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लू हाशिए के बाशिंदों के लिए मौत का फ़रमान है

उत्तर भारत में लू (हीटवेब) एक महामारी बन चुकी है, जो हर साल गर्मी के मौसम में सैकड़ों लोगों की जान लेकर ही मानती है। इस साल उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, ओडिशा में हीटवेब ने मई-जून महीने में तबाही मचाई है। पढ़ें, सुशील मानव की यह रपट

आधे अषाढ़ में बारिश की फुहार पड़ते ही ईंट-भट्ठे के मज़दूरों के चेहरे लटक आए हैं। वे लोग अब वापिस अपने देश लौट रहे हैं। हमने उनसे पूछा कि अषाढ़ की करेजा तर करने वाले इस महीने में मई-जून-सा क्यों मुरझाया हुआ है आप लोगों का चेहरा? जवाब में उन्होंने कहा– “ई अषाढ़ हमारे करेजे पर नहीं, चूल्हे पर बरस रही है।” विडंबना ही है कि जब तक सूरज तपता है तब तक इनका काम भी ख़ूब चलता है और जैसे ही सूरज की तपिश कम होती है, काम ठप्प हो जाता है। ईंट-भट्ठे और बालू खनन बंद होने के चलते निर्माण कार्य भी लगभग ठप्प ही हो चला है।

फिर यह सोचकर दिल दहल जाता है कि इस साल 45-50 डिग्री सेल्सियस के तापमान में ये लोग ईंट-भट्ठे पर ईंट पकाने का, या निर्माण स्थलों पर निर्माण का काम कैसे करते रहे होंगे? इन्होंने क्या-क्या यातनाएं झेली हाेंगी अपने शरीर पर? आखिर कौन हैं ये लोग, किस जाति और वर्ग से आते हैं, जो कम आय वाला प्रतिकूल काम करने के साथ ही जानलेवा तापमान को भी झेलते हैं?

भारतीय प्रबंधन संस्थान बेंगलुरु के प्रोफ़ेसर अर्पित शाह ‘जाति और व्यवसायिक ताप जोखिम के बीच संबंधों’ पर शोध कर रहे हैं। उनके शोध से पता चलता है कि भारत की आधुनिक बाज़ार अर्थव्यवस्था में जाति आधारित श्रम विभाजन अभी भी मौजूद है।

सेंटर फॉर लेबर रिसर्च एंड एक्शन की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक 21 भट्ठों के 903 श्रमिकों का सर्वेक्षण करके बताया कि यहां काम करने वाले 50 प्रतिशत से अधिक लोग दलित समुदाय के, 17 प्रतिशत आदिवासी और 27 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग के हैं।

इसी तरह निर्माण मज़दूर और सफाई कर्मचारी भी अधिकांशतः हाशिए के समाज के लोग होते हैं। फैक्ट्रियों में अत्य़धिक तापमान बॉयलर आदि पर काम करने वाले भी अधिकांशतः दलित ही होते हैं।

लू लगने के कुछ मामले और जाति

गत मई-जून में हालत यह थी कि जगह-जगह चलते-फिरते लोग गिरते और लाश में बदल जाते। सड़कों पर जगह-जगह लाशें मिल रही थीं। कई लोगों की तो पहचान ही नहीं हो पाई। मसलन, गत 18 जून, 2024 को दोपहर प्रयागराज (इलाहाबाद) के शांतिपुरम चौराहे पर एक 40 वर्षीय व्यक्ति अचानक गश खाकर गिरा और उसकी मौत हो गई। देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी, लेकिन उसकी पहचान न हो सकी।

इसी तरह सूमित राजपूत ने ट्वीटर पर यह जानकारी साझा की कि 18 जून को ही नोएडा में अलग-अलग जगहों पर 14 लोगों के शव बरामद किए गए। प्रथम दृष्टया सभी की मौत लू लगने से जाहिर हो रही थी। लेकिन जिला अस्पताल की सीएमएस रेणु अग्रवाल ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर बताया कि सभी मौतें ब्रेन हेमरेज या हर्ट अटैक और निमोनिया से हुई हैं।

