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लोकसभा चुनाव के बाद उपचुनावों में भी मिली एनडीए को हार

अयोध्या लोकसभा क्षेत्र में हार के सदमे से अभी भाजपा उबरी भी नहीं थी कि उपचुनाव में बद्रीनाथ विधानसभा सीट हारने के बाद सोशल मीडिया पर उसकी भद्द पिटी। सात राज्यों के 13 विधानसभा क्षेत्रों में हुए उपचुनावों के फलाफल के बारे में बता रहे हैं सुशील मानव

लोकसभा चुनाव में चार सौ पार के अपने लक्ष्य से 160 सीटें पीछे रहने के बाद गत 13 जुलाई को 7 राज्यों के 13 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में भी भाजपा व उसके गठबंधन के दलों को करारी शिकस्त मिली है। इनमें से 10 सीटों पर इंडिया गठबंधन के घटक दलों नें, 2 सीटें भाजपा और एक सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज़ की। स्मरण रहे कि इन 13 में से सिर्फ़ दो सीटें ही ऐसी हैं, जो निर्वाचित विधायक की मृत्यु के बाद रिक्त हुई थीं। जबकि 11 सीटें निर्वाचित विधायकों द्वारा दल-बदल के बाद इस्तीफा देने की वजह से खाली हुई थीं। उपचुनाव में अधिकांश दलबदलुओं को मुंह की खानी पड़ी है। वहीं इस मामले में पश्चिम बंगाल अपवाद है।

सियासत में एक सामान्य चलन है कि उपचुनाव के नतीजे अमूमन सत्ताधारी दल के पक्ष में आते हैं, जैसा कि इसी चुनाव में पश्चिम बंगाल में हुआ है। इसके कई कारण होते हैं। उनमें से एक कारण यह होता है कि उपचुनाव में मतदाता किसी बदलाव के लिए वोट नहीं कर रहा होता है, उसे भलीभांति पता होता है कि किसी राज्य की दो-तीन सीटों से कोई फर्क़ सरकार पर नहीं पड़ेगा। दूसरा कारण यह भी है कि तमाम क्षेत्रीय विपक्षी दल उपचुनावों में भाग नहीं लेते हैं।

खैर, हाल में संपन्न हुए सात राज्यों की 13 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनाव के नतीजे में इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस ने चार, तृणमूल कांग्रेस ने चार, डीएमके और आम आदमी पार्टी ने एक-एक सीट पर जीत हासिल की है। लेकिन जिस एक सीट की चर्चा सबसे ज़्यादा हो रही है, वह है उत्तराखंड की बद्रीनाथ सीट।

ध्यातव्य है कि उत्तर प्रदेश के अयोध्या लोकसभा सीट, जहां भाजपा और उसकी सरकार ने मिलकर हिंदुत्व का सबसे बड़ा अभियान चलाया, उसे हारने के बाद भाजपा की ख़ूब किरकिरी हुई थी। ‘अयोध्या तो झांकी है, काशी-मथुरा बाक़ी है’ नारा देने वाले खुद इस नारे को सुनकर खीझने लगे। अपने सार्वजनिक संबोधनों में ‘जय श्री राम’ का उद्घोष करने वाले नरेंद्र मोदी अयोध्या सीट हारने के बाद ‘जय जगन्नाथ’ का संबोधन करने लगे।

इस सदमे से अभी भाजपा उबरी भी नहीं थी कि उपचुनाव में बद्रीनाथ विधानसभा सीट हारने के बाद सोशल मीडिया पर उसकी भद्द पिटी। यहां अयोध्या की चर्चा इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि बद्रीनाथ में भी अयोध्या की ही तर्ज़ पर लोगों को उजाड़ा और विस्थापित किया गया है। उनके रोटी-रोज़ी का साधन छीन लिया गया।

