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दुखद है सैकड़ों का जीवन सुखमय बनानेवाले कबीरपंथी सर्वोत्तम स्वरूप साहेब की उपेक्षा

सर्वोत्तम स्वरूप साहेब ने शिक्षा और समाजसेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देते हुए सद्गुरु कबीर साहेब के आदर्शों को साकार करने का एक और प्रयास किया। उन्होंने सद्गुरु पारख संस्थान छात्रावास पंडरी के नाम से सन् 1982 में छात्रावास का निर्माण करवाया और इसका संचालन भी किया। बता रहे हैं डॉ. संतोष कुमार

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर व इसके आसपास के कई जिलों में शायद ही कोई कबीरपंथी होगा, जिसने सद्गुरु सर्वोत्तम स्वरूप साहेब का नाम नहीं सुना होगा या फिर उनके द्वारा लिखित किताबों का अध्ययन नहीं किया होगा।

उन्होंने जीवन पर्यंत कबीर साहेब की ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाते हुए 1984-85 से एक आश्रम का संचालन किया है। इस आश्रम में उन्होंने सभी समाज खासकर अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग के निर्धन और गरीब बच्चों को तकनीकी शिक्षा के अलावा विद्यालयीन, महाविद्यालयीन और विश्वविद्यालयीन स्तर की शिक्षा प्रदान कराने का बीड़ा उठाया। इस महान उद्देश्य के चलते उन्होंने सैकड़ों बच्चों का भविष्य संवारने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके आश्रम में रहने वाले में से कई बच्चों ने अपने जीवन में उल्लेखनीय सफलताएं हासिल की हैं। वे आज विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं। लेकिन इसका दूसरा पक्ष यह कि अपने जीवन के अंतिम दौर में सर्वोत्तम स्वरूप साहेब दुखी और तकलीफ में गुजार रहे हैं।

सर्वोत्तम स्वरूप साहेब

सर्वोत्तम स्वरूप साहेब के इस प्रयास से न केवल शिक्षा के क्षेत्र में, बल्कि समाज में  समानता की भावना प्रबल हुई। उन्होंने अपने शिष्यों को केवल शिक्षा ही नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यों और समाज सेवा का महत्व भी समझाया। उनके मार्गदर्शन से, उनके शिष्य आज समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं।

कबीरपंथ से लेकर बुद्ध तक

सर्वोत्तम स्वरूप साहेब का जन्म 8 सिंतबर, 1950 में ग्राम बोहरडीह (साराडीह) थाना सुहेला, पलारी तहसील, जिला रायपुर, छत्तीसगढ़ में हुआ था। इन्होंने सन् 1966 में सद्गुरु सेवक साहेब से सद्गुरु रामलाल साहेब की पुस्तक ‘गुरु चेला संवाद’ पढ़ने के बाद दीक्षा ली तथा 1974 में गृह त्याग कर अपना जीवन पूर्णरूपेण परोपकार में लगा दिया। इस क्रम में इन्होंने कबीर साहेब की बीजक, तथागत गौतम बुद्ध के साहित्य और बहुजन समाज के क्रांतिकारी साहित्यों का अध्ययन कर प्रेरणा ली।

वर्तमान में सर्वोत्तम स्वरूप साहेब आश्रम में अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपने दोनों पैर, कमर और शारीरिक अक्षमता के कारण चलन-फिरना, खाना-पीना एवं बातचीत लगभग बंद कर चुके हैं। उनके द्वारा शिक्षित किए गए बच्चों ने लगभग उनसे आज मुंह मोड़ लिया हैं। जबकि उनके द्वारा अलग-अलग स्थानों में भी कबीर आश्रम निर्माण करवाया गया है, जिसमें नया रायपुर (गर्ल्स हॉस्टल) रसौटा (पलारी) और गुदगुदा (गुल्लू) में भी आश्रम और जमीन है, जहां बच्चों का अध्ययन व आवासन आज भी जारी है।

