकप्रियता हासिल करने के बाद से वे कट्टर आरएसएस कार्यकर्ता की भाषा में बात करने लगीं हैं। वे आरएसएस-मार्का अभिनेत्री मानी जाती हैं। केंद्र की आरएसएस-भाजपा सरकार ने विरोध प्रदर्शन कर रहे देश के अन्नदाता किसानों के साथ ऐसा व्यवहार किया, मानों वे देश के नागरिक ही न हों और कोई अ-भारतीय सामाजिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हों। देखा-देखी रनौत ने भी इसी भाषा में बात करनी शुरू कर दी।
बल्कि वे सरकार से भी दो कदम आगे बढ़ गईं। सन् 2020 में उन्होंने प्रदर्शनकारी किसानों को आतंकवादी बताया और अपने अधिकारों के लिए लड़ रही महिलाओं को “सौ रुपए में उपलब्ध औरतें” कहकर तंज कसा। हवाईअड्डे के सीसीटीवी फुटेज में कौर को यह कहते सुना जा सकता है कि उनकी मां ने किसानों के विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया था और कंगना ने यह कहकर उन्हें अपमानित किया कि वह 100 रुपए लेकर प्रदर्शन में भाग ले रही हैं। कौर ने बाद में यह भी कहा कि उन्होंने जो कुछ किया उसके लिए वे अपनी नौकरी खोने के लिए तैयार हैं।
रनौत इससे पहले बॉलीवुड में भी कई लोगों से भिड़ चुकी हैं। एक व्यक्ति के रूप में वे मनबढ़ू रूप से स्वतंत्र और व्यक्तिवादी नज़र आती हैं। आरएसएस व भाजपा सामान्यतः महिलाओं को स्वतंत्र रूप से सोचने-बोलने की स्वतंत्रता देने से परहेज़ करते हैं। उनका आदर्श परंपरावादी ‘हिंदू नारी’ है। मगर रनौत के मामले में उन्होंने अपनी लीक से हट कर उन्हें टिकट दिया।
आरएसएस व भाजपा को यह अच्छी तरह पता था कि रनौत ने कृषि कानूनों के खिलाफ संघर्षरत भारत के किसानों के बारे में अशिष्ट और अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया था। मगर फिर भी उन्होंने रनौत को अपनी पार्टी में लिया और आरएसएस/भाजपा की केंद्र सरकार उनका समर्थन करती रही। सन् 2020 में वे शिवसेना के संजय राउत से भिड़ गईं। इसके बाद भारत सरकार ने उन्हें ‘वाई’ श्रेणी की सुरक्षा उपलब्ध करवाई। अब वे उन्हें संसद में ले आए हैं और शपथ लेने के पहले ही उन्होंने विवाद खड़े करना शुरू कर दिया है।
रनौत आसानी से कथित थप्पड़ की निंदा कर इस मामले की इतिश्री कर सकती थीं। मगर वे कहां रुकने वाली थीं। उन्होंने पूरे पंजाब को आतंकवाद की नर्सरी बता दिया। किसी आरएसएस/भाजपा नेता ने यह नहीं कहा कि पूरे पंजाब को आतंकवाद से जोड़ना गलत है।
किसान आंदोलन का नेतृत्व पंजाबी जाट और शूद्र/ओबीसी/दलित (सिक्खों और गैर-सिक्खों) ने किया था। उसी समय से आरएसएस/भाजपा आंदोलनकारियों को खालिस्तानी बताती आ रही है। कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन इसलिए शुरू हुआ, क्योंकि ये कानून पूरे देश के अन्न उत्पादकों के लिए एक बड़ी समस्या थे। आरएसएस/भाजपा के शुभचिंतक और सांस्कृतिक नेता द्विज और गैर-कृषि पृष्ठभूमियों से हैं। वे इन आंदोलनकारियों पर इस तरह हमलावर हो गए जैसे वे मुसलमानों पर होते रहे हैं। आरएसएस/भाजपा नेतृत्व के इसी दृष्टिकोण ने रनौत का मन बढ़ाया।
रनौत ने प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ ट्वीट करना जारी रखा। दो साल तक चले इस ऐतिहासिक आंदोलन में करीब 700 लोग मारे गए हैं। अंतर्राष्ट्रीय सेलेब्रिटी रिहाना के ‘एक्स’ पर एक पोस्ट के जवाब में रनौत ने इस विश्व प्रसिद्ध गायिका को ‘मूर्ख’ बताया और कहा, “कोई भी इसके (किसान आंदोलन) के बारे में बात इसलिए नहीं कर रहा है, क्योंकि वे किसान नहीं, बल्कि आतंकवादी हैं जो देश को बांटना चाहते हैं ताकि चीन एक कमज़ोर और बिखरे हुए देश पर कब्ज़ा कर ले और उसे अमरीका की तरह अपना उपनिवेश बना ले … चुप रह बेवकूफ। हम तुम कमअक्लों की तरह अपना देश बेच नहीं रहे हैं।”
आज पूरा पंजाब रनौत के खिलाफ लामबंद हो गया है क्योंकि उन्होंने कौर के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करने की बजाय, पूरे प्रदेश को कठघरे में खड़ा कर दिया।
इस जून के आखिरी हफ्ते में अठारहवीं लोकसभा व राज्यसभा का सत्र शुरू होने वाला है और उसमें यह मुद्दा उठाया जा सकता है। संघ/भाजपा किसानों को सम्मान के हकदार राष्ट्रवादी मानने को तैयार नहीं है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि संघ/भाजपा न केवल मुसलमानों के खिलाफ हैं, वरन वे उन शूद्र/ओबीसी खाद्यान्न उत्पादकों के भी खिलाफ हैं जो उनके विचारधारात्मक एजेंडा को आगे बढ़ाने में सहायक नहीं हैं।
(यह आलेख मूल अंग्रेजी में वेब पत्रिका ‘न्यूजक्लिक’ द्वारा पूर्व में प्रकाशित व यहां हिंदी अनुवाद लेखक की सहमति से प्रकाशित, अनुवाद : अमरीश हरदेनिया, संपादन : राजन/नवल/अनिल)
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