बद्रीनाथ विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस को मिली जीत

बता दें कि सरकार द्वारा केदारनाथ धाम की तर्ज़ पर साल 2020 में बद्रीनाथ के लिए भी एक मास्टर प्लान तैयार किया गया। बद्रीनाथ मंदिर को भव्य बनाने के लिए 75-100 मीटर के दायरे की सारी दुकानों, मकानों को तोड़ दिया गया। करीब 424 करोड़ बजट के इस प्लान के तहत अलकनंदा रिवर फ्रंट और प्लाजा बनाया जा रहा है। इस प्लान में क्लॉक रूम (सामान जमा गृह), कतार व्यवस्था, झीलों का सौंदर्यीकरण, पार्किंग व्यवस्था के अलावा मंदिर तक आने वाली सड़कों का चौड़ीकरण शामिल है। स्थानीय पत्रकार हृदयेश जोशी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मास्टर प्लान को लागू करने में नियमों की अवहेलना की गई है। बद्रीनाथ मास्टर प्लान के ख़िलाफ़ आंदोलनरत संघर्ष समिति के अध्यक्ष जमना प्रसाद नेवानी का आरोप है कि सरकार ने कई मकानों को बिना अनुमति के तोड़ा है, और लोगों को इसका मुआवजा तक नहीं दिया गया है। जंगलों पहाड़ों वाले आध्यात्मिक नगरी को ‘स्मार्ट स्प्रिचुअल हिल टाउन’ में बदला जा रहा है, जहां छोटे दुकानदारों और हाशिए के लोगों के जगह नहीं है। इससे लोगों में सरकार के प्रति आक्रोश है।

वहीं बद्रीनाथ क्षेत्र के संवेदनशील भौगोलिक संरचना और जलवायु परिवर्तन को दरकिनार करके किये जाने वाले विकास कार्यों के चलते इस क्षेत्र में भूस्खलन और दूसरे आपदाओं की संख्या और आवृत्ति बढ़ी है, जिसका खामियाजा भी स्थानीय लोगों को ही भुगतना पड़ता है। पिछले साल भू-धंसाव के चलते जोशीमठ के कई मकानों और होटलों में दरारें देखी गई थीं।

सियासी रिवाजों के हिसाब से देखा जाए तो भाजपा बद्रीनाथ सीट हारी नहीं है, बल्कि कांग्रेस अपनी सीट बचाने में कामयाब हुई है। वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में राजेंद्र भंडारी ने कांग्रेस के टिकट पर यह सीट जीता था। लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले गढ़वाल से भाजपा सांसद अनिल बलूनी द्वारा कांग्रेस विधायक राजेंद्र भंडारी को भाजपा में शामिल करवाया गया था, जिसे मीडिया और भाजपा ने मास्टरस्ट्रोक बताकर पेश किया था। उप-चुनाव में भाजपा ने राजेंद्र भंडारी को अपना उम्मीदार बनाकर चुनाव मैदान में उतारा था और कांग्रेस ने लखपत सिंह बुटोला को।

उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व के एक गढ़ अयोध्या को गंवाने के बाद बद्रीनाथ सीट भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गई थी। यह सीट जीतने के लिए भाजपा के बूथ स्तर के कार्यकर्ता से लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री सहित उनकी पूरी कैबिनेट के सदस्य विधानसभा क्षेत्र में डेरा डाले हुए थे।

वहीं उत्तराखंड की मंगलौर सीट पर कांग्रेस के क़ाजी मोहम्मद निजामुद्दीन निर्वाचित हुए हैं। इस सीट पर चुनाव के दौरान मुस्लिम कार्यकर्ताओं पर भाजपा के लोगों ने हमला किया था। इस संबंध में एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें कांग्रेस उम्मीदवार क़ाजी मोहम्मद निजामुद्दीन अस्पताल में भर्ती दर्द से कराहते अपने दर्जनों कार्यकर्ताओं से मिलकर रोते हुए दिखे। साथ ही मतदान के दौरान उत्तराखंड पुलिस द्वारा मुस्लिम मतदाताओं को फर्ज़ी पहचान पत्र पर वोटिंग करने का आरोप लगाकर गाली देने और मारने का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था।

दल-बदल की यही कहानी हिमाचल प्रदेश में भी देखी गई। साल 2022 में हुए विधानसभा चुनावों में हिमाचल प्रदेश की तीनों सीटों – देहरा से होशियार सिंह, नालागढ़ से के.एल. ठाकुर, हमीरपुर से आशीष शर्मा निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर निर्वाचित हुए थे। लेकिन भाजपा के ‘ऑपरेशन लोटस’ के तहत 27 फरवरी, 2024 को राज्यसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हर्ष महाजन के पक्ष में 3 निर्दलीय और 6 कांग्रेस विधायकों द्वारा क्रॉस मतदान किया गया। इसके बाद तीनों निर्दलीय विधायक 22 मार्च को इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए थे, जिसके चलते तीनों सीटों पर उपचुनाव कराने पड़े। उपचुनाव में ये तीनों उम्मीदवार भाजपा उम्मीदवार के तौर पर मैदान नें थे। हमीरपुर सीट से आशीष शर्मा महज 1571 मतों से जीत सके हैं, जबकि बाक़ी दोनों उम्मीदवार चुनाव हार गए हैं।