दैनिक हिंदी ‘अमर उजाला’ के मुताबिक, गत 30 मई, 2024 की सुबह फूलपुर कोतवाली क्षेत्र स्थित इफको कारखाने के गेट के सामने जौनपुर-इलाहाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे एक व्यक्ति मृत मिला।

बग़ल में ही उसकी साइकिल भी खड़ी थी। सही से हाथ-पांव न धुलने की वजह से उसके हाथ-पैर में सीमेंट-बालू लगे हुए थे, जिन्हें देखकर पता चलता था कि वो निर्माण क्षेत्र में कार्य करने वाला मज़दूर था। बाद में उसकी पहचान परमानंद विश्वकर्मा (52 वर्ष) के तौर पर की गई। वह प्रयागराज के सोरांव तहसील के मऊआइमा थाना क्षेत्र के अपने गांव पूरे फौजशाह से 29 मई की सुबह 8 बजे साइकिल से काम पर जाने के लिए निकले थे और देर शाम घर नहीं लौटे तो घर वालों ने खोजबीन शुरू की। सोशल मीडिया पर उनकी लाश की फोटो देखकर परिजनों ने उनकी शिनाख़्त की।

गंगा किनारे बने मड़ई में आराम करता एक मजदूर

ऐसे ही स्थानीय हिंदी दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित खबर के अनुसार प्रयागराज के फूलपुर तहसील के पाली गांव में 8 जून की शाम साझे के खेत से मूंग तोड़कर लौट रहे बटाईदार राजेश पटेल रास्ते में गिर पड़े। लोगों ने अस्पताल पहुंचाया। डॉक्टर ने बताया लू की चपेट में आ गए हो, जान की सलामती चाहते हो तो पाख भर बिस्तर से मत उठना। नींबू-नमक चीनी का घोल और इलेक्ट्रॉल का घोल घोलकर पिलाया गया। पूरी गर्मी उन्होंने फिर नमक-चीनी का घोल ही पीया।

‘भारतभूमि न्यूज’ वेब पत्रिका के मुताबिक, 17 जून बिहार के भोजपुर जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के बसंतपुर गांव निवासी किसान राम दयाल यादव (30 वर्ष) सुबह में खेत पटाने गए थे, जहां अचानक तबीअत बिगड़ने के बाद उन्हें आरा सदर अस्पताल ले जाया गया। इमरजेंसी वार्ड में उनकी मौत हो गई।

इस दौरान स्थानीय समाचार पत्रों में खबरें प्रकाशित हुईं। मसलन, गत 18 जून को प्रयागराज के करछना तहसील के सोनाई ताल में बकरी चरा रहे सेमरी गांव के शिव बाबू पाल (35 वर्ष) की लू लगने से मौत हो गई। वह बकरी चराने के दौरान बेसुध होकर गिर पड़े। उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

प्रयागराज के ही मांडा तहसील के टिकरी गांव में कबाड़ बीनने के दौरान कबाड़ी का काम करनेवाले मानिक चंद (45 वर्ष) की लू लगने से मौत हो गई। मानिक चंद कबाड़ इकट्ठा करके अपना गुज़र-बसर करते थे। 17 जून सोमवार की सुबह 10 बजे वो कबाड़ के लिए घर से निकले थे, कुछ दूर जाते ही उनकी तबीअत गड़बड़ा गई तो गांव के ही शीशम के पेड़ के नीचे लेट गए। दोपहर तीन बजे लोग पहुंचे तो देखा उनकी मौत हो चुकी थी।

प्रयागराज में एक ईंट-भट्ठे पर काम करते मजदूर

उपरोक्त कुछ उदाहरणों और आंकड़ों से स्पष्ट है कि लू (हीटवेब) अब देश में एक महामारी बन चुकी है, जो हर साल हजारों लोगों को अपना निवाला बना रही है। इस साल उत्तर प्रदेश के प्रयागराज, झांसी, समेत कई जिलों का औसत तापमान पूरे मई-जून महीने के दौरान 44-46 डिग्री सेल्सियस रहा। इसका असर न सिर्फ़ दिहाड़ीपेशा दलित-आदिवासी समुदाय की रोटी रोज़गार पर पड़ा, बल्कि कई लोगों की जानें भी गईं, जिनमें अधिकांश दलित-बहुजन वर्ग के लोग थे।