बहुजन साहित्य जगत को किया समृद्ध

सर्वोत्तम स्वरूप साहेब का साहित्यिक योगदान विस्तृत और बहुआयामी है, जिससे समाज को नई दृष्टि और प्रेरणा मिली है। उन्होंने कई महत्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखी और प्रकाशित करवाई। इनमें ‘गुरु घासीदास और सतनाम आंदोलन’, ‘विरक्त संत गुरु अमरदास’, और ‘कबीर बनाम तुलसी’ जैसी चर्चित और प्रसिद्ध पुस्तकें शामिल हैं, जिन्होंने पूरे इलाके में अपार लोकप्रियता हासिल की। इन पुस्तकों ने न केवल साहित्यिक जगत में एक नया आयाम जोड़ा, बल्कि समाज को इतिहास और संस्कृति के प्रति जागरूक भी किया। सर्वोत्तम स्वरूप साहेब अंग्रेजी, संस्कृत, हिंदी, छत्तीसगढ़ी आदि भाषाओं के ज्ञाता भी हैं। उनकी आठ पुस्तकें अभी अप्रकाशित हैं, जो निस्संदेह ज्ञानवर्द्धक, सामाजिक न्याय और जागरूकता के लिए काफी सार्थक साबित हो सकता है।

सर्वोत्तम स्वरूप साहेब द्वारा रचित कुछ पुस्तकों के आवरण पृष्ठ

दलित-बहुजनों के लिए छात्रावासों का निर्माण

सर्वोत्तम स्वरूप साहेब ने शिक्षा और समाजसेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देते हुए सद्गुरु कबीर साहेब के आदर्शों को साकार करने का एक और प्रयास किया। उन्होंने सद्गुरु पारख संस्थान छात्रावास पंडरी के नाम से सन् 1982 में छात्रावास का निर्माण करवाया और इसका संचालन भी किया, जिसमें 50 विद्यार्थी एक साथ रहकर ज्ञान अर्जन करते आ रहे हैं। इस महत्वाकांक्षी परियोजना का निर्माण सभी समाज से चंदा लेकर किया, जिसमें लोगों ने अपना अमूल्य योगदान भी दिया।

सर्वोत्तम स्वरूप साहेब के प्रयत्नों से निर्मित बालक छात्रावास जो पंडरी रायपुर में स्थित है। इसमें 20 कमरें हैं।

इस प्रकार उन्होंने न केवल शिक्षा का प्रसार किया, बल्कि समाज में समानता, एकता और सहयोग की भावना को भी प्रबल किया। इस तरह छात्रावास के निर्माण के पीछे उनकी सोच यह रही कि ग्रामीण इलाकों के सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को भी शिक्षा के समान अवसर प्राप्त हो सकें। उन्होंने देखा कि दलित-बहुजन समाज के कई होनहार छात्र न केवल संसाधनों की कमी के कारण शिक्षा से वंचित रह जाते हैं, बल्कि शिक्षा जगत से दूर ही हो जाते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने छात्रावास की स्थापना की, जहां छात्रों को निःशुल्क आवास, भोजन और अध्ययन की सुविधाएं प्रदान की जाती रही हैं। हालांकि ये छात्रावास अब उनकी अस्वस्थता के चलते न केवल बंद होने के कगार पर है, बल्कि जर्जर भी हो चुका है।

छात्रावास में हर वर्ष प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन

सर्वोत्तम स्वरूप साहेब प्रत्येक वर्ष छात्रावास में प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन भी करवाते रहे हैं ताकि प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे बच्चों को तैयारी में मदद और प्रेरणा मिल सके। इस प्रतियोगी परीक्षा में रायपुर शहर के सभी छात्रावासों के विद्यार्थी सम्मिलित होते हैं, जिसमें विद्यार्थियों को ईनाम स्वरूप कुछ सहयोग राशि भी प्रदान की जाती है। लेकिन पिछले साल से सर्वोत्तम स्वरूप साहेब के अस्वस्थ होने के कारण यह भी बंद हो चुका है।

बहरहाल, सर्वोत्तम स्वरूप साहेब का जीवन और कृतित्व हमें प्रेरणा देता है कि हम शिक्षा और समाजसेवा में निरंतर समर्पित रहें। हमें ऐसे महान व्यक्तियों का सम्मान करना और उनके याेगदानों को कभी नहीं भूलना चाहिए।

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

संतोष कुमार

लेखक श्री रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी रायपुर, छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता एवं जनसंचार संकाय में प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष हैं

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