ध्यातव्य है कि हिमाचल प्रदेश के 68 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 35 है। कांग्रेस ने 2022 विधानसभा चुनाव में 40 सीटें जीतकर बहुमत की सरकार बनाई थी। जबकि भाजपा को 25 सीटें मिली थीं। वहीं मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और गोवा की तर्ज पर भाजपा ‘ऑपरेशन लोटस’ के जरिए यहां चुनी हुई सरकार को हटाने के साजिश में लगी हुई है। इस कारण महज दो साल में दो बार उपचुनाव हो चुके हैं, जिसके चलते भाजपा विधायकों की संख्या बढ़कर 28 हो गई है। यह भी उल्लेखनीय है कि भाजपा ने राज्य की चारों संसदीय सीटें जीती थी।

पश्चिम बंगाल में भी इसी की पुनरावृत्ति हुई। कोलकाता की मानिकताला विधानसभा सीट से टीएमसी विधायक साधन पांडेय के निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी। जबकि तीन भाजपा विधायक कृष्णा कल्याणी (रायगंज सीट), मुकुटमणि अधिकारी (रानाघाट दक्षिण), बिस्वजीत दास बागदाह सीट भाजपा छोड़कर टीएमसी में चले गये थे, और दल-बदल क़ानून के तहत ये तीनों सीटें रिक्त हुई थीं। उपचुनाव में चारों सीटें टीएमसी ने जीत ली है।

वहीं पंजाब में जालंधर पश्चिम सीट पर आम आदमी पार्टी के मोहिंदर भगत जीते हैं। यह सीट आप विधायक शीतल अंगुराल के भाजपा में शामिल होने और इस्तीफा देने के बाद खाली हुई थी। शीतल अंगुराल इस उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार के तौर पर मैदान में थे। मजे की बात यह है कि विधानसभा चुनाव में भी ये दोनों उम्मीदवार आमने-सामने थे। तब मोहिंदर भगत भाजपा प्रत्याशी थे और शीतल अंगुराल आप प्रत्याशी। यहां एक बात और गौर करने की है कि इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार भी मैदान में था।

गौरतलब है कि इंडिया के घटक दल टीएमसी ने पश्चिम बंगाल में और आम आदमी पार्टी ने पंजाब में अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ा था।

वहीं बिहार में रुपौली सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर बाहुबली शंकर सिंह ने चुनाव में जीत दर्ज़ की। दरअसल पूर्व में निर्वाचित विधायक बीमा भारती के जदयू छोड़कर राजद में शामिल होने के बाद यह सीट खाली हुई थी। बीमा भारती को जनता ने नकार दिया और वह इस उपचुनाव में राजद उम्मीदवार के तौर पर तीसरे स्थान पर रहीं। दूसरे स्थान पर जदयू के कलाधर मंडल रहे।

दूसरी ओर मध्य प्रदेश में अमरवाड़ा सीट पर भाजपा के कमलेश प्रताप शाह की जीत हुई है। वे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस विधायक के तौर पर निर्वाचित हुए थे। बाद में वे भाजपा में शामिल हो गये और उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर फिर से चुनाव जीतने में कामयाब रहे। मध्यप्रदेश में अभी भी तीन विधानसभा सीटों पर उप-चुनाव होना है। यह बेहद दिलचस्प है कि पिछले 10 सालों में मध्य प्रदेश में 51 क्षेत्रों में उपचुनाव हुए हैं। हालांकि इसमें भाजपा की जीत का दर 66 प्रतिशत रहा है। वहीं कांग्रेस की विधायकी छोड़कर भाजपा के टिकट पर उप-चुनाव लड़ने वाले नेताओं की जीत की दर 75 प्रतिशत है।

तमिलनाडु में विक्रावांडी विधानसभा सीट पर डीएमके के अन्नियुर शिवा को जीत मिली है। यह सीट इस साल अप्रैल में डीएमके विधायक पुगलेंधी की बीमारी से निधन के बाद खाली हुई थी।

बहरहाल, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश और तमिलनाड़ु के नतीजे उसी पैटर्न पर आए हैं कि उपचुनाव में सत्ताधारी दल को एक बढ़त रहती है। सिर्फ़ उत्तराखंड के नतीजे इस पैटर्न के उलट रहे हैं। 

(संपादन : राजन/नवल/अनिल)


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लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

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