लू और गर्मी का व्यवहारिक दुष्परिणाम

राजगीर राम अभिलाष पासी प्रयागराज जिले के पाली ग्रामसभा निवासी हैं। बातचीत के दौरान वे बताते हैं कि ठंड की अपेक्षा गर्मियों में निर्माण कार्य ज़्यादा करवाया जाता है। उसकी एक वजह यह है कि ठंड में दिन छोटे होते हैं और ठंड तथा ठिठुरन से हाथ उतनी तेजी से नहीं चलता तो काम सैराता (निबटता) नहीं है। ठंड के दिनों में बस छिट-पुट काम ही होता है।    

वहीं उनकी पत्नी सुनीता बातचीत के दौरान ही कहती हैं कि “गर्मी में काम की गर्मी कपार (सिर) पर चढ़ जाती है, काम से आएंगे तो घर पर बीबी-बच्चों पर चिल्लाएंगे, झल्लाएंगे, मारेंगे गरियाएंगे।”

फूलपुर में इफको उर्वरक कारखाने में काम करने वाला एक मज़दूर बताता है कि “गर्मी से दिमाग इतना झल्ला जाता है कि अनायास ही गुस्सा आता है। साहेब लोग हम पर चिल्लाते हैं और हम लोग आपस में एक-दूसरे पर चिल्लाते हैं। सही कहें तो इतनी धूप और गर्मी में काम करने का मन नहीं होता, लेकिन रोटी-रोज़ी के लिए सब सहना पड़ता है।”

दुकानों का शटर बनाने व मरम्मत का काम करने वाले फूलपुर के निवासी उदय नारायण पटेल बताते हैं कि “सब मज़दूर लोग नशा करके काम करते हैं। नशा न करें तो धूप और गर्मी बर्दाश्त ही न हो। पानी पीने के लिए बैठेंगे तो सब बारी-बारी से चिलम लगाएंगे। गांजे का दो कश लगाने के बाद धूप का असर कम हो जाता है। रात में काम करके जाएंगे सब तो रोज दारू पीने भर का पैसा लेकर सीधे हउली (शराब ठेका) जाएंगे। किसी दिन शाम को पैसा नहीं मिला तो अगले दिन काम पर नहीं आएंगे।”

लू से मौत को हर्ट अटैक और ब्रेन हेमरेज बताकर पल्ला झाड़ती है सरकार और व्यवस्था

एक्टिविस्ट और पेशे से डॉक्टर आशीष मित्तल बताते हैं कि फेफड़े, दिल और दिमाग तीनों की गतिविधि बंद होने को मरना कहते हैं। बुढ़ापे से मरना कोई क्राइटेरिया नहीं है। हर मौत के पीछे कोई पृष्ठभूमि और कारण होता है। सरकार और प्रशासन अपनी जवाबदेही और जिम्मेदारी से भागते हैं, इसलिए इस तरह की अतार्किक बयानबाजी करते हैं। ऐसे ही भूख से किसी की मौत थोड़े होती है। मौत तो सांस रुकने से ही होती है, लेकिन खाना न मिलना, पोषण न मिलना उसका एक कारण होता है। जब लोगों की भूख से मौत होती है तो ये कहते हैं कि बीमारी से हुई है। अब बीमारी से मौत हो रही है तो ये कह रहे हैं कि बीमारी से नहीं, बुढ़ापे से मौत हुई है। ये प्रमाण दे देते हैं कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में उसके पेट में कच्चा खाना निकला। वे आगे कहते हैं कि इस समय पूरा उत्तर भारत जबरदस्त हीट स्ट्रोक के चपेट में है। किसान और निर्माण मजदूरों को लगातार इसका सामना करना पड़ रहा है। इसलिए वे इसके शिकार भी सबसे ज़्यादा हो रहे हैं।

पिछले 30 वर्षों से तापमान और गर्म हवाओं का आकलन कर आईआईटी, खड़गपुर की एक टीम ने अपने एक अध्ययन में बताया है कि तापमान वृद्धि तथा लू का मानव शरीर पर व्यापक असर पड़ रहा है। गर्म हवाओं से मस्तिष्क आघात, हृदयाघात, नसों में खून के थक्के जमने की आशंका, स्थायी विकलांगता का ख़तरा बढ़ जाता है। इससे मृत्यु दर भी बढ़ जाती है।

हीट स्ट्रोक (लू) क्या है?

डॉक्टर आशीष मित्तल का कहना है कि अगर कोई इंसान लगातार बहुत देर तक 40 डिग्री सेल्सियस या उससे ज्यादा के तापमान में है और इस दौरान गर्म हवा भी चल रही हो तो उसे लू लगने का ख़तरा होता है। लू तब लगती है, जब मनुष्य का शरीर अपने तापमान को नियंत्रित नहीं कर पाता। हीटस्ट्रोक होने पर शरीर का तापमान तेजी से बढ़ता है और कम नहीं हो पाता। जब किसी को लू लगती है तो उसका स्वेटिंग मेकैनिज्म (पसीना तंत्र) फेल हो जाता है, और व्यक्ति को बिल्कुल पसीना नहीं आता। हीट स्ट्रोक की चपेट में आने पर 10-15 मिनट के अंदर शरीर का तापमान 106 डिग्री फॉरेनहाइट से अधिक हो जाता है। समय रहते इलाज न मिलने पर व्यक्ति की जीवनाेपयागी अंगों के निष्क्रिय होने से मौत हो जाती है।

डॉक्टर मित्तल कहते हैं कि जब बहुत तेज गर्मी पड़ती है तो इसका नुकसान दिमाग को झेलना पड़ता है। इससे बेहोशी आना, चक्कर आना जैसी परेशानी होती है। लू का दिमाग पर असर जानलेवा होता है। दरअसल हमारा दिमाग तापमान को कंट्रोल करता है। हमारे शरीर में थर्मोंरिसेप्टर होते हैं, जो बाहर के तापमान के हिसाब से शरीर को तैयार करते हैं। लेकिन जब तापमान बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है तो थर्मोरिसेप्टर अपना काम सही से नहीं कर पाते हैं। और इसका असर दिमाग पर पड़ता है। इससे ब्रेन स्ट्रोक आ जाता है।

गर्मी में मौत होने की एक बड़ी वजह पानी की कमी या डिहाईड्रेशन होता है। दरअसल बढ़ते तापमान में ज्यादा पानी की ज़रूरत होती है। लेकिन कार्य क्षेत्र में मज़दूरों कामगारों को उस हिसाब से पानी नहीं पीने को मिलता है। जबकि 45-50 डिग्री तापमान के दौरान 5-6 लीटर पानी पीने की आवश्यकता होती है। जो लोग ज़्यादा समय तक धूप में काम करते हैं, उनके शरीर में बहुत तेजी से पानी की कमी होती है। तेज गर्मी के कारण शरीर का कूलिंग सिस्टम फेल हो जाता है और इस कारण हृदय में ब्लड सर्कुलेशन तेज हो जाता है, जिससे दिल पर दबाव बढ़ता है, धड़कन तेज हो जाती है, और हर्ट अटैक आ जाता है। अक्सर ऐसा शरीर में पानी की कमी के चलते होता है। यही कारण है कि लू में होने वाली अधिकांशतः मौतें हर्ट अटैक और ब्रेन हेमरेज के कारण होती हैं।

कितनी मौतें हुई?

गत 25 जुलाई, 2024 को संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने अत्यधिक गर्मी पर कार्रवाई पर आह्वान करते हुए कहा कि भारत में इस साल 100 से अधिक लोगों की मौत लू से हुई है और 40 हजार से अधिक लोग इसके शिकार हुए हैं। 

रिपोर्ट कहती है कि जिन चीजों पर तत्काल कार्रवाई की ज़रूरत है, उसमें कमज़ोर लोगों की देखभाल, मज़दूरों की रक्षा, डेटा और साइंस के इस्तेमाल से आर्थिक और सामाजिक लचीलेपन को बढ़ावा देना। इसके अलावा तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की कमी लाना शामिल है।

विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरें

इससे पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने 1 मार्च से 18 जून के बीच लू से 110 लोगों की मौत और 42 हजार लोगों के प्रभावित होने की बात कही थी। वहीं अख़बारों के मुताबिक इस साल 500 के ज़्यादा लोगों की मौत लू लगने से हुई है।

उत्तर प्रदेश की बात करें तो 31 मई, 2024 शुक्रवार को लू से पूरे प्रदेश में 189 लोगों की मौत हुई। केवल प्रयागराज में ही 27 और प्रतापगढ़ में 14 लोगों की जान चली गई। इस दौरान कानपुर में तापमान 48.2, झांसी में 47.2, प्रयागराज में 46.8, बरेली में 45.3 डिग्री सेल्सियस रहा। गत 1 जून को हुए सातवें और आखिरी चरण के मतदान करवाने के लिए पहुंचे मतदानकर्मियों की भी भारी संख्या में मौत हुई। मसलन, 31 मई को यूपी में 19 और बिहार में 10 मतदानकर्मियों की गर्मी और लू से मौत हो गई। मिर्जापुर में चुनाव ड्युटी में लगे 8 होमगार्ड और 1 सुरक्षाकर्मी की लू से मौतें हुईं। वाराणसी में 3 मतदानकर्मी, सोनभद्र में 3 मतदानकर्मी, चंदौली में दो होमगार्ड की चुनावी ड्यूटी के दौरान मौत हुई।     

फिर 1 जून, 2024 को उत्तर प्रदेश में लू से तीन दर्जन लोगों की मौत हुई। प्रयागराज जिले में 10, प्रतापगढ़ जिले में 10, लखनऊ में 5, कौशाम्बी में 3, अमेठी में 2 लोगों की मौत दर्ज़ की गई। साथ ही, 3 मतदाता, 3 मतदान कर्मी समेत 12 लोगों की पूर्वांचल के 10 जिलों में गर्मी से मौत हुई। जबकि 20 लोगों की मौत अवध क्षेत्र में हुई। इस दिन चंदौली में 45, सोनभद्र में 44.6, मिर्जापुर में तापमान 44 डिग्री सेल्सियस रहा। जबकि झांसी में तापमन 46.9 डिग्री सेल्सियस और कानपुर में 45.4 डिग्री सेल्सियस रहा। इसके अलावा 15 जून को उत्तर प्रदेश में 33 लोगों की मौत लू लगने से हुई। 17 जून को प्रयागराज जिले में 11 लोगों की व 18 जून को 17 लोगों की मौत हुई। जिले का तापमान अधिकतम 47.6 और न्यूनतम 34.7 डिग्री सेल्सियस रहा। जबकि 18 जून को यूपी में 168 लोगों की मौत गर्मी और लू से हुई। इसके पहले 14 जून को उत्तर प्रदेश में 32 लोगों की मौत हुई।

गौर करने वाली बात यह है कि पहले मई और फिर जून में मौत का आंकड़ा अचानक बढ़ता है और फिर लू से मौतों की रिपोर्टिंग एकदम से बंद हो जाती है।

पीएलओएस क्लाइमेट जर्नल में छपी कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोध रिपोर्ट के मुताबिक 2022में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली घातक गर्मी ने लगभग 90 फीसदी भारतीयों को सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं, भोजन की कमी और मृत्यु के बढ़ते ख़तरों के प्रति अधिक संवेदनशील बना दिया है।  

गंगा घाटों पर शवों की कतार

हीटस्ट्रोक से होने वाली मौतों को लेकर सरकार के आंकड़ों और अख़बारों के आंकड़ों के में ज़मीन-आसमान का अंतर है। ऐसे में श्मशान घाट एक दूसरा विश्वसनीय स्रोत होता है। गत 31 मई, 2024 को वाराणसी के महाश्मशान में 300 से अधिक लाशें पहुंचने से लाशों का जाम लग गया। आलम यह था कि मणिकर्णिका घाट से लेकर भैंसा घाट तक लाश ही लाश नज़र आने लगे। लोगों को अपने परिजनों के शव जलाने के लिए लाइन लगाकर 5-7 घंटे तक अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ा। हरिश्चंद्र घाट, जहां रोज़ाना 25-30 शव ही आते थे, वहां भी 75-90 शव आने लगे। लेकिन अचानक से पांच-छह गुना लाशों का बढ़ जाना यह बताता है कि पूर्वांचल में लू ने कितना भयावह रूप धर लिया।

बताते चलें कि 18 जून, 2024 को इलाहाबाद के चार श्मशान घाटों शृंग्वेरपुर, दारागंज, छतनाग और रसूलाबाद घाट पर 314 शवों का अंतिम संस्कार किया गया। इनमें अधिकांश बुजुर्ग और अधेड़ उम्र के लोग थे तथा अधिकांश लोग गर्मी और लू से मरे थे। इस दौरान शृंग्वेरपुर घाट पर सामान्य दिनों की तुलना में तीन गुना अधिक लाशें पहुंची। सामान्य दिनों में यहां क़रीब 30 लाशें आती हैं। शृंग्वेरपुर में भैरव घाट, सीताकुंड घाट, गऊ घाट, विद्यार्थी घाट के पास 29, 30, 31 मई के दरम्यान 40 शवों को दफ़नाया गया। इसी तरह मांडा तहसील के महेवा कला और डेंगुरपुर में दो दिनों में 32 शवों का दाह संस्कार हुआ है जबकि औसत दिनों में यहां 2 से 3 शव ही आते हैं।

बहरहाल, उत्तर भारत में लू (हीटवेब) एक महामारी बन चुकी है, जो हर साल गर्मी के मौसम में सैकड़ों लोगों की जान लेकर ही मानती है। इस साल उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, ओडिशा में हीटवेब ने मई-जून महीने में तबाही मचाई है। तापमान के पारे ने पिछले सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिये हैं।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1991-2018 के बीच लू लगने से 24 हज़ार से अधिक लोगों की मौत हुई है। वहीं साल 2010 से अब तक लू से साढ़े 6 हजार लोगों की मौत हुई है। मोनाश विश्वविद्यालय आस्ट्रेलिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल दुनिया में 1.53 लाख मौतें भीषण गर्मी और लू से होती है। इसमें 20 प्रतिशत मौतें अकेले भारत में होती है। पिछले साल केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री एस पी सिंह बघेल ने सदन में बताया था कि 2023 अप्रैल-मई-जून के दौरान गर्मी और लू से 252 मौतें दर्ज़ की गयी हैं। जबकि साल 2015 में हीट वेब से 2040 मौतें हुई थी।

किसकी है जिम्मेदारी? 

पिछले साल प्रोग्रेसिव मेडिकोस एंड साइंटिस्ट फोरम  ने पिछले साल जारी प्रेस-विज्ञप्ति में श्मशान घाटों का जिक्र करके कहा गया था कि 2023 में जून महीने में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में श्मशान घाट पर जिन लोगों का अंतिम संस्कार किया गया है, उनमें से अधिकांश दिहाड़ी पेशा जाति वर्ग के लोग थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार मरने वालों और पीड़ितों को दोषी ठहराने की अपनी प्रवृत्ति से बाज आये। लू से मरने वालों को आखिर बुढ़ा और पहले से बीमार बताकर सरकार बूढ़ों, बीमारों, बेघरों और ग़रीबों को सामाजिक सुरक्षा गारंटी देने की अपनी जवाबदेही से भाग नहीं सकती है। 

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

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